शायर माहिर बुरहानपुरी

1.
Aziz AnsariWD
मेरे दाग़ों में निहाँ शम्सोक़मर देखेगा कौन
ये नज़ारा दिल की आँखें खोल कर देखेगा कौन

अपनी नज़रों से सुलगता अपना घर देखेगा कौन
तू जिधर जाएगी बरबादी उधर देखेगा कौन

किस नज़ारे से नज़र मजरूह होकर रह गई
सुन तो सब लेंगे मगर ज़ख्म ए नज़र देखेगा कौन

कुछ तो कह दीजे ज़ुबाँ से ख़ामुशी किस काम की
दिल में क्या है दिल के अन्दर झाँक कर देखेगा कौन

मैं तो दे दूँगा ज़माने भर को माहिर का पयाम
राह तेरी वक़्त के पैग़ाम्बर देखेगा कौन
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2.
ग़मों की धूप में साए का अब अरमान रहने दे
वफ़ा की आरज़ू इस दौर में नादान रहने दे

ज़माने भर के रंजोग़म, सितम, आहें, परेशानी
तू अपने दिल की बस्ती में इन्हें मेहमान रहने दे

ख़ुलूस ओ रब्त के, इल्म ओ अमल के बीज बोता हूँ
मुझे इस पाक तय्यब फ़स्ल का दहक़ान रहने दे

ये ओछापन है एहसाँ कर के फिर एहसान गिनवाना
तू इस एहसाँ को अपने पास ए नादान रहने दे

मुसलमाँ हूँ यक़ीं की रोशनी सीने में रखता हूँ
दो आलम में तू माहिर की यही पहचान रहने दे
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3.
दुनिया जिसे कहते हैं फ़सूँ साज़ नहीं क्या
करती है दग़ा मिल के दग़ाबाज़ नहीं क्या

साँसें उलझ रही हैं, रगें फूल रही हैं
जीने में मेरे मरने का अन्दाज़ नहीं क्या

आवाज़ जो कानों में मेरे गूँज रही है
बतलाइए वो आपकी आवाज़ नहीं क्या

मुमताज़ की अज़मत से हुई ताज की अज़मत
तारीख में वो आज भी मुमताज़ नहीं क्या

माहिर मैं समझ कर ही तो पर तोल रहा हूँ
अब इतना भी अन्दाज़ा ए परवाज़ नहीं क्या