मान न मान, मैं तेरा मेहमान

आपने यह कहावत जरूर सुनी होगी 'मान न मान, मैं तेरा मेहमान', लेकिन अब भारतीय कॉरपोरेट जगत में इस समय चल रही जंग में मेहमान नहीं मेजबान बनने की तैयारी हो रही है।

रैनबैक्‍सी समूह की माने जाने वाली कंपनी सोलरेक्‍स फार्मास्‍युटिकल ने ओर्किड कैमिकल्‍स एंड फार्मास्‍युटिकल्‍स पर कब्‍जा जमाने की जंग तेज कर दी है।

वहीं, ओर्किड कैमिकल्‍स के कर्ताधर्ता राघवेंद्र राव ने अपने पास रखे 50 लाख वारंट को 7.6 फीसदी इक्विटी में बदलकर अपनी कुर्सी सलामत रखने की कवायद शुरू कर दी है। राव की इच्‍छा के विरुद्ध यह जोर-जबरदस्‍ती टेकओवर करने का भारतीय कॉरपोरेट जगत में पहला मामला सामने आया है।

राघवेंद्र राव अपनी कंपनी को बचाने में पैसे-टके की दिक्‍कत महसूस कर रहे हैं। राव वारंट को इक्विटी में बदलते हैं तो उन्‍हें इसके लिए 90 करोड़ रुपए जुटाने होंगे। इन वारंट को परिवर्तित करने की डेडलाइन 31 अगस्‍त 2008 है। हालाँकि इससे पहले 17 मार्च को मार्जिन लगी बिकवाली में राव को शेयर बेचने पर 75 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है और कंपनी में उनका हिस्‍सा घटकर 15.8 फीसदी रह गया है। साथ ही राव ने 65 करोड़ रुपए का कर्ज ले रखा है।

ओर्किड में सबसे बड़ा संस्‍थागत निवेशक एलआईसी है, जिसने होस्‍टाइल टेकओवर में किसी का भी साथ देने से इनकार कर दिया है। एलआईसी के पास इस कंपनी के 7.8 फीसदी शेयर हैं।

संस्‍थागत निवेशकों के पास ओर्किड की 30 फीसदी हिस्‍सेदारी है। कॉरपोरेट जगत के इस युद्ध में ओर्किड कैमिकल्‍स के शेयरों में खूब उतार-चढ़ाव हो रहा है। जब तक यह युद्ध थम नहीं जाता, निवेशक ओर्किड कैमिकल्‍स के शेयरों में पैसा कमा सकते हैं, लेकिन हर खबर पर बारीक नजर रखते हुए, क्‍योंकि कोई भी खबर बाजी पलट सकती है।

ओर्किड कैमिकल्‍स के कर्ताधर्ता के पास कंपनी की इक्विटी इतनी कम है कि वे टेकओवर की लड़ाई लड़ने में मजबूर भी नजर आ रहे हैं। भारतीय कॉरपोरेट जगत में अनेक ऐसी कंपनियाँ हैं, जिनका कामकाज काफी अच्‍छा है और शेयरों के दाम पिछली ऊँचाई से 30 फीसदी से अधिक नीचे आ चुके हैं।

इन कंपनियों में प्रमोटरों की होल्डिंग 20 फीसदी से नीचे है। यानी यहाँ यदि मेहमान जोर-जबरदस्‍ती मेजबान को बाहर कर खुद मालिक बनना चाहे तो इन कंपनियों के प्रमोटर तमाशा देखते रह जाएँगे और बरसों से उन्‍होंने इन कंपनियों को एक मुकाम तक पहुँचाने के लिए जो मेहनत की है, वह किसी काम नहीं आएगी।

ओर्किड कैमिकल्‍स एंड फार्मास्‍युटिकल्‍स के बाद जिन बेहतर कंपनियों पर दूसरों की नजरें टिकी हैं उनमें आईवीआरसीएल इंफ्रा, मोजर बेयर, हिमाचल फ्युचरिस्टिक, सुबेक्‍स, एप्टैक, मास्‍कॉन ग्‍लोबल, आईसीएस, नागार्जुन कंसट्रक्‍शंस, जीई शिपिंग, पोलारिज, वोल्‍टास, प्राज इंडस्‍ट्रीज, एमआरएफ, महिंद्रा एंड महिंद्रा, इंडिया सीमेंट, वैभव जैम्‍स, निक्‍को कार्प, स्‍ट्राइड्स आर्कोलैब, एक्‍सेल क्रॉप कोर आदि हैं।

हालाँकि यह सूची एक उदाहरण है। प्रमोटरों के पास जिन बेहतर कंपनियों में अपनी हिस्‍सेदारी 20 से 25 फीसदी है उनकी पूरी सूची बनाई जाए तो देश की अनेक उम्‍दा कंपनियों की यही हालत है।

आईवीआरसीएल इंफ्रा में प्रमोटरों की हिस्‍सेदारी महज 9.69 फीसदी है, जबकि विदेशी संस्‍थागत निवेशकों के पास 61 फीसदी से ज्‍यादा इक्विटी है। ऐसे में एफआईआई जब चाहे तब खेल पलट सकते हैं। मोजर बेयर में प्रमोटरों के पास 16.3 फीसदी इक्विटी है।

शेयर का भाव भी जनवरी के उच्‍चतम भाव से 50 फीसदी घट चुका है। ऐसे में डिस्‍काउंट भाव पर मिल रही इस कंपनी पर किसी की भी नीयत बिगड़ सकती है।

भारतीय कॉरपोरेट जगत को इस तरफ तत्‍काल ध्‍यान देना चाहिए, ताकि ऐसा न हो कि जिन एफआईआई के भरोसे वे आगे बढ़ाना चाहते हों वे ही उन्‍हें उनके मालिकाना हक से बेदखल कर दें। निवेशकों को भी ऐसी बुनियादी रूप से मजबूत और बेहद सस्‍ते भाव पर मिल रही कंपनियों में निवेश से नहीं हिचकना चाहिए, यदि भविष्‍य में बड़ा मुनाफा बटोरना हो तो।

• य‍ह लेखक की निजी राय है। किसी भी प्रकार की जोखिम की जवाबदारी वेबदुनिया की नहीं होगी।

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