जिस्म पर खुर्दुरी सी छाल उगा आँख की पुतलियों में बाल उगा
क्या बात है उसने मेरी तस्वीर के टुकड़े घर में ही छुपा रक्खे हैं बाहर नहीं फेंके
पहचान क्या होगी मेरी थम कर नहीं सोचा कभी मेरे हज़ारों रूप हैं, क़तरा कभी, दरया कभी
तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे
हो तअल्लुक़ तुझसे जब तक ज़िन्दगी बाक़ी रहे दोस्ती बाक़ी नहीं तो दुश्मनी बाक़ी रहे
पूँछ कुत्ते की जो टेढ़ी हो तो कुछ भी न बने और तेरी ज़ुल्फ़ में ख़म' हो तो ग़ज़ल होती है
रूप बदलती माया के सौ चेहरे जाते आते काया लेकर मिट्टी की हम क्या खोते क्या पाते
क़दम क़दम पे ग़मों ने जिसे संभाला है उसे तुम्हारी नवाज़िश ने मार डाला है
अपने होने का सुबूत और निशाँ छोड़ती है रास्ता कोई नदी यूँ ही कहाँ छोड़ती है
सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है ये ज़मी दूर तक हमारी है
कब तक मलूँ जबीं से उस संग-ए-दर को मैं ऎ बेकसी संभाल, उठाता हूँ सर को मैं
. हमसायों के अच्छे नहीं आसार खबरदार दीवार से कहने लगी दीवार खबरदार
हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू , कहाँ गया है मेरे शहर के मुसाफिर तू