1.
है जुस्तुजू के ख़ूब से है ख़ूबतर कहाँ
अब देखिए ठहरती है जाकर नज़र कहाँ
यारब इस इख़तेलात का अंजाम हो ब्ख़ैर
था उसको हमसे रब्त मगर इस क़दर कहाँ
इक उम्र चाहिए के गवारा हो नीशे इश्क़
रक्खी है आज लज़्ज़्ते ज़ख़्मे जिगर कहाँ
बस हो चुका बयाँ कसल ओ रंजे राह का
ख़त का मेरे जवाब है ऐ नामाबर कहाँ
कौनो मकाँ से है दिले वेहशी किनारागीर
इस ख़ानुमा ख़राब ने ढूँढा है घर कहाँ
होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्के इश्क़ की
दिल चाहता न हो तो दुआ में असर कहाँ
हाली निशाते नग़मा ओ मै ढूँढते हो अब
आए हो वक़्ते सुबहा रहे रातभर कहाँ
2.
हक़ वफ़ा के जो हम जताने लगे
आप कुछ कहके मुस्कुराने लगे
था यहाँ ताअने वस्ले अदू
उज़्र उनकी ज़ुबाँ पे आने लगे
हमको जीना पड़ेगा फ़ुरक़त में
वो अगर हिम्मत आज़माने लगे
डर है मेरी ज़ुबाँ न खुल जाए
अब वो बातें बहुत बनाने लगे
जान बचती नज़र नहीं आती
ग़ैर उलफ़त बहुत जताने लगे
तुमको करना पड़ेगा उज़्रे जफ़ा
हम अगर दर्दे दिल सुनाने लगे
सख्त मुश्किल है शेवाए तसलीम
हम भी आख़िर को जी चुराने लगे
जी में है लूं रज़ा ए पीरे मुग़ाँ
क़ाफ़ले फिर हरम को जाने लगे
वक़्ते रुख़सत था सख्त हाली पर
हम भी बैठे थे जब वो जाने लगे
--------------------------------