बदलो दोस्त अपना माइंड

हम जानते हैं कि आप ईश्वर को नहीं जानना चाहते, आप सिद्धियाँ भी प्राप्त नहीं करना चाहते। आप या तो स्वस्थ रहना चाहते हैं या फिर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं। क्या आप यह भी नहीं करना चाहते। अच्छा फिर हम समझ गए कि आप क्या करना चाहते हैं।

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आपकी छोटी-छोटी समस्याएँ भी बहुत है, जैसे कोई बुरी आदत छूट नहीं पा रही हैं। किसी से प्रेम हो गया या परीक्षाएँ नजदीक है तो अब नींद नहीं आती। सही कहा आपने कि प्यार और परीक्षा में नींद तो आती ही नहीं। दूसरी बात स्कूल या कॉलेज में जाने से डर लगता है या किसी सहपाठी के प्रति गुस्सा भर गया है। आपकी सारी समस्याओं का समाधान एक ही है कि योग की शरण में आकर स्वयं को पूर्णत: बदल डालो।

*एक को बदलो सब बदल जाएगा :
ज्ञानीजन कहते हैं कि जीवन में आप कुछ भी प्राप्त करना चाहते हो तो योगा टीचर पातंजलि कहते हैं कि शुरुआत शरीर के तल से ही करना होगी। शरीर को बदलो तो मन बदलेगा। मन बदलेगा तो बुद्धि बदलेगी। बुद्धि बदलेगी तो आत्मा स्वत: ही स्वस्थ हो जाएगी। आत्मा तो स्वस्थ है ही। फस्ट्रेट या डिप्रेस माइंड नहीं, एक स्वस्थ आत्मचित्त या माइंड ही संसार या संन्यास के किसी भी शिखर को चुमने की ताकत रखता है।

*दिमाग का द्वंद्व (Duality of the mind)
जिनके दिमाग में द्वंद्व है, वह हमेशा चिंता, भय और संशय में ही ‍जीते रहते हैं। भय यानी डर। प्यार में भय, परीक्षा का भय, पापा का भय और खुद से भी भयभीत रहते हो तभी तो जीवन एक संघर्ष ही नजर आता है, आनंद नहीं। योग से दिमाग के इस द्वंद्व की स्थिति से निजात पाई जा सकती है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए द्वंद्व से मुक्त होना आवश्यक है।

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*कैसे जन्मता है द्वंद्व : योगी कहते हैं कि बचपन में आपके ऊपर प्रत्येक तरह के संस्कार लादे गए हैं, आप खुद भी लाद लेते हैं। फिर थोड़े बढ़े हुए तो सोचने लगे, तब संस्कारों के खिलाफ भी सोचने लगे, क्योंकि आधुनिक युग कुछ और ही शिक्षा देता है, लेकिन फिर डर के मारे संस्कारों के पक्ष में तर्क जुटाने लगे। इससे आप तर्कबाज हो गए। अब दिमाग में दो चीज हो गई- संस्कार और विचार।

फिर थोड़े और बढ़े हुए तो कुछ खट्टे-मिठे अनुभव भी हुए। आपने सोचा की अनुभव कुछ और, बचपन में सिखाई गई बातें कुछ और है। अब दिमाग में तीन चीज हो गई- संस्कार, विचार और अनुभव।

इन तीनों के झगड़ने में ज्ञान तो उपज ही नहीं पाता। जीवन तो हम जी ही नहीं पाते। योगी कहते हैं कि ज्यादातर लोग जीवन भर ज्ञान और अनुभव से काम नहीं ले पाते बल्कि जो बचपन में संस्कार डाले गए या बचपन में जो भी चित्त में चिपक गया उसी के अनुसार व्यक्ति जीवन जीता है। सपोज बचपन में झगड़ा करने की प्रवृत्ति निर्मित हो गई है तो क्या कॉलेज या ऑफिस में भी यही करोगे? अब आप ही बताएँ कि जहाँ आपका बचपन गुजरा वहीं के सपने आपको बार-बार और अब तक क्यों आते हैं?

*द्वंद्ध से मुक्ति का उपाय :
योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।- योगसूत्र
चित्तवृत्तियों का निरोध करना ही योग है। चित्त अर्थात बुद्धि, अहंकार और मन नामक वृत्ति के क्रियाकलापों से बनने वाला अंत:करण। चाहें तो इसे अचेतन मन कह सकते हैं, लेकिन यह अंत:करण इससे भी सूक्ष्म माना गया है। इस पर बहुत सारी बातें चिपक जाती है।

आपके चित्त पर दूसरों का कब्जा :
दुनिया के सारे धर्म इस चित्त पर ही कब्जा करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने तरह-तरह के नियम, क्रियाकांड, ग्रह-नक्षत्र, लालच और ईश्वर के प्रति भय को उत्पन्न कर लोगों को अपने-अपने धर्म से जकड़े रखा है। उन्होंने अलग-अलग धार्मिक स्कूल खोल रखें हैं। पातंजल‍ि कहते हैं कि इस चित्त को ही खत्म करो। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।

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*योग की शिक्षा :
योग विश्वास करना नहीं सिखाता और ना ही संदेह करना। योग कहता है कि आपमें जानने की क्षमता है, इसका उपयोग करो। तो, सर्वप्रथम आप अपनी इंद्रियों को बलिष्ठ बनाओ। शरीर को डॉयनामिक बनाओ और इस मन को स्वयं का गुलाम बनाओ। यह सब कुछ करना बहुत सरल है- दो दुनी चार जैसा। बस संकल्प होना चाहिए अन्यथा कभी नहीं कर पाएँगे। संकल्प है तो यम और नियम को समझें और उसमें से काम की बात का चयन कर लें।

योग कहता है कि शरीर और मन का दमन नहीं करना है, बल्कि इसका रूपांतर करना है। इसके रूपांतर से ही जीवन में बदलाव आएगा। यदि आपको लगता है कि मैं अपनी आदतों को नहीं छोड़ पा रहा हूँ, जिनसे कि मैं परेशान हूँ तो चिंता मत करो। उन आदतों में एक 'योग' को और शामिल कर लो और बिलकुल लगे रहो। आप न चाहेंगे तब भी परिणाम सामने आएँगे।

*योगा पैकेज : आहार का शरीर से ज्यादा मन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। मन ही क्यों यह हमारे वर्तमान को परिवर्तित कर भविष्य को संचालित करने की ताकत भी रखता है, तो आप क्या खाते हैं इस पर गौर करें। अच्छा खाएँ और शरीर की इच्छा से खाएँ, मन की इच्छा से नहीं। यौगिक आहार को जानना चाहें तो अवश्य जानें। आहार के बाद आसन के महत्व को समझें और तीसरा प्राणायाम नियमित करें। आसन से शरीर, प्राणायाम से मन और आहार से दोनों का संतुलन बरकरार रहेगा।- (वेबदुनिया डेस्क)

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