ग़ालिब की ग़ज़ल (शे'रों के मतलब के साथ)

बस के दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मोयस्सर नहीं इंसाँ होन

दुनिया में आसान से आसान काम भी मुश्किल होता है। जिसका सुबूत ये है कि आदमी वैसे तो इंसान ही है लेकिन फिर भी इसका मुकम्मल इंसान बनना कितना मुश्किल है। यानी आदमी का कमाल- इंसानियत के मरतबे तक पहुँचना बेहद मुश्किल है।

गिरया चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की
दर-ओ-दीवार से टपके है बियाबाँ होना

मेरा रोना घर की बरबादी का आरज़ूमन्द है। इसीलिए तो दर-ओ-दीवार से बियाबाँ होने के आसार नज़र आ रहे हैं।

वाय दीवानगी-ए-शौक़ के हरदम मुझको
आप जाना उधर और आप ही हैराँ होना

इश्क़ की दीवानगी का क्या इलाज। बार बार मेहबूब से मिलने उसके कूँचे में जाता हूँ और बार बार हैरान और नाकाम होकर वापस आता हूँ।

की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा से तोबा
हाय उस ज़ूद पशेमाँ का पशेमाँ होना

मुझे क़त्ल करने के बाद उसने ज़िल्म-ओ-सितम से तोबा कर ली। ज़ालिम को पशेमानी भी हुई तो कब हुई? काश वो मेरे क़त्ल से पहले
पशेमान हो जाता?

हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत ग़ालिब
जिसकी क़िसमत में हो आशिक़ का गरेबाँ हो नाम

आशिक़ के गरेबान का चार गिरह कपड़ा भी कितना बदनसीब है। जुदाई में जुनून के आलम में आशिक़ ख़ुद उसे तार-तार कर देगा और वस्ल होगा तो मेहबूब अपनी शोख़ी और बेतकल्लुफी से उसे तार-तार कर देगा।

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