देवी सरस्वती के तीन ऐसे भक्त रहे हैं। जो पहले मंद बुद्धि थे। लेकिन मां सरस्वती की आराधना के बाद वह विद्वानों की श्रेणी में वरिष्ठ क्रम में आते हैं। यह तीन भक्त कालिदास, वरदराजाचार्य और वोपदेव बचपन में अत्यल्प बुद्धि के थे।
कालिदासः महाकवि कालिदास ने हिंदू पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकार संस्कृत में रचनाएं कीं। अभिज्ञानशाकुंतलम् कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है। मेघदूतम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें कवि की कल्पनाशक्ति की विलक्षणता पढ़ी जा सकती है। उन्होंने अपने श्रृंगार रस प्रधान साहित्य में भी आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है।
वरदराज: वरदराज जिन्हें वरदराजाचार्य भी कहा जाता है। वह संस्कृत व्याकरण के महापण्डित थे। वे महापण्डित भट्टोजि दीक्षित के शिष्य थे। भट्टोजि दीक्षित की सिद्धान्तकौमुदी पर आधारित उन्होंने तीन ग्रन्थ रचे जो क्रमशः मध्यसिद्धान्तकौमुदी, लघुसिद्धान्तकौमुदी तथा सारकौमुदी हैं।
वोपदेव: वोपदेव जी विद्वान्, कवि, वैद्य और वैयाकरण ग्रंथाकार थे। इनके द्वारा रचित व्याकरण का प्रसिद्ध ग्रंथ 'मुग्धबोध' है। इनका लिखा कविकल्पद्रुम तथा अन्य अनेक ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। ये 'हेमाद्रि' के समकालीन थे और देवगिरि के यादव राजा के दरबार के मान्य विद्वान थे।