एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का क्षेत्र इंजीनियरिंग शिक्षा का सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है। इसमें कैरियर निर्माण की बहुत ही उजली संभावनाएं हैं। एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग क्षेत्र में नागरिक उड्डयन, स्पेस रिसर्च तथा डिफेंस टेक्नोलॉजी आदि के क्षेत्र में नई तकनीकों का विकास किया जाता है।
यह क्षेत्र डिजाइनिंग, निर्माण, विकास, परीक्षण, ऑपरेशंस तथा कमर्शियल तथा मिलिट्री एयरक्रॉफ्ट के अनुरक्षण में सुविज्ञता तथा उनके पुर्जों केसाथ-साथ अंतरिक्ष यानों, सैटेलाइट और मिसाइलों के विकास से भी संबंधित है।
आधुनिकता की दौड़ में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग ने विश्व का परिदृश्य ही बदल दिया है। यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जिसमें नई एवं आकर्षक संभावनाओं की कोई सीमा नहीं है। एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के तहत संरचनात्मक अभिकल्पन, नेविगेशनल गाइडेंस एंड कंट्रोल सिस्टम, इंस्ट्रूमेंटेशन एवं कम्यूनिकेशन अथवा प्रोडक्शन मैथड के साथ ही साथ वायुसेना के विमान, यात्री विमान, हेलीकॉप्टर और रॉकेट से जुड़े कार्य शामिल हैं।
एयरोनॉटिकल इंजीनियर्स डिजाइन डेवलपमेंट, मेंटेनेंस के साथ-साथ प्रबंधन और संस्थानों में शिक्षण जैसे कार्य भी संपन्न करते हैं। एविएशन इंडस्ट्री के टेक्निकल विभाग में एयरोनॉटिकल इंजीनियर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एयरोनॉटिकल इंजीनियर के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं- सिविल एविएशन में यात्री विमान के यंत्रों, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का रखरखाव एवं प्रबंधन, विमान संबंधी रेडियो और रडार का संचालन, उड़ने से पहले विमान की हर कोण से जांच, विमान में ईंधन की रीफिलिंग, विमान बनाने वाली कंपनियों में विमान संबंधी यंत्रों तथा उपकरणों की डिजाइनिंग तथा डेवलपमेंट आदि।
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इस क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए उम्मीदवारों के पास एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बीई तथा बीटेक की ग्रेजुएट डिग्री अथवा कम से कम एयरोनॉटिक्स में तीन वर्षीय डिप्लोमा होना चाहिए। इस क्षेत्र में आईआईटी के अलावा कुछ इंजीनियरिंग कॉलेजों में डिग्री तथा पोस्ट डिग्री पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं।
एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा पाठ्यक्रम कुछ पॉलीटेक्निक कॉलेजों में भी उपलब्ध है। बीई तथा बीटेक पाठ्यक्रम के लिए 12वीं परीक्षा भौतिकी एवं गणित के साथ उत्तीर्ण होना आवश्यक है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा (आईआईटी-जेईई) तथा विभिन्न राज्यों में स्थित इंजीनियरिंग कॉलेजों के एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के बीई पाठ्यक्रम के लिए पीईटी परीक्षा या राज्य स्तरीय प्रवेश परीक्षा के माध्यम से प्रवेश दिया जाता है।
स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए चयन प्रवेश परीक्षाओं में प्राप्त मेरिट के आधार पर किया जाता है। जिन संस्थानों में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं वे सामान्यतः क्वॉलिफाइंग ग्रेड के रूप में जेईई स्कोर को मान्य करते हैं। भारत सरकार द्वारा अधिमान्य एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग उपाधि चार वर्ष के अध्ययन के बाद प्रदान की जाती है, जबकि डिप्लोमा पाठ्यक्रम तीन वर्ष की अवधि के होते हैं।
इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियर्स द्वारा आयोजित एसोसिएट मेंबरशिप एक्जामिनेशन के माध्यम से सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के कर्मचारियों अथवा एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग डिप्लोमाधारी उम्मीदवार दूरस्थ शिक्षा प्रणाली द्वारा बीई पाठ्यक्रम कर सकते हैं। एसोसिएट मेंबरशिप एक्जामिनेशन की परीक्षा द एयरोनॉटिकल सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा ली जाती है। यह डिग्री एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग डिग्री के समकक्ष मान्यता रखती है। कुछ संस्थानों द्वारा एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में एम.टेक. और पीएच.डी. पाठ्यक्रम भी संचालित किए जाते हैं।
एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, सरकारी एवं निजी एयरलाइंस के साथ-साथ एयरक्राफ्ट निर्माण इकाइयों में कॅरिअर के उजले अवसर उपलब्ध हैं। एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम सफलतापूर्वक उत्तीर्ण युवाओं को इंडियन हेलीकॉप्टर कॉर्पोरशन ऑफ इंडिया, निजी तथा सरकारी एयरलाइनों के साथ-साथ एयरक्राफ्ट निर्माण इकाइयों में कैरियर उपलब्ध है।
भारतीय एयरोनॉटिकल इंजीनियरों को फ्लाइंग क्लबों, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की बेंगलुरु, कानपुर, नासिक आदि डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेट्रीज, नेशनल एयरोनॉटिकल लैब, सिविल एविएशन विभाग के साथ-साथ रक्षा सेवाओं तथा इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) में कैरियर के उजले अवसर उपलब्ध हैं। एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का कोर्स करने के उपरांत सरकारी संस्थानों में प्रवेश परीक्षा के माध्यम से एयरोनॉटिकल इंजीनियर को ग्रेजुएट इंजीनियर ट्रेनी या जूनियर इंजीनियर के पद पर नियुक्ति दी जाती है।
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इनकी रुचि के आधार पर इन्हें एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस, ओवरहॉल या सपोर्ट विभाग में टेक्निकल ट्रेनिंग दी जाती है। प्रशिक्षण के बाद ये असिस्टेंट एयरक्राफ्ट इंजीनियर्स या असिस्टेंट टेक्निकल ऑफिसर के पद पर नियुक्त किए जाते हैं। भविष्य में पदोन्नति के लिए इन्हें विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती है।
एयरलाइंस, हवाई जहाज निर्माण कारखानों, एयर टर्बाइन प्रोडक्शन प्लांट्स या एविएशन इंडस्ट्री के डिजाइन डेवलपमेंट विभागों में इनके लिए कैरियर निर्माण के बहुत अच्छे अवसर हैं। सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत एयरोनॉटिकल इंजीनियरों को सरकार द्वारा निर्धारित वेतनमान दिया जाता है। जबकि निजी संस्थानों के इंजीनियरों को कंपनी द्वारा निर्धारित बहुत ही आकर्षक वेतनमान प्रदान किया जाता है। इसके साथ ही साथ एयरलाइंस के इंजीनियरों को मुफ्त हवाई यात्रा के साथ-साथ चिकित्सा, आवास आदि ढेरों सुविधाएं भी मिलती हैं।