इसके लाभ : अर्धमत्स्येंद्रासन से मेरुदंड स्वस्थ रहने से स्फूर्ति बनी रहती है। रीढ़ की हड्डियों के साथ उनमें से निकलने वाली नाड़ियों को भी अच्छी कसरत मिल जाती है। पीठ, पेट के नले, पैर, गर्दन, हाथ, कमर, नाभि से नीचे के भाग एवं छाती की नाड़ियों को अच्छा खिंचाव मिलने से उन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। फलत: बंधकोष दूर होता है। जठराग्नि तीव्र होती है। विवृत, यकृत, प्लीहा तथा निष्क्रिय वृक्क के लिए यह आसन लाभदायी है। कमर, पीठ और संधिस्थानों के दर्द जल्दी दूर हो जाते हैं।