जाने क्या होगा रामा रे...

मंगलवार, 22 मार्च 2011 (17:03 IST)
PTI
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भारत में क्रिकेट आज सिर्फ धर्म ही नहीं बल्कि पूरे देश की धड़कन बढ़ाने वाला जादू बन गया है। वेस्ट इंडीज को हराने के बाद टीम इंडिया क्वार्टर फाइनल में पहुँच चुकी है, लेकिन वहाँ उसका सामना होगा ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम े। सभी की साँसें फूलने लगी हैं। 2003 के फाइनल में विश्वकप को अपनी झोली में डालने से भारत को इसी टीम ने रोका था।

क्या इस बार धोनी एंड कंपनी 1983 का करिश्मा दोहरा सकेंगी? क्या अपनी ही धरती पर हम विश्व विजेता बन पाएँगे? क्या ऑस्ट्रेलिया जैसी खुर्राट टीम को पानी पिलाने का दम हम दिखा सकेंगे?

ऐसे ही न जाने कितने सवाल है जो जेहन में घुमड़ रहे हैं... भारतीय टीम के हालिया प्रदर्शन को देखते हुए फाइनल में पहुँचने तक डर बना रहना वाजिब है। गाँव-कस्बे के चौपाल-चौराहों और शहरों के हर गली-नुक्कड़ पर लगी पान की दुकानों पर खड़े आम आदमी से लेकर बॉलीवुड और उद्योग जगत तक टीम इंडिया से ढेरों उम्मीदें लगाए बैठा है। अभी सबसे बड़ा सवाल है कि क्या 24 मार्च को भारत क्वार्टर फाइनल के नॉकआउट मुकाबले में सबकी उम्मीदें बरकरार रख पाएगा?

क्रिकेट भारत की रगों में इस कदर रच-बस गया है कि अब खास से लेकर आम आदमी तक सभी भी इस खेल की बारीकियाँ समझने लगे हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट का रोमांच अपने चरम पर तब होता है जब दो चिर-प्रतिद्वंदी भारत और पाकिस्तान आपस में भिड़ते हैं। कुछ लोग इसे ही सुपर फाइनल मानते हैं। पर इस रोमाचंक दावत का न्योता तभी मिल सकता है जब भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपने-अपने क्वार्टर फाइनल मैच जीत जाएँ।

बहरहाल, अभी तो ध्यान सिर्फ भारत-ऑस्ट्रेलिया के आने वाले मैच पर है। अगर आँकड़ों की बात करें तो विश्वकप में भारत का कंगारुओं से 9 बार सामना हुआ है और इनमें से 7 मैचों में भारत को हार का घूँट पीना पड़ा है पर दो बार भारत ने जीत का स्वाद भी चखा है। पिछली बार 23 मार्च 2003 को दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 125 रनों से हराया था। वैसे देखा जाए तो इस बार के विश्वकप में दोनों ही टीमों का प्रदर्शन एक जैसा है। दोनो ने ही 1-1 मैच हारे है। हालाँकि भारत के पक्ष में खास बात यह है कि अभ्यास मैच में टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया को हराया है।

अब 24 मार्च 2011 को अहमदाबाद में मोटेरा के सरदार पटेल स्टेडियम में जाने क्या होगा रामा रे..... हालाँकि डर तो है पर कहते है न कि डर के आगे ही जीत है।

इस जीत की उम्मीद को सच करने के लिए भारत को इस बार अपने सभी हथियारों और गलतियों से सबक लेते हुए मैदान में उतरना पड़ेगा। सबसे पहले तो जीतने के लिए पहले बल्लेबाजी कर 300 से अधिक रन बनाने होंगे। बड़े स्कोर के लिए सिर्फ लंबे शॉट मारने के काम नहीं चलने वाला। सभी बल्लेबाजों को विकेट पर टिककर रन बनाने होंगे।

भारतीय टीम अभी तक शायद पॉवरप्ले को अच्छी तरह समझ नहीं पाई है। पॉवरप्ले का मतलब सिर्फ लंबे शॉट मारना ही नहीं। दूसरी टीमों के मुकाबले भारतीय टीम ने पॉवरप्ले में सबसे ज्यादा विकेट खोकर भी सबसे कम रन बनाए हैं। दरअसल 30 गज के बाहर गेंद पहुँचाने के फेर में भारतीय बल्लेबाज सिर्फ उठाकर मारने या विकेट को खुला छोड़कर बड़े हिट करने की कोशिश कर रहे हैं। भारतीय टीम में पॉवरप्ले का सबसे सही इस्तेमाल सचिन और सहवाग ही कर पाए हैं।

यह भी याद रखना होगा की आखिरी ओवर्स में पॉवरप्ले में बल्लेबाजों को बेहतरीन गेंदबाजों का सामना करना पड़ता है जो लंबे शॉट मारने के लिए लालायित बल्लेबाजों को इसी लालच का शिकार बना लेते हैं। विश्वकप जैसे बड़े मैचों में पहले से ही नए खिलाड़ी दबाव में रहते हैं, ऐसे में उन पर अतिरिक्त दबाव देने की नीति घातक सिद्ध हो सकती है। यूसुफ पठान जैसे टी-20 स्पेशलिस्ट को ऊपरी क्रम में भेजने से उन पर अनावश्यक दबाव बढ़ता है और उनका प्रदर्शन प्रभावित होता है। आने वाले महत्वपूर्ण मैचों में प्रयोगों से बचते हुए दमदार रणनीति बनाकर सभी को उस पर अमल करना होगा।

गेंदबाजी में टीम इंडिया के पास खास विकल्प नहीं है। अनुभवी जहीर खान पुरानी गेंद से रिवर्स स्विंग कर कहर बरपा सकते हैं। वे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कारगर साबित होंगे। ऑफ स्पिनर के रूप में हरभजनसिंह ऑस्ट्रेलिया से अपनी पुरानी तकरार के चलते जान लड़ा देंगे। दोनों ही गेंदबाजों ने पोंटिंग को कई मर्तबा पैवेलियन भेजा है।

आर. अश्विन ने भले ही पिछले मैच में बढ़िया प्रदर्शन किया पर मौका कहता है कि लेग स्पिनर होना टीम के लिए बेहद फायदेमंद हो सकता है। वैसे भी दो ऑफ स्पिनर इतने महत्पूर्ण मैच में खेलेंगे इसकी संभावना कम ही दिखती है। युवराज और पठान भी अपनी धीमी गेंदों से कंगारुओं को खासा परेशान करने की कूवत रखते हैं।

अभी तक भारत बल्लेबाजों और गेंदबाजों के मिले-जुले प्रयासों से ही जीता है पर भारत की असली ताकत होगी उसकी बल्लेबाजी। सचिन तेंडुलकर, सहवाग, युवराजसिंह, विराट कोहली का लय में होना अच्छा संकेत है पर मध्यक्रम की लड़खड़ाहट चिंता का सबब है। आनन-फानन में रन बनाने और शॉर्ट पिच गेंदों को मारने का लोभ छोड़ना होगा। मोटेरा में जो संभलकर खेलेगा उसी का पलड़ा भारी होगा।

दूसरी तरफ बात करें तो ऑस्ट्रेलिया की कमजोर कड़ी दिखती है उसकी बल्लेबाजी। शेन वॉटसन, हैडिन और माइक हसी को छोड़ दें तो अन्य कोई बल्लेबाज अभी तक लय में नहीं दिखा है। गौरतलब है कि इस ऑस्ट्रेलियाई टीम में पहले जैसे बड़े नाम नहीं खेल रहे हैं। एशेज से झुलसे पोंटिंग अब किसी भी कीमत पर विश्वकप नहीं खोना चाहेंगे और पलटवार करने में ऑस्ट्रेलिया का कोई सानी नहीं।

ब्रेट ली और मिशेल जॉनसन के कंधों पर ऑस्ट्रेलिया के पेस अटैक का जिम्मा है जिसे दोनों बखूबी निभा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के स्पिनर भी अभी तक कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ऑस्ट्रेलियाई स्पिन गेंदबाजी कमजोर है और तेज गेंदबाजों पर निर्भरता उन्हें भारी पड़ सकती है।

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