यह बुद्धि के अधिदेवता विघ्ननाशक हैं। गणेश शब्द का अर्थ है गणों का स्वामी। हमारे शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां तथा चार अंतःकरण हैं तथा इनके पीछे जो शक्तियां हैं उन्हीं को चौदह देवता कहते हैं।
वास्तुविद् मनोज जैन गणेश की महत्ता बताते हुए कहते हैं कि जीवन के हर क्षेत्र में गणपति विराजमान हैं। देवताओं के मूल प्रेरक यही हैं। शास्त्रों में भी कहा गया है कि गणपति सब देवताओं में अग्रणी हैं। उनके अलग-अलग नाम व अलग-अलग स्वरूप हैं, लेकिन वास्तु में गणेशजी का बहुत महत्व है। गणेशजी अपने आपमें संपूर्ण वास्तु हैं।
हमारे पुराणों में कहा गया है कि हमें श्वेत गणपति की पूजा करनी चाहिए। इससे जीवन में भौतिक सुख एवं समृद्धि का प्रवाह होता है। मूषक जासूसी से सूचनाएं एकत्र करने का प्रतीक है। यह राहु के दोष को भी दूर करता है। गणेशजी के हाथी जैसे मुख की अलग ही मान्यता है। गणेश का गजमुख बुद्धि का अंकुश, नियंत्रण, अराजक तत्वों पर लगाम लगाने का प्रतीक माना जाता है।