लंकेश भक्त मंंडल के अध्यक्ष ओमवीर सारस्वत ने बताया कि दशहरे के मौके पर इस बार भी भगवान शिव के परम भक्त और भगवान श्रीराम के आचार्य त्रिकालदर्शी प्रकाण्ड विद्वान 'महाराज रावण' के पुतले के दहन का विरोध करते हुए यमुना पार पुल के नीचे स्थित रावण के मंदिर के समक्ष उसकी महाआरती की गई। फिर लंकेश के स्वरूप द्वारा भगवान शिव की विशेष आराधना की गई।
क्यों होती है रावण आरती : सारस्वत ने कहा कि भगवान श्रीराम ने आचार्य स्वरूप में रावण द्वारा पूजा कराने का निर्णय लिया था। इसके लिए जामवंत को लंका में रावण के पास निमंत्रण भेजा गया था। रावण माता सीता को साथ लेकर समुद्र तट पर आया था, जहां भगवान राम ने माता सीता के साथ शिवलिंग की स्थापना कर विशेष पूजा कराई थी और लंकेश को अपना आचार्य बनाया था। लंकेश द्वारा कराई गई पूजा वाली जगह को रामेश्वरम नाम से जाना जाता है।
रावण दहन कुप्रथा : उन्होंने कहा कि रावण का पुतला दहन करना एक कुप्रथा है क्योंकि, सनातन धर्म और हिंदू संस्कृति में एक व्यक्ति का एक बार ही अंतिम संस्कार किया जाता है, बार-बार नहीं। इस मौके पर लंकेश भक्त मंडल के अनेक पदाधिकारी एवं सदस्य मौजूद रहे।