अनुच्छेदों व अनुसूचियों का जटिल जाल कहलाने वाले भारतीय संविधान का नाम दुनिया के बेहतरीन किताबी संविधानों में शुमार है। बात चाहे संविधान में संशोधनों की हो या उसकी खूबियों की, दोनों ही मामलों में इस संविधान ने नवीन कीर्तिमान रचे हैं। नित नए प्रयोगों के नाम रहे भारतीय संविधान में अपने निर्माण के एक वर्ष पश्चात ही पहला संशोधन होना कहीं न कहीं इस संविधान की सफलता को संदेहित करता है। पिछले 62 वर्षों में 95 से अधिक संशोधनों के थपेड़े सह चुका भारतीय संविधान का वर्तमान स्वरूप अब किसी ठोस बदलाव की सुगबुगाहट के रूप में संविधान पर पुनर्विचार की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट कर रहा है।
संविधान किसी भी देश की सर्वोच्च विधि होता है। देश को कानून की सीमाओं में बाँधते हुए उसके सुचारू संचालन हेतु संविधान के औचित्य को नकारा नहीं जा सकता है। यह सत्य है कि संविधान की अनुसूचियों व अनुच्छेदों में लिखे शब्दों से देश का वर्तमान और भविष्य निर्धारित होता है। एक उम्दा किताबी संविधान को बनाने के लिए हमने दुनिया के अनेक देशों के संविधानों से बेहतर प्रणालियों व नीतियों का समावेश तो अपने संविधान में कर लिया, लेकिन व्यावहारिक तौर पर देश की मौजूदा शासन व्यवस्था के अनुरूप नहीं होने के कारण यह संविधान प्रतिवर्ष संशोधनों की कसौटियों पर कसा जाता रहा।
हमने जो संविधान बनाया है। उसका लगभग दो-तिहाई भाग अंग्रेजों द्वारा बनाए गए भारत शासन अधिनियम पर आधारित है। इसका यह अर्थ हुआ कि गुलामी के शासन की पुरानी अवधारणा को हमने अपने संविधान में भी अंगीकार कर लिया है। यही मुख्य कारण है कि भरपूर संसाधन होते हुए भी आज हमारा देश पिछड़ेपन, महँगाई और भ्रष्टाचार से ग्रसित है। हम इसे नेताओं की स्वार्थसिद्धि कहे या लोकतंत्र की बदहाल स्थिति, जिसके चलते हमारे संविधान में सुधार के नाम पर एक के बाद एक संशोधन होते गए, लेकिन ये सभी संशोधन आमजनता के लिए तो ऊँट के मुँह में जीरे के समान नगण्य सिद्ध हुए।
आज संविधान की अवधारणा के उलट लोकतंत्र का मखौल उड़ाता भेड़तंत्र अपनी बेहद ही चिंताजनक स्थिति में है, जिसमें संसद मूक है और न्यायपालिका पर सवाल उठ रहे हैं, राजनेता घोटालों में लिप्त हैं व जनता अपने अधिकारों के प्रति सुसुप्त। ऐसी स्थिति में बुरी तरह लड़खड़ाया भारतीय संविधान अब अपने औचित्य को बरकरार रखने के लिए भी सतत संघर्ष करता नजर आ रहा है।
गणतंत्र दिवस पर संविधान की खूबियों का बखान कर वाहवाही लूटने की बजाय अब आवश्यकता है संविधान की खामियों को दूर करने की, उन परिवर्तनों को करने की, जो हमें निरक्षरता, भ्रष्टाचार, घोटाले, गरीबी, असमानता व पिछड़ेपन के दंश से राहत दिला सकें। याद रखिए उधार की चीजों से संविधान का शृंगार करने मात्र से वह प्रभावी संविधान नहीं बन पाएगा। संविधान को बेहतर व प्रभावी बनाने के लिए अपने अधिकारों की माँग करने के साथ ही हमें भारतीय संविधान में उन परिवर्तनों के लिए आवाज उठाना होगी, जिससे आमजन का भला होने के साथ ही देश का समुचित विकास भी हो।
संविधान में अनुत्तरित प्रश्न * देश के मंत्रियों की शैक्षणिक योग्यता। * भ्रष्टाचार व महँगाई पर अंकुश लगाने की ठोस व्यवस्था। * देश में ऐसी सत्ता, जिसमें आम आदमी का सत्ता पर प्रत्यक्ष नियंत्रण हो। * गरीबी उन्मूलन के लिए बेहतर कानून।
15वाँ संशोधन (वर्ष 1963) इस संशोधन द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई।
41वाँ संशोधन (वर्ष 1976) राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष के स्थान पर 62 वर्ष कर दी गई।
42वाँ संशोधन (वर्ष 1976) संविधान की उद्देशिका में पंथनिरपेक्ष तथा अखंडता शब्द जोड़े गए। इस संशोधन द्वारा नागरिकों के 10 मूल कर्तव्यों को जोड़ते हुए मौलिक अधिकारों की तुलना में नीति निदेशक तत्वों को प्रमुखता प्रदान की गई।
44वाँ संशोधन (वर्ष 1978) इस संशोधन द्वारा संपत्ति के मूल अधिकार को रद्द करते हुए उसे कानूनी अधिकार माना गया तथा साथ ही संविधान संशोधनों को न्यायालयों में चुनौती देने की अनुमति भी दी गई।
91वाँ संशोधन : (वर्ष 2003) इस संशोधन का उद्देश्य दल-बदल पर रोक लगाने के साथ ही केंद्र तथा राज्यों में मंत्री परिषद के आकार को सीमित करना है।
92वाँ संशोधन (वर्ष 2003) संविधान की आठवीं अनुसूची में बोडो, डोगरी, मैथिली तथा संथाली भाषा को शामिल किया गया।
संविधान के बारे में विद्वानों के विचार - जो मुझे कहा गया है, वह मैंने किया, इसे मैंने सिर्फ अपने शब्द दिए हैं, विचार नहीं। -बाबा सा. आम्बेडकर
- यह संविधान अगर भूखों को रोटी और नंगों को कपड़े नहीं दे पाया तो यह मात्र कागज के टुकड़ों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। -पंडित नेहरू