इस बार अगर आप नवरात्रि के त्योहार को वास्तु के संग मनाएंगे तो सोने पे सुहागे वाली कहावत चरितार्थ होगी। आपको ज्यादा कुछ नहीं करना है, बस देवी मां के रूपों के अनुसार ही उनकी दिशा में अगर आप उपासना करते हैं तो फल हजारों गुना बढ़ जाता है।
1. अब प्रथम नवरात्रि को ही लें। प्रथम नवरात्रि शैलपुत्री अर्थात् पर्वत पुत्री मां परांबा दुर्गा जी की प्रथम शक्ति मां शैलपुत्री है जो साक्षात् धर्म स्वरूपा है, क्योंकि प्रथम धर्म को उत्पन्न किया जाता है| मां शैलपुत्री जी की आराधना से धर्म सुस्थिर होता है तथा घर पर धार्मिक वातावरण बनता है| धर्म स्वरूपी मां बैल की सवारी पर पधारती है, बैल साक्षात् धर्म है|
अत: इनकी उपासना दक्षिण-पश्चिम के मध्य में उत्तम होती है| प्रथम नवरात्रि के दिन मां के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है। तथा शरीर निरोगी रहता है।
2. दूसरे नवरात्रि के दिन, द्वितीय मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी, माता की योग शक्ति है। यह मंत्रों की अधिष्ठात्री देवी है। इनके हाथों में कोई अस्त्र शस्त्र नहीं होता। मंत्र शक्ति के कारण जल को अभिमंत्रित करके यह देवी दुराचारी शत्रुओं का विनाश करती है एवं मानव जीवन में नव स्फूर्ति का संचार करती है।
तेज-कांति, प्रकाश इनकी विशेषता है। अगर हम'ऐं' मंत्र का उच्चारण, जो कि इनका बीज मंत्र है, का जाप उत्तर-पूर्व दिशा में करें तो मस्तिष्क का शुद्धिकरण होता है और मन को शांति मिलती है। दूसरे नवरात्रि के दिन मां को शक्कर का भोग लगाएं व घर में सभी सदस्यों को दें। इससे आयु वृद्धि होती है।
3. तीसरे नवरात्रि को मां चंद्रघंटा की आराधना करते हुए मनाया जाता है। मां चंद्रघंटा, इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। यह देवी नाद ब्रह्म (ॐ) और स्वर (नाड़ी, इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना) की अधिष्ठात्री देवी है। महिषासुर के वध के समय मां चंद्रघंटा के घंटे की ध्वनि मात्र से ही महिषासुर की आधी सेना नष्ट हो गई थी।
जो साधक इनकी अराधना करते है वे साहित्य, संगीत और कला में परिपूर्ण होते है। इनका चक्र अनाहत है। इनकी आराधना दक्षिण-पूर्व जिसको इस क्षेत्र में आगे बढ़ना हो या जिसकी इसमें रुचि हो उसको दक्षिण-पूर्व में इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
इनका मंत्र: 'ॐ क्लीं' है। तृतीय नवरात्रि के दिन दूध या दूध से बनी मिठाई, खीर का भोग मां को लगाकर ब्राह्मण को दान करें। इससे दुखों की मुक्ति होकर परम आनंद की प्राप्ति होती है।
4. श्री मां दुर्गा के चतुर्थ रूप का नाम 'कूष्मांडा' है। मां कूष्मांडा सृष्टि के सृजन हेतु चतुर्थ रूप में प्रकट हुई जिनके उदर (पेट) में संपूर्ण संसार समाहित है। मां कूष्मांडा संपूर्ण संसार का भरण-पोषण करती है।
मां का ध्यान और आराधना उत्तर-पश्चिम दिशा में करने से बहुत लाभ मिलता है। जिस निवास स्थान (घर) में मां की आराधना होती है, उस घर में धन-धान्य और अन्न की कमी नहीं होती। इसके साथ ही भक्तों को आयु, यश, बल तथा आरोग्य के साथ सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
मां की कृपा प्रसाद प्राप्त करने के लिए साधको को इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। मंत्र: 'ॐ श्रीं'। मां दुर्गा को चौथी नवरात्रि के दिन मालपुए का भोग लगाएं और मंदिर के ब्राह्मण को दान दें, जिससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय शक्ति बढ़ती है।
5. पंचम स्कंदमाता यानी स्वामी स्कंद कुमार कार्तिकेय जी की माता। स्कंदमाता अपने पुत्र के नाम से ही जानी जाती है। कार्तिकेय जी का लालन-पालन इन्हों ने ही किया। भगवान शंकर व स्कंदमाता की कृपा से ही स्वामी कार्तिक जी देवताओं के सेनापति हुए और देवताओं को विजय दिलाई।
नवरात्रि के पंचम दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है। स्कंदमाता तेज, शौर्य, वीरता एवं वात्सल्य की अधिष्ठात्री देवी है। संतान प्राप्ति हेतु मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है।
मां स्कंदमाता की पूजा पूर्व-उत्तर-पूर्व पर्जन्य देवता के क्षेत्र में और उत्तर-पूर्व दिशा में करने से संतान सुख से वंचित साधकों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। मां की कृपा प्रसाद प्राप्त करने के लिए साधकों को इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
इनका मंत्र: 'या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः है। नवरात्रि के पांचवें दिन मां को केले का नैवेद्य चढ़ाने से शरीर स्वस्थ रहता है।
6. नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है जो शक्ति का एक रूप माना जाता है। उनकी चार भुजाएं हैं और हाथों में तलवार रहती है। मां 'कात्यायनी' के बारे में पुराणों में कहा गया है कि ऋषि कात्यायन के नाम पर ही उनके षष्टम रूप का नाम कात्यायनी देवी पड़ा। यह यज्ञों/ हवन की रक्षक है तथा अन्न और धन कि अधिष्ठात्री देवी है। इनकी आराधना करने से छः सुख मिलते हैं जो इस प्रकार है:-
1. धन का आगमन होता है।
2. साधक निरोग रहते हैं।
3. मनचाहा और मीठा बोलने वाला जीवनसाथी मिलता है।
4. संतान आज्ञाकारी होती है।
5. साधक को अपने ज्ञान से धनलाभ मिलता है।
6. जिन कन्याओं के विवाह में रुकावट हैं उन्हें शीघ्र वर मिलता है।
मां कि कृपा प्राप्त करने के लिए साधकों को इनके मंत्र का उच्चारण दक्षिण-पूर्व दिशा में करना चाहिए। उनका मंत्र: 'ॐ क्लीं कात्यायन्ने नमः' है और नवरात्रि के छठे दिन मां को शहद का भोग लगाएं। जिससे आपके आकर्षण शक्ति में वृद्धि होगी।
7. इसी तरह से मां कालरात्रि को नवरात्रि के सातवें दिन पूजा जाता है। मां दुर्गा की सातवीं शक्ति मां 'कालरात्रि' के नाम से जानी जाती है। इन्हें महारात्रि, एकवीरा, कालरात्रि और कामधा भी कहा जाता है। मां के दो स्वरूप है: एक है सतोगुणी और दूसरा तमोगुणी। मां कालरात्रि तमोगुणी है व तमोगुण से ही असुरों का अंत होता है।
मां कालरात्रि की पूजा रात्रि में विशेष विधान के साथ की जाती है। मां के एक हाथ में चंद्रहास तथा दूसरे हाथ में असुरों का कटा हुआ सिर है। इनकी आराधना करने से साधकों की हर इच्छा पूर्ण होती है।
मां कालरात्रि ऊपरी बाधाएं जैसे कि टोना-टोटका, नजर लगाना आदि को काट देती है। मां की कृपा प्राप्त करने के लिए साधकों को इनके मंत्र का जाप दक्षिण दिशा में करना चाहिए।
इनका मंत्र: 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:' है और सातवें नवरात्रि पर मां को गुड़ का नैवेद्य चढ़ाने व उसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है एवं आकस्मिक आने वाले संकटों से रक्षा भी होती है।
8. मां 'महागौरी' नवरात्रि के आठवें दिन दुर्गा अष्टमी को समर्पित है। मां दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। यह अष्टम सिद्धि है तथा सभी शक्तियों का समन्वय इन्हीं से हुआ है। इन्हें अनिमा, लघिमा, गरिमा, महिमा, प्राप्ति, प्राक्यमा, ईस्तव और वशित्व नामों से भी जाना जाता है। यह दाम्पत्य जीवन की अधिष्ठात्री देवी है।
इनकी आराधना करने से साधकों को आयु, आरोग्यता व धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
मां की कृपा प्राप्त करने के लिए इनके मंत्र का जाप दक्षिण-पश्चिम दिशा में करना चाहिए। निम्न मंत्र का जाप करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और मां का आशीर्वाद बना रहता है।
'शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे,।
सर्वस्यार्तिहरे देवि! नारायणि! नमोस्तुते।
9. इसके साथ ही दुर्गाष्टमी वे नवमी को निम्न मंत्र का जाप करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥
नवरात्रि के आठवें दिन माता रानी को नारियल का भोग लगाएं। इससे संतान पक्ष से भी खुशी मिलती है तथा नवरात्रि की नवमी के दिन तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान दें। इससे मृत्यु भय से राहत मिलेगी। साथ ही अनहोनी होने की घटनाओं से बचाव भी होगा।
(इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अनुभूति है, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।)