शाद अज़ीमाबादी

शनिवार, 9 अगस्त 2008 (12:43 IST)
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
खिलौने दे के बहलाया गया हूँ

दिल-ए-मुज़तर से पूछ रौंक़-ए-बज़्म
मैं खुद आया नहीं लाया गया हूँ

लहद में क्यों न जाऊँ मुँह छुपाए
भरी महफ़िल से उठवाया गया हूँ

न मैं था मक़सद-ए-एजाज़-ए-मय का
बड़ी मुश्किल से मनवाया गया हूँ

हूँ इस कूंचे के हर ज़र्रे से वाक़िफ़
इधर से मुद्दतों आया गया हूँ

सवेरा है बहुत ए शोर-ए-महशर
अभी बेकार उठवाया गया हूँ

सताया आके पहरों आरज़ू ने
जो दम भर आप में पाया गया हूँ

क़दम उठते नही क्यों जानिब-ए-दहर
किसी मस्जिद में बहकाया गया हूँ

अदम में किस ने बुलवाया है मुझको
के हाथों हाथ पहुँचाया गया हूँ

कुजा मैं और कुजा ए शाद दुनिया
कहाँ से किस जगह लाया गया हूँ

ग़ज़ल--2
एक सितम और लाख अदाएँ, उफ़ री जवानी, हाय ज़माने
तिरछी नगाहें, तंग क़बाएँ, उफ़ री जवानी, हाय ज़माने

हिज्र में अपना और ही आलम, अब्रेबहाराँ दीदाएपुरनम
ज़िद के हमें वो आप बुलाएँ, उफ़ री जवानी, हाय ज़माने

अपनी अदा से आप खटकना, अपनी हवा से आप झिझकना
चाल में लग़ज़िश, मुँह पे हयाएँ, उफ़ री जवानी हाय ज़माने

हाथ में आड़ी तेग़ पकड़ना, ताके लगे भी ज़ख्म तो ओछा
क़स्द के फिर जी भर के सताएँ, उफ़ री जवानी हाय ज़माने

दिल पे घटाएँ, बाग़ में झूले, धानी दुपट्टे लट छतकाए
मुझ पे ये क़दग़न आप न आएँ, उफ़ री जवानी हाय ज़माने

पिछले पहर उठ-उठ के नमाज़ें, नाक रगड़नी, सजदे पे सजदे
जो नहीं जाइज़ उसकी दुआएँ, उफ़ री जवानी, हाय ज़माने

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