योग यानी जुड़ना और जुड़ना जिससे भी सच्चे मन से हो जाए, उससे ही योग लग जाता है। जब किसी को किसी से योग लगता है तब यह सहज ही हो जाता है। जैसे आपको किसी प्रिय को याद करते हुए मेहनत नहीं करनी पड़ती है। उस प्रिय की याद अपने आप में एक सुखद अनुभव होता है। यह प्रिय कोई भी हो सकता है प्रेमी-प्रेमिका या निराकार भगवान के प्रति आपका लगाव।
ऐसा भी जरूरी नहीं है कि आप किसी व्यक्ति विशेष या भगवान से ही जुड़ते हों। हो सकता है कि आपका मन किसी भौतिक चीज को प्राप्त करना चाहता है, जैसे कि अपना नया घर या कार लेने की इच्छा जिसके बारे आप पूरे दिन में चाहे न चाहे, कई बार सोचते हो। कब उस चीज की याद आपके मन में धीरे से चली आती है, आपको पता भी नहीं चलता।
ऐसी ही स्थिति उस परमात्मा को याद करते हुए हो जाए, ऐसा ही आत्मप्रेम उस परमपिता से हो जाए, इसी स्थिति को स्वयं व परमात्मा के साथ पाने के लिए विभिन्न प्रकार से ध्यान किया जाता है। ध्यान के रास्ते पर चलते हुए उस परमात्मा तक पहुंचने से पहले आपको खुद तक पहुंचना होता है, खुद को खुद से जोड़ना होता है, अपने आपको जानना होता है, स्वयं की आत्मा के गुण जान लिए, तब उस तक पहुंचना मुश्किल नहीं रह जाता है।