यह परियों की कहानी नहीं, संघर्ष और लगन की कहानी है। एक तेरह साल की लड़की को शूटिंग में दिलचस्पी पैदा हो जाती है और माँ-बाप को ताज्जुब होता है कि आखिर यह लड़की किस दिशा में जाने का सपना संजोए है, लेकिन यह लड़की धीरे-धीरे अपने इस नए शौक में इतनी गहराई से दिलचस्पी लेती है कि एक दिन उसका निशाना इतना सटीक बैठता है कि वह वर्ल्ड चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीत जाती है।
इस तरह वह अपनी इस कहानी को एक सुनहरी आभा से चमका देती है और देश की ऐसी पहली महिला शूटर बन जाती है, जिसने वर्ल्ड चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल अर्जित किया है।
यह गोल्डन गर्ल है तेजस्विनी सावंत। उसके संघर्ष की कहानी की हकीकत यह है कि उसे राइफल के लिए लोन लेना पड़ता है और उसकी किस्त वह बमुश्किल ही अदा कर पाती है, लेकिन बावजूद इसके उसके हाथ जरा भी नहीं काँपते और वह पूरी मजबूती से राइफल पकड़े एक आँख से निशाने साधती चली जाती है।
कोल्हापुर में एक नेवी ऑफिसर के यहाँ 12 सितंबर 1980 को जन्मी जिस तेजस्विनी को अपनी राइफल के लिए लोन लेना पड़ा था, गोल्ड मैडल जीतने के बाद उसे देश की टॉप वैपन्स मैन्यूफैक्चरर्स ने साइन किया है। यही नहीं, जब उसने अपनी पहली बड़ी कामयाबी हासिल की थी तब महाराष्ट्र सरकार ने उसे 5000 स्क्वेयर फुट का प्लॉट दिया था।
उन्होंने म्यूनिख (जर्मनी) में इस वर्ल्ड चैम्पियनशिप में न केवल गोल्ड मैडल हासिल किया, बल्कि रशिया की शूटर मारिया बोबकोवा के रिकॉर्ड की बराबरी भी की। वे जब कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग ले रही थीं तब उनके पिता श्री रवीन्द्र सावंत की मृत्यु हो गई और तब से लेकर अब तक उनकी माँ सुनीता सावंत ने हर मौके, हर पल पर तेजस्विनी को सहारा दिया, जिसकी बदौलत वे आज इस मुकाम पर हैं।
उनकी माँ क्रिकेट और वॉलीबॉल की स्टेट लेवल की प्लेयर रही हैं। तेजस्विनी अपनी माँ के साथ ही अपनी इस सुनहरी कामयाबी का श्रेय अपने इंडियन कोच सनी बॉथम और कजाक कोच स्ताबस्लाव लेपिदस को देती हैं।
तेजस्विनी सावंत की कामयाबी उन युवतियों के लिए निश्चित ही एक प्रेरणादायी कहानी है, जो अभावों में अपने लक्ष्यों को हासिल करने में जुटी हैं। तेजस्विनी ने यह साबित कर दिया है कि यदि मन में कामयाबी हासिल करने का जोश और जुनून है तो राह में कोई भी बाधा नहीं बन सकता है। यह सफलता की स्वर्णिम कहानी है।