गुजरात की क्षमा बिंदु की वजह से सोलोगैमी शब्द इन दिनों चर्चा में हैं। गूगल सर्च इस शब्द से भरा पड़ा है। लोगों के बीच प्रचलित हो रहे सोलोगैमी शब्द के बारे में अपनी अपनी समझ से कयास लगाए जा रहे हैं। कोई लड़की को गलत, मेन्टल, साहसी, बोल्ड, अटेंशन सीकर आंक रहा है। व्यक्तिगत रूप से बिंदु जी के बारे में जाने कोई भी टिप्पणी करना बेहद ही गैरपेशेवर होगा। हालांकि सोलोगैमी के मनोविज्ञान पर मैं ये कह सकता हूँ कि यह घटना बेहद सामान्य घटना से लेकर मन के घावों से भरी हो सकती है। इतिहास के हिसाब से यह नई घटना नहीं है।
इसके कई कारण देखने को मिलते हैं कई बार महिलाओं को लगता है कि वो खुद के साथ ज्यादा बेहतर तरीके से रह सकती हैं, उनका और किसी के साथ रहना मुश्किल होगा। सोलोगैमी अपनाकर लड़कियां खुद से और जीवन से जुड़ाव महसूस करती हैं और स्वयं को माफ कर पाना ज्यादा आसान होता है। आत्मा के घावों में मलहम स्वयं को स्वीकार करके ही लगाया जा सकता है। कई बार रिश्तों में बार बार समस्याएं आना सोलोगैमी की तरफ मोड़ सकता है। बचपन के कटु अनुभव, अत्यधिक प्रशंसा, गुणवत्ता हीन पैरेंटिंग के चलते कई बार स्वयं के प्रति प्यार इतना ज्यादा हो जाता है जिसे हम नारसिससिस्टिक पर्सनालिटी स्वभाव कहते हैं, इसकी उपस्थिती में भी लोग सोलोगैमी के लिए जा सकते हैं।
एक बात तो तय हैं कि कोविड के बाद लोगों के जीवन के प्रति नज़रिए में बेहद परिवर्तन देखने को मिल रहा है। पोस्ट कोविड सोलोगैमी के कई मामले देखने को मिल रहे हैं। सोलोगैमी का अभ्यास पिछले दो दशकों से देखने को मिल रहा है। हालांकि भरभराते भावों, रिश्तों के चलते इस दशक में सोलोगैमी एक न्यू नार्मल सा बन सकता है। लेकिन जरूरत है कि समाज एक जुट होकर स्नेह का प्रवाह करे ताकि सेल्फडिवोर्स ही न हो,स्वयं से प्यार कर रहा व्यक्ति ही दूसरे से जुड़ सकता है।