प्यार मन की कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति है, जिसका स्वर उम्र बढ़ने के साथ-साथ मुखर होता जाता है। अगर हमें प्यार हो जाता है, तो हमें हर चीज खूबसूरत नजर आने लगती है और हम दुनिया को एक अलग ही दृष्टि से देखने लगते हैं। यह रिश्ता वो रिश्ता होता है, जिसके बंधन में बँधते ही हमें इसे ताउम्र जीने की तमन्ना होती है और दिल करता है हम हमेशा अपने प्रेमी के करीब रहें और उसके आगोश में खोए रहें।
पहरे लगाने से बढ़ता है प्यार :- कहते हैं प्यार नदी की उस धार की तरह होता है, जो मजबूत बेड़ियों को तोड़कर भी अपनी राह बना लेता है। प्रेमियों को समाज जितना अधिक तिरस्कृत, अपमानित व बंधनों में रखता है। उनके प्रेम का स्वर उतना ही अधिक मुखर होता जाता है। उनके इस जोश का कारण वो प्यार होता है, जो इन्हें दुनिया के हर बंधनों व रस्मो-रिवाज की हर दीवारों को तोड़ने को प्रेरित करता है।
प्रेमी को कैद करने से प्यार नहीं रुकता, उसकी धड़कनें नहीं रुकती। जिसकी हर साँस के साथ प्यार जुड़ा हो, उसे आपके क्रोध की लाठी की मार का भी कोई डर नहीं रहता है।
कहते हैं प्यार नदी की उस धार की तरह होता है, जो मजबूत बेड़ियों को तोड़कर भी अपनी राह बना लेता है। प्रेमियों को समाज जितना अधिक तिरस्कृत, अपमानित व बंधनों में रखता है। उनके प्रेम का स्वर उतना ही अधिक मुखर होता जाता है।
प्रेमी है पागल नहीं :- 'पागल' शब्द प्रेमियों के लिए एक जाना-पहचाना संबोधन होता है। उन्हें शायद पागल इसलिए कहा जाता है क्योंकि समाज उन्हें व उनकी भावनाओं को समझ नहीं पाता है। जब यह रिश्ता समाज की समझ से परे हो जाता है और प्रेमियों के हौसले बुलंद हो जाते हैं तब समाज के ठेकेदार यह कहते हैं कि 'अब तो ये पागल हो गए हैं।'
पागल शब्द कहना तो बड़ा आसान है परंतु जरा उनके दर्द को भी समझिए, जिनकी भावनाओं पर आपने आघात किया है। जिन्हें दर-दर की ठोकरें खाने को, चोरी-छिपे इस रिश्ते को जीने को विवश किया है।
जरा हमें भी समझो :- प्रेमियों और समाज के बीच टकराव का कारण एक-दूसरे के प्रति समझ की कमी है। बड़े बच्चों को नहीं समझते और बच्चे बड़ों को। यही कारण है कि बात-बात पर उनके बीच टकराव होने लगता है। बगैर कुछ सोचे-समझे वे प्रेमियों पर इल्जाम लगाकर उन्हें अपनी जिंदगी से बेदखल कर देते हैं।
आपके बच्चों ने प्यार किया है कोई गुनाह तो नहीं किया है। हो सकता है उनकी पसंद आपकी पसंद से बेहतर हो। अपने बच्चों से मनमुटाव पैदा करें और इस विषय पर एक खुली बहस करें। कुछ सुने व समझे बगैर ही निर्णय सुना देना समझदारी नहीं बल्कि मूर्खता है।