तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं ------फ़ैज़
इस बदलते दौर में जो कुछ भी हूँ मैं देख लो कल जो देखोगे तो मंज़र दूसरा हो जाएगा।
अन्दाज़ कुछ अलग ही मेरे सोचने का है मंज़िल का सब को शौक़ मुझे रास्ते का है
दुनिया का वरक़ दीदा-ए-अरबाब-ए-नज़र में इक ताश का पत्ता है कफ़-ए-शोबदागर में ---सफ़ी
घर-घर जाकर तुम यारों से आज सईद मिलो भूल के सारी गुज़री बातें, दिल से ईद मिलो
है मेरा ज़ब्ते-जुनूँ, जोशे-जुनूँ से बढ़कर नंग है मेरे लिए चाक गरेबाँ होना
. ये ठीक है कि सितारों पे घूम आए हम मगर किसे है सलीक़ा ज़मीं पे चलने का
दोस्तों इस क़दर सदमे हुए हैं जान पर दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा
बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना तेरी ज़ुल्फ़ों का पच-ओ-ख़म नहीं है
तोहीन-ए-इश्क़ देख न हो ऎ जिगर न हो, हो जाए दिल का खून मगर आँख तर न हो

सुकून-ए-दिल : मुनफ़रीद अशआर

शनिवार, 12 जुलाई 2008
सुकून-ए-दिल जहान-ए-बेश-ओ-कम में ढूँढने वाले यहाँ हर चीज़ मिलती है सुकून-ए-दिल नहीं मिलता
खिलाफ़-ए-शरअ बभी शेख थूकता भी नहीं, मगर अंधेरे उजाले में चूकता भी नहीं

अदम के मुनफ़रीद अशआर

शनिवार, 14 जून 2008
हमारी सिम्त से पीर-ए-मुग़ाँ से ये कह दो छुड़ा के पीछा ग़म-ए-दो जहाँ से आते हैं

मजाज़ के मुनफ़रीद अशआर

मंगलवार, 10 जून 2008
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके, कुछ कह न सके कुछ सुन न सके याँ हमने ज़ुबाँ ही खोली थी, वाँ आँख झुकी शर्मा
रात बाक़ी थी जब वो बिछड़े थे, कट गई उम्र रात बाक़ी है