विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की प्राचीनकाल की उपलब्धियों से
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लेकर इस शताब्दी में प्राप्त महान सफलताओं की एक लंबी और अनूठी परंपरा रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हमारा वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी ढाँचा न तो विकसित देशों जैसा मजबूत था और न ही संगठित। इसके फलस्वरूप हम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अन्य देशों में उपलब्ध हुनर और विशेषज्ञता पर आश्रित थे।
पिछले कुछ दशकों के दौरान राष्ट्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक आधारभूत ढाँचा बना है व सामर्थ्य उत्पन्न कर लिया गया है, जिससे अन्य देशों पर भारत की निर्भरता घटी है। वस्तुओं, सेवाओं और उत्पादों के लिए व्यापक पैमाने पर लघु उद्योग से लेकर अत्याधुनिक परिष्कृत उद्योगों तक की स्थापना की जा चुकी है। मूलभूत और अनुप्रयुक्त विज्ञान के क्षेत्र की नवीनतम जानकारी से लैस अनुभवी विशेषज्ञों का समूह अब उपलब्ध है, जो प्रौद्योगिकियों में से विकल्प चुन सकता है, नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर सकता है और देश की भावी विकास का ढाँचा तैयार कर सकता है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी का बुनियादी ढाँचा भारत में वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी गतिविधियाँ केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, उच्चतर शैक्षणिक क्षेत्र, सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के उद्योगों और बिना लाभ के काम करने वाले संस्थानों/संघों समेत एक विस्तृत ढाँचे के अंतर्गत संचालित की जाती हैं। संस्थागत प्रतिष्ठानों ने अपनी अनुसंधान प्रयोगशालाओं के जरिए देश में अनुसंधान और विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया है। इनमें प्रमुख हैं- वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद।
इनके अलावा विभिन्न मंत्रालयों/ विभागों की विभागीय प्रयोगशालाएँ हैं, जैसे परमाणु ऊर्जा विभाग, इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग, अंतरिक्ष विभाग, महासागर विकास विभाग, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, पर्यावरण तथा वन मंत्रालय, अक्षय ऊर्जा स्रोत मंत्रालय और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय। इसके अतिरिक्त औद्योगिक उपक्रमों की अपनी लगभग 1200 अनुसंधान और विकास इकाइयाँ हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में अनुसंधान करती हैं। अनेक भारतीय विश्वविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों के समकक्ष मान्यता प्राप्त संस्थाओं जैसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में भी अनुसंधान और विकास का काफी काम होता है।
नई विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी नीति 2003 विज्ञान और प्रौद्योगिकी के भावी कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करने और नई पहलों को दिशा देने के लिए सरकार ने विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी नीति 2003 की घोषणा की थी। इस नीति में विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रशासन के प्रति रवैया, मौजूदा भौतिक और ज्ञान संसाधनों के उचित इस्तेमाल, प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन और उनसे उबरने के लिए नई तकनीकों और प्रणालियों के विकास, नई प्रौद्योगिकी के विकास, बौद्धिक संपदा के सृजन और प्रबंधन तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी के लाभों और उपयोगों के बारे में आम जनता के बीच जागृति पैदा करने की रूपरेखा बनाई गई है।