साल-दर-साल उम्र बढ़ती जाती है। बचपन, जवानी में और जवानी बुढ़ापे की ओर अग्रसर होती है। पढ़ाई, करियर की चिंता, घर-परिवार की जिम्मेदारी, बच्चों का पालन-पोषण, समाज के रीति-रिवाजों, रिश्तों का निर्वाह इन सब में गुम हो जाते हैं हमारे अपने सपने, अपनी इच्छाएं, आकांक्षाएं। अपनी मर्जी से चलने का सुख असीम संतोष व सुकून देता है। लेकिन अपनी गलत सोच में, गलत आदतों में बदलाव भी आवश्यक है। नए वर्ष में कई संकल्प लेने का आव्हान होता है लेकिन जनवरी गुजरते-गुजरते सबकुछ 'पहले-सा' हो जाता है व नए साल का जोश ठंड के आगोश में दुबक जाता है। लेकिन अगर जीवन को बेहतर बनाना हो तो स्वयं में कुछ बदलाव लाने होंगे, जो बेहतर भविष्य की नींव बनेंगे।