अच्छे चरित्र के मायने

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हमारे समाज ने कुछ चीजों के लिए ऐसी परिभाषाएँ बना रखी हैं कि उनसे आगे सोचा ही नहीं जाता। एक अच्छे चरित्र के व्यक्ति से आमतौर पर मतलब समाज के अनुसार वह है जो बंधी-बंधाई परिपाटी पर चलता हो तथा ऐसा कोई भी काम न करता हो, जो समाज द्वारा "वर्जित" की श्रेणी में आता है।

इस वर्जना के भी कुछ ही सीमित मापदंड हैं। ऐसे में कई बार वे लोग भी अच्छे चरित्र के माने जाते हैं, जो झूठ बोलकर या कालाबाजारी कर मंदिरों में खूब दान-पुण्य करते हैं, बाहर असहाय लोगों की मदद करते हैं, लेकिन घर के लोगों से अभद्रता से पेश आते हैं।

अपनी पत्नी के प्रति ईमानदारी रखते हैं, लेकिन दफ्तर में कार्य के लिए भ्रष्ट आचरण करते हैं, अपनी वृद्धा माँ को रामायण पढ़कर सुनाते हैं और घर के कचरे समेत पान की पीक भी सड़क पर फेंकते हैं। तो क्या अच्छा चरित्र केवल इन्हीं कुछ चीजों से बनता है? आइए युवाओं से जानें।

'हमारे समाज में अधिकांशतः आदमी का चरित्र रुपए पर तौला जाता है। यदि कोई व्यक्ति संपन्न है, लेकिन उसका आचरण भ्रष्ट है तो भी समाज उसे भले-मानुस के तौर पर स्वीकार लेगा, जबकि गरीब आदमी की छोटी-सी गलती से भी उस पर लोग चरित्रहीन होने का ठप्पा लगा देंगे,' एमबीए कर रहे बसंत रुनवाल कहते हैं।

बसंत के अनुसार असल में सद्चरित्र वह है, जो लोगों को धोखा न देता हो, किसी भी रूप में दुनिया के प्रति अपने व्यवहार में कठोरता न आने देता हो तथा स्वयं के और देश के प्रति ईमानदार रहता हो। फिर निजी जिंदगी में वह क्या कर रहा है, केवल उस बात को चरित्र का मापदंड नहीं बनाना चाहिए।

'मैं मानती हूँ कि किसी के चरित्र पर टिप्पणी करने वाला व्यक्ति वही कहता है जैसा वह खुद होता है। असल में यदि आप जानते हैं कि अच्छा चरित्र सच में क्या है तो आप सामने वाले को भी उसी स्केल पर तौलेंगे और हमारा समाज वही करता है। ये आपका नजरिया होता है, जिससे आप किसी के चरित्र को आँकते हैं,' कहती हैं- लेक्चरार रम्या वेंकट।

रम्या मानती हैं कि किसी भी व्यक्ति में अगर वैचारिक आधुनिकता, दिमागी सुदृढ़ता, नम्रता तथा ईमानदारी है तो वह अच्छे चरित्र की निशानी हो सकती है। वे यह भी मानती हैं कि समाज चरित्र का प्रमाण-पत्र संकुचित सोच के साथ देता है, पर अब युवा ऐसा नहीं सोचते और युवाओं की यह सोच समाज के नजरिए को भी बदल रही है।

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