हयात हाशमी की ग़ज़लें

1. क्यों हमें मौत के पैग़ाम दिए जाते हैं
ये सज़ा कम तो नहीं है कि जिए जाते हैं

क़ब्र की धूल चिताओं का धुआँ बेमानी
ज़िन्दगी में ये कफ़न पहन लिए जाते हैं

उनके क़दमों पे न रख सर कि है ये बेअदबी
पा-ए-नाज़ुक तो सर-आँखों पे लिए जाते हैं

आबगीनों की तरह दिल हैं ग़रीबों के हयात
टूट जाते हैं कबी तोड़ दिए जाते हैं

2. आशियाँ 'बर्क़ आशियाँ' ही रहा
तिनका-तिनका,धुआँ-धुआँ ही रहा

खून रोते रहे नज़र वाले
इस ज़मीं पर भी आसमाँ ही रहा

हम सितम का शिकार होते रहे
आप का नाम मेहरबाँ ही रहा

दावत-ए-ग़म क़ुबूल की हमने
फिर भी एहसान-ए-दोस्ताँ ही रहा

दायरा आदमी की सोचों का
किफ़्र-ओ-ईमाँ के दरमियाँ हरहा

पायमाली हयात की क़िस्मत
दिल गुज़रगाह-ए-महवशाँ ही रहा

3. जो मेरा आशियाँ नहीं होता
आग लगती दुआँ नहीं होता

वो तबस्सुम अगर न फ़रमाते
गुलिस्ताँ, गुलसिताँ नहीं होता

मेरे सजदों का क्या ठिकाना था
जो तेरा आस्ताँ नहीं होता

चाँद बदली में, फूल गुलशन में
मेरा साग़र कहाँ नहीं होता

कैफ़ियात-ए-दिल-ओ-निगाह न पूछ
होश अब दरमियाँ नहीं होता

शुक्र-ए-परवरदिगार कर नासेह
अब कोई इम्तेहाँ नहीं होता

कुछ भी होता हयात का होना
काश! ये रायगाँ नहीं होता

4. दिल खून है, हर आँख है नम, देख रहे हो
इस दौर का दस्तूर-ए-करम, देख रहे हो

इंसान से इंसाँ की बलि मांग रहे हैं
ज़हनों के तराशीदा सनम, देख रहे हो

अखबार में मिलती है सदा खून की सुर्खी
औराक़-ए-सियाह पोश का ग़म देख रहे हो

बेबस है मेरी ज़ात तो मजबूर महज़ तुम
आज़ाद ग़ुलामों के सितम देख रहे हो

इंसान के बचने की कोई राह नहीं है
हर मोड़ पे ये दैर-ओ-हरम देख रहे हो

कुद अपने लिए फ़ैसला-ए-मौत लिखा है
टूटी हुई ये नोक-ए-क़लम देख रहे हो

देखा है हयात हमने उन्हें मौत के मुँह में
तुम जिनको किताबों में रक़म देख रहे हो

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