शरीक-ए-मेहफ़िल-ए-दार-ओ-रसन कुछ और भी हैं
सितमगरो, अभी एहल-ए-कफ़न कुछ और भी हैं
अर्ज़ ओ समाँ कहाँ तेरी वुसअत को पा सके
मेरा ही दिल है वो कि जहाँ तू समाँ सके
अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का
यह एैश के नहीं हैं य...
मुँह तका ही करे है जिस तिस का
हैरती है ये आइना किस का
शाम से कुछ बुझा सा रहेता है
दिल हुआ है चि
क्या मद्द-ऐ-नज़र है यारों से तो कहिए
गर मुँह से नहीं कहते, इशारों से तो कहिए
हाल-ए-दिल बेताब कहा ...
रोया करेंगे आप भी बरसों इसी तरह
अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह
मर चुक कहीं के तू ग़म ए हिजराँ ...
उलटी हो गईं सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
एहद-ए-ज...
नक़्श फ़रयादी है किसकी शोख़ि-ए-तेहरीर का
काग़जी है पैर हन हर पैकर ए तस्वीर का
काव-ए-काव-ए-सख़्त जानीह...
ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है, ग़म-ए-जमाना मसल रहा है
मगर मेरे दिन गुज़र रहे हैं मगर मेरा वक्त टल रहा ह...
सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उसने ये इरशाद किया
जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया
दिल की चोटों ने कभी...
अजब बाइज़ की दींदारी है या रब
अदावत है इसे सारे जहाँ से
कोई अब तब न ये समझा कि इन्साँ
कहाँ ज
समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का
'अकबर' ये ग़ज़ल मेरी है अफ़साना किसी का
गर शैख़ो-बहरमन सुने...
आज राही जहाँ से 'दा़ग़' हुआ
खाना-ए-इश्क' बे चिराग़ हुआ
ऐसी क्या बू समा गई तुम को
हम से जो इस क...