प्रकाश झा ने बॉबी देओल को लेकर ऑश्रम का पहला सीज़न बनाया था तब भी यह बहुत ज्यादा दमदार सीरिज नहीं थी। लेकिन सीरिज़ को इतना देखा गया कि नए रिकॉर्ड बन गए। लोकप्रियता की नई ऊंचाइयां हासिल कर ली। और, फिर शुरू होता है इस लोकप्रियता का फायदा उठाना। तुरंत आश्रम सीजन 2 हाजिर कर दिया। यह पहले सीज़न की तुलना में कमतर था, लेकिन लोगों ने हाथों-हाथ लिया तो तीसरा सीज़न आना स्वाभाविक था। बदलाव ये हुआ कि नाम 'आश्रम' की जगह 'एक बदनाम आश्रम 3' कर दिया, बाकी सब कुछ देखा दिखाया सा या दोहराव से भरा लगता है।
जैसा कि सभी जानते हैं कि इसकी कहानी उनक बदमाश बाबाओं के बारे में है जो धर्म की आड़ में तमाम तरह के षड्यंत्र रचते हुए अपना उल्लु सीधा करते हैं। बाबा निराला (बॉबी देओल) के कारनामे और उसकी इच्छाओं को हम पहले दो सीज़न में देख चुके हैं। तीसरे सीज़न में उन बातों को आगे बढ़ाया गया है। पॉवर के प्रति बाबा की चाहत इतनी बढ़ जाती है कि वे अपने आपको 'भगवान' कहलाना पसंद करते हैं। इनके साथ कुछ ट्रैक जोड़ कर कहानी को आगे बढ़ाया गया है।
दरअसल सीरिज के लेखकों के पास सीज़न तीन के लायक मसाला ही नहीं था। चूंकि सीज़न 3 बनाना था, इसलिए किसी तरह बना दिया गया। लगभग 45 मिनट के दस एपिसोड हैं जो कायदे से 15 मिनट के होने चाहिए थे क्योंकि बात कहने को कम थी इसलिए इसे रबर की तरह खींचा गया जिससे सीरिज उबाऊ बन गई है। कुछ दृश्य तो बेहद बोरिंग है। कहानी बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है। सीज़न 3 में ज्यादा नया नहीं है, सब कुछ दोहराया सा लगता है इस कारण दर्शकों की रूचि घटती जाती है।
बॉबी देओल अब बाबा निराला के रोल में जम गए हैं। इस सीज़न में उनके अभिनय में निखार आया है। उनके किरदार की विशेषताएं अब दर्शकों को पसंद भी आ रही है। चंदन रॉय सान्याल की एक्टिंग शानदार रही। ईशा गुप्ता को भी इस बार जोड़ा गया, लेकिन उनका रोल कुछ खास नहीं है। अन्य अभिनेताओं की एक्टिंग भी उम्दा है।