सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गलत छवि प्रस्तुत करने वाले चुटकुले बांटती औरतें !
-स्वाति शैवाल
सेहत के लिए टॉनिक है हंसना ऐसा कहा जाता है। चुटकुले सुनाना, पढ़ना-पढ़ाना एक सामान्य प्रक्रिया है और आजकल सोशल मीडिया पर इसके लिए बकायदा अलग से पेजेस हैं, प्लेटफॉर्म्स है। गूगल पर किसी भी भाषा में बस टाइप कीजिये और धड़ाधड़ आपके सामने कई ऐसे पेजेस खुलते जाएंगे। इनमें सबसे ज्यादा चुटकुले होंगे पति-पत्नी और महिलाओं से जुड़े। इन्हें सभी रस लेकर पढ़ते हैं। पुरुष तो खैर पढ़ते ही हैं लेकिन महिलाएं भी इनका बुरा नहीं मानती, बल्कि बकायदा उन्हें अपने सोशल मीडिया ग्रुप्स में शेयर और फॉरवर्ड भी करती हैं। सवाल यह उठता है कि आमतौर पर अपने परिधानों, हाइट-वेट और आदतों पर पर्सनल कमेंट किये जाने पर आहत हो जाने वाली महिलाएं इतनी सहिष्णु कैसे हो जाती हैं? क्यों वे ऐसे चुटकुलों पर आपत्ति नहीं लेतीं जिनमें उनको लेकर वाकई बुरा लगने वाली बात कही जाती है?
खुद ही मजाक बनती हैं,
खुद पर प्रश्न उठाती हैं
ये औरतें बनती हैं या
बनाई गई हैं?
इस विषय को लेकर जब मैंने पहली बार अपनी एक मित्र से करीब सालभर पहले बात की थी तब से अब तक यह इसको लेकर मेरे अनुभव में और इजाफा ही हुआ है। मैं एक व्हाट्सएप ग्रुप की सदस्य हूँ इस ग्रुप में केवल महिलाएं हैं और ये सभी मेरे बचपन के स्कूल से जुडी हुई हैं। इनमें कुछ सीनियर्स हैं, कुछ सुपर सीनियर्स और कुछ जूनियर्स। करीब 100 महिलाएं यहाँ हैं जिनमें से 20-25 रोज संदेश भेजकर एक्टिव रहती हैं तो 20-25 मेरे जैसी भी हैं जो साल में मुश्किल से एक या दो बार किसी सामूहिक संदेश का जवाब देती हैं। सभी महिलाएं पढ़ी-लिखी हैं और कुछ तो बहुत अच्छे पद पर भी हैं। ग्रुप पर आने वाले मैसेजेस का प्रवाह इतना तेज होता है कि अक्सर मैं सारे मैसेज देख नहीं पाती।
एक दिन इसी ग्रुप से मेरी एक अच्छी मित्र ने मुझे कॉल किया और कहा कि मैं अभी ग्रुप में मैसेज देखूं और फिर उससे बात करूँ। मेरी मित्र दुखी और उदास लग रही थी। मैंने उससे कारण पूछा तो उसने पहल मैसेज देखने पर जोर दिया। वह मैसेज एक चुटकुला था जो महिलाओं की शारीरिक स्थिति का मजाक उड़ाता था। उसे पढ़कर मैं जवाब दिए बिना नहीं रह पाई और मैंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए लिखा कि कोई महिला इस तरह के मैसेजेस कैसे शेयर कर सकती है! जवाब में तुरंत पहले तो वह मैसेज डिलेट कर दिया गया और जिन्होंने भेजा था उन्होंने क्षमा मांगते हुए लिख दिया- Sorry, sent by mistake! फिर एक लाइन लिखी गई कि घर के बच्चों ने खेल खेल में मैसेज शेयर कर दिया था। मैं ये दोनों जवाब जानकर हैरान थी।
गलती से भी किसी महिला का भद्दा मजाक उड़ाने वाली चीज कोई कैसे शेयर कर सकता है और अगर ये बच्चों ने शेयर किया है तब तो और भी बड़ी समस्या वाली बात है क्योंकि बच्चों ने भी उसे पढ़ा होगा। इसके बाद उस सहेली ने बताया कि वो चुटकुला शेयर करने वाली हमारी एक सीनियर हैं और इसके पहले भी इस तरह के चुटकुले शेयर कर चुकी हैं। इससे भी दुखद बात यह कि इन चुटकुलों पर बकायदा हंसी वाले इमोजी और कई तरह की अन्य व्यंग्यात्मक जवाब अन्य महिलाओं ने भी लिखे। फिर मेरी मित्र ने बताया कि यह पहली बार नहीं है। इसके पहले एक अस्त-व्यस्त कपड़ों वाली महिला का वीडियो और ऐसे ही कई चुटकुले ग्रुप में शेयर किये जाते रहे हैं और कई महिलाएं उन पर हंसती भी हैं और बकायदा टिप्पणियां भी देती हैं। आज हद हो गई इसलिए उसने मुझे बताया।
मेरे दिमाग में यह बात खलल मचाने लगी और मैंने बकायदा इसको लेकर एक रिसर्च करने का सोचा। मैंने अपनी कई परिचित मित्रों को इंटरनेट से ऐसे जोक्स ढूंढकर शेयर किये और सुनाये एवं उनकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार किया। करीब 50 महिलाओं को मैंने यह जोक्स भेजे और उनमें से 10-15 ने बकायदा हंसी वाले इमोजी तुरंत भेज डाले। जोक सुनने के बाद भी ज्यादातर महिलाओं की प्रतिक्रिया सामान्य थी। महज 5-6 ऐसी थीं जिन्होंने इस पर आपत्ति ली और 10 ऐसी थीं जिन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी केवल मेरा चेहरा पढ़ती रहीं लेकिन कुछ बोली नहीं। यह कुछ समय पूर्व की ही बात है जब नेशनल हेल्थ सर्वे के दौरान 52 प्रतिशत महिलाओं ने कहा था कि पति अगर उनको पीटे, तो इसमें गलत क्या है। जाहिर है कि जब उन्हें पीटे जाने से गुरेज नहीं तो चुटकुले तो बहुत मामूली बात हुई।
Dr. Rajesh Pandey
ग्रुप में होने वाली एक्सेप्टेंस बुरी चीजों को भी ट्रेंड बना देती है
लखनऊ के ख्यात मनोचिकित्सक डॉ. राजेश पांडे के अनुसार- हमारा जो साइकोलॉजिकल ढांचा है उसमें शुरुआत से मेल यानी पुरुष पोलीगेमी विचारधारा को मानने वाले होते हैं। वह खुद को नियंत्रक के रूप में देखते हैं। इसके साथ ही उसके दिमाग में बचपन से बैठाया जाता है कि वह अलग है। ऐसे में विवाह या रिलेशनशिप में बंधना उसके लिए अनकम्फर्टेबल फीलिंग होती है। इस फीलिंग से उबरने, अपनी गलतियों को छुपाने और सोशल एक्सेप्टेंस के लिए वे महिलाओं पर जोक बनाते हैं। धीरे धीरे यही ट्रेंड में आने लगता है। यहां यह याद रखना जरूरी है कि कोई बुरी चीज भी जब एक्सेप्टेंस में आ जाती है तो वह ट्रेंड बन जाती है। पुरुषों की इस विचारधारा को बनाये रखने में उनके आस पास मौजूद महिलाओं की भी भूमिका होती है। जबकि औरतों को इस तरह की सामाजिक व मानसिक ग्रूमिंग मिलती है कि ज्यादातर वे जो ट्रेडिशन में मिलता है उसे बिना सवाल किये सहजता से ले लेती हैं। इसमें उनका मजाक बनाया जाना भी शामिल है। उन्हें लगता है सब लोग बोल रहे हैं तो ऐसा ही होता होगा। इसलिए वे इसपर प्रश्न ही नहीं उठातीं। जब कोई प्रश्न नहीं होता तो जो औरतें इस बात को समझने और प्रश्न उठाने की स्थिति में रहती हैं वे भी इसे नॉर्मल मानकर इग्नोर करने लगती हैं और इसलिए किसी का ध्यान इस ओर जाता ही नहीं। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि यह महिलाओं की मानसिक और सामजिक स्थिति से जुड़ा है। इस पर प्रश्न और सुधार दोनों ही होना जरूरी है।
40 प्रतिशत से अधिक महिलाएं करती हैं व्हाट्सएप का उपयोग
कुछ ही समय पूर्व हुए एक सर्वे में यह आंकड़ा सामने आया था कि भारत में करीब 40-44 प्रतिशत महिलाएं व्हाट्सएप का उपयोग करती हैं, जबकि पुरुषों का प्रतिशत इस मामले में 31 प्रतिशत ही था। इस सर्वे के अंतर्गत भारत के 13 राज्यों की चार हजार महिलाओं को शामिल कर उनकी राय ली गई थी। व्हाट्सएप या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने निश्चित ही महिलाओं को कई मायने में बहुत स्वतंत्रता और खुद को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया है लेकिन इस तरह के चुटकुलों को फॉरवर्ड करना निश्चित ही उक्त दोनों श्रेणियों में नहीं आता।
Shobha Ojha
महिलाएं इसे भी मनोरंजन की तरह ले लेती हैं
मध्यप्रदेश महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष शोभा ओझा कहती हैं- इस तरह के जोक्स पब्लिकली सुनना या कहना बहुत आम है कि महिलाएं पतियों को बेलन से मारती हैं या लड़कियों को तो मेकअप में बहुत समय लगता है जबकि असलियत इससे अलग होती है। वाकई में कितनी महिलाएं हैं जो सच में पतियों को बेलन से पीटती होंगी! जब महिलाएं खुद इस तरह के जोक्स फॉरवर्ड या शेयर करती हैं या पब्लिकली सुनती हैं तो कई बार इसके पीछे एक तरह की आनंद की कल्पना भी हो सकती है कि मैं इस तरह की भी हो सकती हूँ। उदाहरण के लिए बेलन मारने वाली बात को ही लें तो जो महिला उलटा घर में पति से पिटती भी होगी वह इस चुटकुले से क्षणिक आनंद महसूस कर लेती है। अब यह एक प्रकार की विडंबना ही कहिये कि इस झूठे चुटकुले में वे आनंद ढूंढ रही होती हैं। मुश्किल यह है कि असल में हमारे पास पहले ही महिलाओं से संबंधित गंभीर मुद्दों को लेकर इतना काम होना बाकी है कि उनके सामने ये चुटकुले तो वाकई बहुत छोटी बात लगते हैं।
और अभी इस आर्टिकल को लिखते लिखते एक वीडियो महिलाओं के उस ग्रुप में आया है जिसमें बताया गया है कि किस तरह अच्छे कपड़े न पहनने, संयुक्त परिवार न होने और संस्कृति से दूर होने से बलात्कार जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। मैं हतप्रभ हूँ और मेरे दिमाग में मणिपुर की महिलाएं और सतना की 12 वर्षीय बच्ची घूम रही है। इतनी देर में उस वीडियो पर कुछ महिलाओं के लाइक और उसके समर्थन में टिप्पणियां भी आ चुकी हैं और इस बार भी मैं जवाब दिए बिना नहीं रह पाई हूँ। काश मेरे जवाबों की चीख सोई हुई महिलाओं को जगा दें।