ग़ज़लें : शायर इसहाक़ असर इन्दौरी

1.
Aziz AnsariWD
न मेरे घर की, न परवाह मेरी करता है
मेरा क़लम तो रिसालों के पेट भरता है

अभी मसाइल-ए-फ़र्दा पे सोचना है मुझे
तेरा ख्याल भी आना मुझे अखरता है

अंधेरे जश्न मनाने की भूल करते हैं
चिराग़ अब भी हवाओं पे वार करता है

फिज़ा के चेहरे की मायूसियों को पढ़ता हूँ
हवा के हाथ से जब इक चिराग़ मरता है

फटे लिबास तेरा क्या बिगाड़ सकते हैं
अमीरे शह्र भी परछाइयों से डरता है

बड़ों से आँख मिलाना था पहले गुस्ताख्नी
पर अब तो बाप से बेटा मज़ाक़ करता है

2.
मीठी मीठी नींद सो लो आज तो
घर का दरवाज़ा न खोलो आज तो

बे समाअत होके सन्नाटा कहे
ऊँची आवाज़ों में बोलो आज तो

झील में शायद कोई कंकर गिरा
अपनी बेदारी टटोलो आज तो

फिर सरों पे आ रहा है आफ़ताब
अपनी परछाइ के होलो आज तो

ख़ाली दामन, ग़म, ख़ुशी कुछ भी नहीं
दिल ने चाहा ख़ूब रोलो आज तो

रोज़ मिलती है तवानाई किसे
ख़ुद को कूज़े में समोलो आज तो

नेक जज़्बे हैं नदी जैसे असर
अपने सारे ऐब धोलो आज तो