कोरोना काल में शौच और आचमन से होगा बहुत लाभ

योग में यह क्षमता है कि वह आपको कोरोना वायरस से बचाकर रखे और यदि हो भी जाए तो वह आपको इससे बचकर निकाल ले। अब यह सिद्ध हो चुका है कि योग और प्राणायाम करने से इस महामारी से बचा जा सकता है। परंतु हम यहां तीन चीजें और जोड़ना चाहेंगे शौच, आचमन और योग क्रियाएं। कुछ क्रियाएं करना कठिन है और कुछ सरल आप जानिए कि किस तरह शौच और आचमन का लाभ मिल सकता है।
 
 
शौच क्या है : योग के दूसरे अंग 'नियम' के उपांगों के अंतर्गत प्रथम 'शौच' को शुचिता, शुद्धता, शुद्धि, विशुद्धता, पवित्रता और निर्मलता भी कह सकते हैं। शौच का अर्थ शरीर और मन की बाहरी और आंतरिक पवित्रता से है। शौच का अर्थ मलिनता को बाहर निकालना भी है। शरीर और मन की पवित्रता ही शौच है। पवित्रता दो प्रकार की होती है- बाहरी और भीतरी। बाहरी और भीतरी शौच के द्वारा ही जीवन की हर जंग को जीता जा सकता है, अन्यथा नहीं। शौच के अभाव के चलते शरीर और मन रोग और शोक से ग्रस्त हो जाता है और कार्यों में सफलता नहीं मिलती।
 
ALSO READ: घर से कर रहे हैं ऑफिस का कार्य तो आजमाएं 'रिफ्रेश योगा' की 5 टिप्स
1.बाहरी : बाहरी या शारीरिक शुद्धता भी दो प्रकार की होती है। पहली में शरीर को बाहर से शुद्ध किया जाता है। इसमें मिट्टी, उबटन, त्रिफला, नीम आदि लगाकर निर्मल जल से स्नान करने से त्वचा एवं अंगों की शुद्धि होती है। दूसरी शरीर के अंतरिक अंगों को शुद्ध करने के लिए योग में कई उपाय बताए गए है- जैसे शंख प्रक्षालन, नेती, नौलि, धौती, गजकरणी, गणेश क्रिया, अंग संचालन आदि।
 
 
2. भीतरी : भीतरी या मानसिक शुद्धता प्राप्त करने के लिए दो तरीके हैं। पहला मन के भाव व विचारों को समझते रहने से। जैसे- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, भय को समझना और उनसे दूर रहना। इससे हमारा इम्युनिटी सिस्टम गड़बड़ा जाता है।
 
 
ईर्ष्या, द्वेष, तृष्णा, अभिमान, कुविचार और पंच क्लेश को छोड़ने से दया, क्षमा, नम्रता, स्नेह, मधुर भाषण तथा त्याग का जन्म होता है। अर्थात व्यक्ति स्वयं के समक्ष सत्य और ईमानदार बना रहता है। इससे जाग्रति का जन्म होता है। विचारों के असर की क्षमता बढ़ती है। भीतरी शुद्धता के लिए दूसरा तरीका है आहार-विहार पर संयम रखते हुए यम और प्राणायाम का पालन करना।
 
ALSO READ: Coronavirus : कोरोना काल में बढ़ रही हैं सेहत की ये 10 समस्याएं
मूलत: शौच का तात्पर्य है पाक और पवित्र हो जाओ, तो आधा संकट यूं ही कटा समझो। योग में पवित्रता का बहुत महत्व है। शरीर के सभी छिद्रों को संध्या वंदन से पूर्व पाक-साफ करना भी शौच है। मंदिर में प्रवेश कराने से पहले जिन्होंने शौच-आचमन की है वे धर्म और मंदिर का सम्मान करना जानते हैं।
 
 
आचमन का अर्थ : आचमन का अर्थ होता है जल पीना। प्रार्थना, दर्शन, पूजा, यज्ञ आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल पीना ही आचमन कहलाता है। इससे मन और हृदय की शुद्धि होती है। आचमनी का अर्थ एक छोटा तांबे का लोटा और तांबे की चम्मच को आचमनी कहते हैं। छोटे से तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें तुलसी डालकर हमेशा पूजा स्थल पर रखा जाता है। यह जल आचमन का जल कहलाता है। इस जल को तीन बार ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी