मुद्राओं के अभ्यास से गंभीर से गंभीर रोग भी समाप्त हो सकता है। मुद्राओं से सभी तरह के रोग और शोक मिटकर जीवन में शांति मिलती है। हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख कर उनके अभ्यास पर जोर दिया गया है।
घेरंड ने 25 मुद्राओं एवं बंध का उपदेश दिया है और भी अनेक मुद्राओं का उल्लेख अन्य ग्रंथों में मिलता है।
आइए जानते अगले पन्ने पर यम हरि मुद्रा की विधि...
सर्व प्रधम आप अपने दोनों हाथों की सबसे छोटी अंगुली अर्थात कनिष्ठा को आपस में एक दूसरे के प्रथम पोर से मिला दें। इसी के साथ दोनों अंगूठे को भी आपस में मिला दें। अब तीन अंगुलियां बाकी रह जाएंगी- मध्यमा, तर्जनी और अनामिका। इन तीनों अंगुलियों को हथेली की ओर मोड़कर मुट्ठी जैसा बनाइए।
अंगुलियों की इस स्थिति को यम हरिमुद्रा कहते हैं।
अगले पन्ने पर जानिए हरि मुद्रा के लाभ...
हरि मुद्रा के नियमित अभ्यास से नाड़ियों को शक्ति मिलती है। इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास से पेट के रोग जैसे- कब्ज, भूख ना लगना और जिगर की कमजोरी दूर होती है। इस मुद्रा से स्त्रियों के स्तनों के सारे रोगों में भी लाभ मिलता है।
कब करें यह मुद्रा जानिए अगले पन्ने पर...
यम हरिमुद्रा को प्रतिदिन 5 मिनट सुबह और 5 मिनट शाम को करें। आप इसके करने का समय बढ़ाकर 10 मिनट तक कर सकते हैं। प्रतिदिन कम से कम पांच मुद्राएं अपनी सुविधानुसार करनी चाहिए।
मुद्राओं से सभी रोगों में लाभ पाया जा सकता है यदि उनका योग शिक्षक से पूछकर नियमित अभ्यास किया जाए। मुद्राएं खासकर उन लोगों के लिए फायदेमंद साबित होती है जो योगासन करने में असमर्थ हैं।