केस 1 : विवाह के बाद ही रहस्यमयी परिस्थितियों में पति की मौत। पत्नी को शक कि ससुराल वालों ने पैसे की लालच में उसके पति की हत्या की। क्योंकि न तो पति को कोई बीमारी थी और न ही कोई दुर्घटना हुई। सास, जेठ, देवर ने पति के धंधे पर कब्जा कर लिया और बहू के साथ मारापीटी की। उसे जान से मारने की धमकी दी गई और घर से निकाल दिया गया। परिवार परामर्श में केन्द्र शिकायत दर्ज। प्रकरण की गंभीरता एवं आवेदिका की आवश्यकता के आधार पर घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज। शादी के बाद से ही मायके से बार-बार पैसे लाने के लिए कहा गया। बहू के नौकरी-पेशा होने के बाद भी उसे पैसे के लिए परेशान किया जाता रहा। एक बेटे ने भी ससुराल वालों का दिल नहीं पिघलाया। बहू ने ही मकान लिया। घर के सारे शान-ओ-शौकत के सामान लिए। मायके वाले और बहू सीधे होने के कारण हर बात मानते गए और पैसे देते रहे। सास-ससुर और पति ने मानसिक प्रता़ड़ना दी। पति ने इतना मारा कि पसलियां टूट गईं। पति ने सिर के बाल उखा़ड़ डाले। तीन महीने तक घर में कैद करके रखा। मायके वालों तक जैसे-तैसे खबर पहुंची। मां ने महिला संगठनों के साथ मिलकर कैद से निकाला। परिवार परामर्श केन्द्र में प्रकरण दर्ज। गोरखपुर पुलिस ने पति के साथ मिलकर बहुत परेशान किया। पिछले एक साल से प्रकरण न्यायालय में चल रहा है। न्यायालय के पहले फैसले से पीड़िता खुश नहीं क्योंकि वापस उसे ससुराल में रहने के लिए कहा गया है।
केस 2 : शादी के बाद से ही ससुराल में प्रता़ड़ना मिलनी शुरू हो गई। बात-बात पर ताने, मारापीटी और अपशब्द। सास, ननद और पति द्वारा मानसिक और शारीरिक प्रता़ड़ना। डॉक्टर के मना करने के बाद भी गर्भवती फिर जान का खतरा होने पर गर्भपात कराया गया। यही स्थिति तीन बार हुई। मायके वालों से बात करने और मिलने नहीं दिया जाता था। पैसे-पैसे को मोहताज कर दिया गया। हद तब हो गई जब अपनी ही बहू के साथ ससुर ने जबर्दस्ती की। जैसे-तैसे मायके वालों तक खबर पहुंची। जान से मारने की धमकी दी गई। बहू के माता-पिता के साथ मार पीट। माता-पिता ब़ड़ी मुश्किल से बेटी की जान बचाकर उसे घर ले आए। परिवार परामर्श में शिकायत दर्ज। प्रकरण न्यायालय में है पर कोई परिणाम नहीं आया। पेशी पर पेशी ब़ढ़ती जा रही है। शासन के आदेश के अनुसार घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 महिला बाल विकास विभाग द्वारा संचालित किया जाता है। विभाग से प्राप्त जानकारियों पर ध्यान दें तो जब से अधिनियम बना है यानी 2006 से अभी तक शहर में सिर्फ 600 मामले ही आए हैं जबकि परिवार परामर्श केन्द्रों की संख्या तो कुछ और ही हकीकत बयान करती है।