वर्ल्ड कप क्रिकेट में भारत का प्रदर्शन

वेबदुनिया डेस्क 
 
फिलहाल भारत को क्रिकेट की महाशक्ति कहा जाए तो कुछ गलत न होगा। भारत ने क्रिकेट जगत में कई महत्वपूर्ण सफलताएं हासिल की हैं। वर्ल्ड कप क्रिकेट में भारतीय टीम के प्रदर्शन की चर्चा होती है तब 1975 से लेकर 2011 तक के सभी 10 वर्ल्ड कप के मैच याद आते हैं। आइए जानते हैं वर्ल्ड कप में कैसा रहा है भारतीय टीम का प्रदर्शन। 
 
1975 विश्वकप : इसे प्रूडेंशियल वर्ल्ड कप कहा गया था। वर्ल्ड का पहला आयोजन इंग्लैंड में किया गया और इसे क्लाइव लॉयड की कप्तानी में वेस्टइंडीज़ ने जीता। वर्ल्ड कप 1975 में पहला  शतक भारत और इंग्लैंड के मैच में बना। यह शतक इंग्लैंड के बल्लेबाज़ डेनिस एमिस ने लगाया था। यह वही मैच था जिसमें भारतीय बल्लेबज सुनील गावस्कर ने पूरे 60 ओवरों तक बल्लेबाजी की और बिना आउट हुए केवल 36 रन बनाए थे।
 
भारतीय टीम का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा और वह पहले दौर में ही बाहर हो गई। भारत इस टूर्नामेंट में इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और ईस्ट अफ्रीका के साथ ग्रुप ए में था। भारत को पहले ही मैच में इंग्लैंड ने 202 रनों के बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा। अगले मैच में ईस्ट अफ्रीका को भारत ने 10 विकेट से हराकर कुछ हद तक भरपाई की, लेकिन वह अपना अगला मैच न्यूजीलैंड से चार विकेट से हार गई और टूर्नामेंट से बाहर हो गई।
 
 
विश्वकप 1979 :  वर्ल्ड कप का यह दूसरा संस्करण 9 से 23 जून 1979 के बीच इंग्लैंड में खेला गया। पहले वर्ल्ड कप और दूसरे वर्ल्ड कप में दो बातें एक ऐसी रहीं। दोनों ही इंग्लैंड में आयोजित हुए और दोनों में ही खिताब वेस्टइंडीज़ ने जीता। भारतीय टीम अपने तीनों ग्रुप मैच हारकर पहले दौर में ही बाहर हो गई। वेस्टइंडीज़, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान ने सेमीफाइनल खेला और खिताबी जंग वेस्टइंडीज़ और इंग्लैंड के बीच हुई। 
 
1983 विश्वकप : 9 जून से 25 जून 1983 के बीच एक बार फिर इंग्लैंड में आयोजित वर्ल्ड कप के इस तीसरे संस्करण को उस टीम ने जीता जिसे टूर्नामेंट शुरू होने से पहले सबसे फिसड्डी टीम कहा जा रहा था। यह टीम थी कपिल देव के नेतृत्व में  भारतीय टीम। भारतीय टीम ने यह खिताब जीतकर पूरे विश्व में अपना लोहा मनवा लिया। वेस्टइंडीज़ को फाइनल में हराकर न केवल खिताब जीता बल्कि क्लाइव लॉयड के लगातार तीन वर्ल्ड कप जीतने के सपने को भी चकनाचून कर दिया। 
 
टीम इंडिया सहित, वेस्टइंडीज़, पाकिस्तान और इंग्लैंड ने सेमीफाइनल में जगह बनाई। भारत और इंग्लैंड के बीच पहला सेमीफाइनल, जबकि वेस्टइंडीज़ और पाकिस्तान के बीच दूसरा सेमीफाइनल खेला गया। खिताबी जंग भारत और वेस्टइंडीज़ के बीच हुई जिसमें भारत ने वेस्टइंडीज़ को 43 रनों से हराया। 
 
 
विश्वकप 1987 : इसे रिलायंस वर्ल्ड कप का नाम दिया गया। 1979 का वर्ल्ड कप पहला ऐसा वर्ल्ड कप है, जिसे इंग्लैंड से बाहर आयोजित किया गया और आयोजन का जिम्मा भारत और पाकिस्तान ने मिलकर उठाया। 8 अक्टूबर से 8 नवंबर 1987 तक खेले गए इस टूर्नामेंट में वनडे क्रिकेट का बड़ा बदलाव हुआ और ओवरों की संख्या 60 से घटाकर 50 कर दी गई। 
 
भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जिम्बॉब्वे के साथ ग्रुप ए में थी। यहां से भारत ने सेमीफाइनल में जगह बनाई और उसका सामना इंग्लैंड से हुआ। भारत सेमीफाइनल में हार गया और यहीं उसका वर्ल्ड कप 1987 का सफर खत्म हुआ। बाद में यह खिताब फाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड को हराकर जीता।
 
विश्वकप 1992 : वर्ल्ड कप 1992 का आयोजन ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी में हुआ। भारतीय टीम ने यह वर्ल्ड कप मोहम्मद अजहारुद्दीन की कप्तानी में खेला। इस वर्ल्ड कप के इतने सालों बाद यह याद करना सुखद है कि यह सचिन तेंदुलकर का पहला वर्ल्ड कप था। 
 
1992 में वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले भारतीय टीम ने चार महीने लंबा ऑस्ट्रेलियाई दौरा किया था। इसे भारत के लिहाज से वर्ल्ड कप की अच्छी तैयारी माना जा रहा था, लेकिन भारतीय टीम वर्ल्ड कप 1992 में आशानुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई। 
 
भारत का पहला मैच इंग्लैंड से पर्थ में हुआ और इस रोमांचक मुकाबले में भारतीय टीम 237 रनों के स्कोर का पीछा करते हुए नौ रनों से हार गई। 
 
भारत के लिए यह टूर्नामेंट की अच्छी शुरुआत तो नहीं थी, लेकिन टीम ने जिस तरह से इंग्लैंड का मुकाबला किया, आने वाले मैचों में कुछ उम्मीदें बंधी। भारतीय टीम का अगला मैच श्रीलंका के खिलाफ था, लेकिन बारिश में यह मैच धुल गया और भारत और श्रीलंका को एक एक अंक मिला।  
 
इसके बाद भारत ने अपना मैच तत्कालीन चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ब्रिसबेन में खेला। यह मैच रोमांच की इंतहा पार कर गया और भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ पूरी दुनिया के क्रिकेट प्रेमियों ने इस मैच के रोमांच का मजा लिया। 
 
ऑस्ट्रेलिया ने पहले खेलते हुए 50 ओवरों में 237/9 का स्कोर बनाया। जवाब में भारत ने कप्तान अजहारुद्दीन के 93 रनों की बदौलत मैच लगभग जीत लिया था, लेकिन लगातार दो रन आउट (मनोज प्रभाकर और राजू) के कारण भारत यह मैच एक रन से यह मैच हार गया। 
 
भारत के लिए अगला मैच बेहद महत्वपूर्ण था जो सिडनी में पाकिस्तान के खिलाफ खेला गया। भारत ने यहां वर्ल्ड कप 1992 की पहली जीत हासिल की। पहले खेलते हुए भारत ने  216/7 का स्कोर बनाया और पाकिस्तान को 173 रनों पर ऑल आउट कर दिया। 
 
यह मैच इसके परिणाम से अधिक जावेद मियांदाद और किरण मोरे की मजाकिया झड़प के लिए याद किया जाता है। 
 
भारत का अगला मैच हेमिल्टन में जिमबॉब्वे के खिलाफ था, जिसे उसने आसानी से जीत लिया, लेकिन वेस्टइंडीज़ के खिलाफ भारतीय टीम महत्वपूर्ण मैच हार गई और यहीं से उसकी सेमीफाइनल में पहुंचने की उम्मीदों को करारा झटका लगा। भारत के अगले दो मैच न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ थे जो उसने गंवा दिए।  
 
इस तरह भारत ने वर्ल्ड कप 1992 में आठ में से केवल दो मैच जीते। 1992 वर्ल्ड कप में भारत के लिए सुखद बात यही रही कि उसने पाकिस्तान को हराया, जिसने बाद में यह खिताब जीता।
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1996 विश्वकपः यह विश्वकप कई मायनों में खास रहा। विश्वकप का यह दूसरा संस्करण था जिसे भारतीय उपमहाद्वीप में आयोजित किया गया। भारत इस विश्वकप में अंतिम चार में जगह बनाने में सफल भी रहा। भारत का क्वार्टरफाइनल में मुकाबला पाकिस्तान से हुआ था, जहां उसने जीत हासिल की और सेमीफाइनल में जगह बनाई। 
 
भारत और पाकिस्तान के बीच बेंगलुरु में खेला गया क्वार्टर फाइनल मैच बेहद रोमांचक रहा। नवजोत सिंह सिद्धू के बेहतरीन 93 रन व अजय जडेजा के ताबड़तोड़ 25 गेंदों में 45 रनों की बदौलत भारत ने पाकिस्तान के सामने भारी भरकम 287 रनों का स्कोर खड़ा कर दिया। पाकिस्तान इस मैच में शुरू से ही आत्मसमर्पण करता नजर आया और भारत के हाथों पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा। यह विश्वकप भारत के लिए कुल मिलाकर मिलाजुला रहा।  
 
सचिन तेंदुलकर ने इसी विश्वकप में अपने विश्वकप करियर का पहला सैकड़ा लगाया। सचिन पूरे विश्वकप के दौरान फॉर्म में नजर आए। विश्वकप में भारत की श्रीलंका के हाथों वह हार जिसे लोग भी बर्दास्त नहीं कर पाए, क्रिकेट के चर्चित किस्सों में से एक है।
 
श्रीलंका ने सेमीफाइनल के इस मुकाबले में पहले बल्लेबाजी करते हुए 251 रन का स्कोर खड़ा किया था, स्कोर को चेज करने उतरी भारतीय टीम ने शुरुआत तो अच्छी की लेकिन सचिन के आउट होते ही पूरी टीम ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगी। देखते ही देखते कुछ ही देर में आधी से ज्यादा टीम पवेलियन लौट चुकी थी। स्टेडियम में बैठे भारतीय दर्शकों को अपनी टीम की यह दुर्दशा बर्दास्त से बाहर हो गई और उन्होंने मैदान में हुड़दंग मचा दिया। हुड़दंग को देखते हुए मैच को रोक दिया गया और श्रीलंका को जीता घोषित कर दिया गया। बाद में इसी श्रीलंका ने ऑस्ट्रेलिया को हराते हुए फाइनल अपने नाम किया।
 
1999 विश्वकपः यह विश्वकप क्रिकेट का सातवां विश्वकप था। विश्वकप ब्रिटेन की सरजमीं पर आयोजित किया गया।  विश्वकप में भारत की ओर से दो युवा बल्लेबाजों ने दुनिया भर में लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। सौरव गांगुली और राहुल द्रविड ने पूरे विश्वकप में धमाल मचाया।
 
सौरव और द्रविड की श्रीलंका के विरुद्ध टांटन में खेली गई भारी भरकम पारी को भला कौन भूल सकता है। सौरव ने इस मैच में महज 158 गेंदों में 183 रन ठोंक दिए थे सौरव का साथ निभाया राहुल द्रविड ने। द्रविड ने भी इस मैच में 145 रनों की पारी खेली। इस तरह दोनों ने अबतक की विश्वकप की सबसे बड़ी 318 रनों की भागेदारी अपने नाम की। भारत ने इस मैच में 373 रनों का लक्ष्य खड़ा किया।
 
श्रीलंका इस मैच में भारत के हाथों बुरी तरह हारा था। भारत ने विश्वकप में पाकिस्तान को एक बार फिर से पटखनी दी। बावजूद इसके भारत ने क्वार्टरफाइनल में ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड के खिलाफ मैच गंवाए और भारत को विश्वकप से बाहर होना पड़ा। 
 
2003 विश्वकपः यह विश्वकप पहली बार अफ्रीका की सरजमीं पर आयोजित किया गया। यह विश्वकप अब तक खेले गए विश्वकप में से सबसे बेहतरीन विश्वकप था। इस विश्वकप में खेली भारतीय टीम अब तक की भारत की सबसे बढ़िया टीम मानी गई। सचिन, गांगुली पूरे विश्वकप में छाए रहे। गांगुली के केन्या विरुद्ध उस शतक की यादें आज भी लोगों के जेहन में बसी हुई है।
 
गांगुली ने इस मैच में दो बार गेंद को स्टेडियम के बाहर पहुंचाकर खिलाड़ियों समेत दर्शकों को  हैरत में डाल दिया था। गांगुली की कप्तानी में भारत ने इस पूरे टूर्नामेंट में मात्र 2 मैच गंवाए, ये दोनो मैच भारत ने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध गंवाए थे।
 
भारत ने सुपर सिक्स मुकाबले में मजबूत मानी जा रही श्रीलंका को बड़े अंतर से हराया। श्रीलंका को इस मैच में भारत ने मात्र 109 रनों पर रोक दिया था। सचिन तेंदुलकर इस विश्वकप में सबसे ज्यादा बार नर्वस नाइनटीज के शिकार हुए। साथ ही तेंदुलकर ने इस विश्वकप में सबसे ज्यादा अर्धशतक भी लगाए।

गांगुली की अगुआई में भारत इस विश्वकप में फाइनल में पहुंचा लेकिन फाइनल में भारत की लय बिगड़ गई और भारत मैच 125 रनों से हार गया। विश्वकप के फाइनल में एक ही बल्लेबाज भारत की आस रहा वो था वीरेंद्र सहवाग जिसने रनआउट होने से पहले ताबड़तोड़ 81 रनों की पारी खेली।               
 
2007 विश्वकपः यह विश्वकप पहली बार कैरेबियाई सरजमीं पर आयोजित किया गया। यह अब तक का भारत के लिए सबसे बुरा विश्वकप रहा। भारत के साथ पाकिस्तान के लिए यह विश्वकप किसी बुरे सपने की तरह रहा। भारत इस विश्वकप में कुछ ज्यादा नहीं कर पाया और बांग्लादेश के खिलाफ ग्रुप मैच में हारकर बाहर हो गया।
 
इन सबसे बावजूद भारत ने बरमुडा के विरुद्ध बेहतरीन खेल दिखाया। भारत के अमूमन सभी बल्लेबाजों ने इस मैच में गजब की बल्लेबाजी की और भारत ने बरमुडा के सामने 413 रन का भारी भरकम स्कोर खड़ा कर दिया। यह स्कोर अबतक विश्वकप में किसी टीम के द्वारा खड़ा किया गया सर्वाधिक स्कोर है। इस मैच को छोड़कर विश्वकप में भारत ने बेहद खराब बल्लेबाजी की और उसने ग्रुप के दोनों मैच गंवाए और भारत विश्वकप से बाहर हो गया।
 
भारत के साथ उप-महाद्वीप की टीम पाकिस्तान के लिए भी यह विश्वकप एक बुरे सपने की ही तरह रहा। विश्वकप में पर्दापण करने वाली टीम आयरलैंड से पाकिस्तान हार गया और विश्वकप से बाहर हो गया। विश्वकप में पाकिस्तान के कोच बाब बूल्मर की हत्या का मामला भी खूब सुर्खियों में रहा। विश्वकप में मिली करारी हार के बाद पाकिस्तान के कप्तान इंजमाम-उल-हक ने अपनी कप्तानी से इस्तीफा दे दिया। भारत में भी ऐसा ही देखने को मिला और द्रविण की जगह धोनी नए कप्तान बनें।
 
2011 विश्वकपः यह तीसरी बार था जब विश्वकप भारतीय उपमहाद्वीप में आयोजित किया गया। 1987, 1996 और 2003 में विश्वकप में बेहद करीब पहुंचने के बावजूद विश्वकप को हथिया ना पाने की टीस पूरी तरह से इस विश्वकप में दिखाई पड़ी साथ ही विश्वकप 2007 में बांग्लादेश के खिलाफ मिली हार का बदला भी असल मायनों में इसी विश्वकप में लिया गया।
 
भारत ने बांग्लादेश के साथ खेलते हुए ग्रुप मैच में वीरेंद्र सहवाग के 175 रनों की बदौलत 373 रनों का पहाड़ जैसा लक्ष्य खड़ा किया और बांग्लादेश को बुरी तरह हराकर 2007 की हार का असल मायनों में बदला लिया। भारत के सामने जो भी टीम आई, उसे भारत ने बुरी तरह धोया।
 
भारत ने इस विश्वकप में एकमात्र मैच साउथ अफ्रीका के खिलाफ गंवाया लेकिन जिस प्रकार की शुरुआत भारतीय टीम ने इस मैच में की थी उससे एक समय ऐसा लग रहा था कि भारत उस मैच में 400 पार बनाएगा। भारत की पारी की शुरूआत करने उतरे सचिन-सहवाग ने अफ्रीका के प्रसिद्ध गेंदबाजों स्टेन व मोर्ने मोर्केल की जमकर बखिया उधेड़ी।
 
लेकिन अंतिम ओवरों में भारतीय टीम लड़खड़ा गई और भारत की पारी 293 रनों पर ही रुक गई। साउथ अफ्रीका के पार्नेल ने आशीष नेहरा के पारी के आखिरी ओवर में ताबड़तोड़ रन बनाते हुए भारत के हाथों से मैच छीन लिया। भारत ने इस मैच के बाद किसी मैच में हार का मुंह नहीं देखा। पाकिस्तान को क्वार्टरफाइनल में हराते हुए, भारत की मुलाकात तीन बार की विश्वविजेता ऑस्ट्रेलिया से हुई।
 
भारत ने इस मैच को बड़ी आसानी से जीतते हुए ऑस्ट्रेलिया को बाहर का रास्ता दिखाया। भारत का फाइनल में मुकाबला श्रीलंका से हुआ। भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने कुलशेखरा की गेंद पर छक्का लगाते हुए विश्वकप भारत के नाम किया। इस तरह भारत ने दूसरी बार क्रिकेट विश्वकप अपने नाम किया।                                                              

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