श्रीकृष्ण ने किया था प्रथम सरस्वती पूजन, पढ़ें कथा

वसंत पंचमी का दिन विद्या की अभिलाषा रखने वाले व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। सबसे पहले मां सरस्वती की पूजा के बाद ही विद्यारंभ करते हैं। ऐसा करने पर मां प्रसन्न होती है और बुद्धिमान तथा विवेकशील बनने का आशीर्वाद देती है। विद्यार्थी के लिए मां सरस्वती का स्थान सबसे पहले होता है।

वसंत पंचमी पर देवी सरस्वती की पूजा करने के पीछे पौराणिक कथा है। इनकी सबसे पहले पूजा श्रीकृष्ण और ब्रह्माजी ने ही की है। देवी सरस्वती ने जब श्रीकृष्ण को देखा तो उनके रूप पर मोहित हो गईं और पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं। भगवान कृष्ण को इस बात का पता चलने पर उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं। परंतु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने वरदान दिया कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखनेवाला माघ मास की शुक्ल पंचमी को आपकी पूजन करेगा।
 
ALSO READ: जब स्वयं जन्मदाता ब्रह्मा मोहित हो गए पुत्री सरस्वती पर... पढ़ें कथा
 
यह वरदान देने के बाद स्वयं श्रीकृष्ण ने पहले देवी की पूजा की। सृष्टि निर्माण के लिए मूल प्रकृति के पांच रूपों में से सरस्वती एक है, जो वाणी, बुद्धि, विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। वसंत पंचमी का अवसर इस देवी को पूजने के लिए पूरे वर्ष में सबसे उपयुक्त है क्योंकि इस काल में धरती जो रूप धारण करती है, वह सुंदरतम होता है।
 
सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्माजी ने जब धरती को मूक और नीरस देखा तो अपने कमंडल से जल लेकर छिटका दिया। इससे सारी धरा हरियाली से आच्छादित हो गई पर साथ ही देवी सरस्वती का उद्भव हुआ जिसे ब्रह्माजी ने आदेश दिया कि वीणा व पुस्तक से इस सृष्टि को आलोकित करें। 
 
तभी से देवी सरस्वती के वीणा से झंकृत संगीत में प्रकृति विहंगम नृत्य करने लगती है। देवी के ज्ञान का प्रकाश पूरी धरा को प्रकाशमान करता है। जिस तरह सारे देवों और ईश्वरों में जो स्थान श्रीकृष्ण का है वही स्थान ऋतुओं में वसंत का है। यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया है।

ALSO READ: सरस्वती को वाणी की देवी क्यों कहते हैं?

वेबदुनिया पर पढ़ें