पिछले दिनों बेटमा में दो लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार की खबर जिसने सुनी सन्न रह गया। अभी इस शॉक से जनता उबरी भी न थी कि इसी किस्म की और-और दुर्घटनाओं की खबरें आने लगीं। अपराधी प्रवृत्ति वाले लोगों का दुस्साहस कितना बढ़ गया है। लगता है न उन्हें कानून का खौफ है, न सजा का डर।
Kaptan
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उनमें मनुष्य का दिल और नैतिकता की भावना का तो सवाल ही कहां है। मगर हमारा समाज भी अजीब है, ऐसी घटनाएं होने पर अक्सर हैवानियत की निंदा करने के स्थान पर लड़कियों को ही दोष देने लगता है। भारतीय समाज में बलात्कार के प्रति ऐसी मानसिकता है कि इसमें जो शिकार हुई वह मुंह छुपाती है और बलात्कारी निडर घूमता है।
जिस विशेष घटना पर खबरें बनती हैं, हल्ला मचता है उस पर राजनेताओं द्वारा कार्रवाई करने की बात होती है। महिला संगठन दबाव भी बनाते हैं। इस तरह कुछ मामलों में कार्रवाई आगे भी बढ़ती है। मगर कार्रवाई अंजाम पर पहुंचकर आरोपियों को दंड मिलने तक बात पहुंचना अक्सर संभव नहीं होता।
थोड़ी-बहुत अखबारबाजी, बयानबाजी के पश्चात, फॉलोअप में शिकार और उसका परिवार अकेला रह जाता है। मीडिया, जनता और आश्वासन देने वाले, हर कोई लंबी न्याय प्रक्रिया के दौरान आवेश की तीव्रता खो बैठते हैं। तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर, दबाव बनाकर अपराधी छुड़ा लिए जाते हैं। यह बात अपराधी जानते हैं कि उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। वे रोज देखते हैं सब कुछ करके भी गुंडे छूट जाते हैं। इसीलिए उनमें निडरता व दुःसाहस बढ़ता है। राजनीतिक प्रश्रय ने भी अपराधियों के हौसले बहुत बढ़ाए हैं।
भारत में इस समय जो सामाजिक-राजनीतिक हालात हैं उससे भी अपराधियों का दुस्साहस बढ़ा हुआ है और स्त्रियों की सुरक्षा खतरे में है। दक्षिण के एक महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्वयं चलती विधानसभा में अश्लील वीडियो देखने में मग्न थे। लोकतंत्र के मंदिर और स्वयं के पद की गरिमा का इतना भी भान जिसे नहीं, वह बारी आने पर दूसरों को न्याय कैसे दिलाएंगे?
क्या ऐसे लोगों के लिए औरत सिर्फ एक मांस का टुकड़ा नहीं? वहीं एक दूसरी पार्टी के एक राजनेता जो हत्या व अश्लील वीडियो से संबंधित भंवरीदेवी कांड में आरोपी बताए जा रहे हैं, वे जमानत पर विधानसभा जाने की अर्जी लगा रहे हैं, ताकि बजट सत्र में शामिल हो सकें! क्या इस बेशर्मी की ओर जनता का ध्यान गया है, जो कल उन्हें चुनाव जितवाएगी या फीते काटने बुलाएगी?
बड़े-बड़े अपराधी जेलों से चुनाव लड़ रहे हैं। जिस व्यवस्था में पुलिस पकड़ ले तो नेता छुड़ा ले जाते हैं। यानी रक्षक ही भक्षक हैं। जहां गवाहों को धमकियां मिलती हैं, जहां गवाह और वादी की सुरक्षा के लिए कोई प्रबंध नहीं है, वहां दिनदहाड़े अपराध करने का असामाजिक तत्वों का हौसला बढ़ेगा ही। देश और समाज में स्त्रियों के लिए सुरक्षित माहौल बने, इसके लिए समाज में नैतिकता और राजनीति में शुचिता की दरकार है।