सपनों की उड़ंची से शब्दों की प्राण-प्रतिष्ठा

जयदीप कर्णिक

सोमवार, 22 सितम्बर 2014 (19:10 IST)
वेबदुनिया के 15वें स्थापना दिवस पर विशेष संपादकीय
 
सपनों की परवाज़ को बस एक उड़ंची की दरकार होती है। पतंग की आसमान छूती बुलंदी तय करती है कि उड़ंची में कितना दम था। डोर को साधे रखने वाले और पतंग को आसमान में सजाए रखने वाले हाथों का हुनर जहाँ बहुत अहमियत रखता है, वहीं ऊँची उड़ती पतंग की डोर का एक सिरा ज़मीन पर बना रहना भी जरूरी है। साथ ही आसमानी ऊँचाई पर पतंग को उड़ंची देने वाले हाथों का शुक्रगुजार भी रहना चाहिए। उड़ंची देने वाले की भावनाएँ और संकल्प भी पतंग के साथ हवा में उड़ान भरते हैं। वेबदुनिया को ये उड़ंची मिली थी 23 सितंबर 1999 को। 
 
 
इस उड़ान की तैयारी काफी पहले से शुरू हो गई थी। माँजा सूतने और जोत बाँधने में बुलंद इरादों की डोर, लगन का सरेस और त्याग का पिसा हुआ काँच काम आया। वो संकल्प जिसने उचका कभी खाली नहीं होने दिया। उड़ंची के बाद सफर जितना आसान लगा था, उतना रहा नहीं। पतंग ने कई हिचकोले भी खाए और बेहवा भी हुई। पर उड़ान जारी रही। आज जो पतंग आसमान में सजी हुई दिखाई दे रही है उसके पीछे की तमाम कवायद और मेहनत को सामने लाना आज बहुत लाजिमी हो जाता है। 


 
शब्द जब तक शब्दकोश का हिस्सा हैं, वो कारीगर के कारखाने में रखी मूर्ति के समान हैं। जब वो साधक द्वारा संकल्प शक्ति के साथ साधाना का हिस्सा बनते हैं तो उनमें प्राण आते हैं। इंटरनेट पर हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों के लिए यही प्राण-प्रतिष्ठा का कार्य वेबदुनिया ने किया है। कारखाने में रखी मूर्ति को विधि-विधान से इंटरनेट के मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठित किया। चाहे वो उस भाषा का साहित्य हो, संस्कृति का वर्णन हो, ख़बरें हों या इतिहास हो, इस सबको उसी भाषा में इंटरनेट पर उपलब्ध करवाने का इरादा वेबदुनिया का पाथेय बन गया। नीयत अगर शुद्ध व्यावसायिक होती तो पतंग कब की ज़मीन पर आ जाती और मूर्ति से प्राण चले जाते। पर व्यावसायिक मोर्चे पर लगातार विपरीत हवा को झेलते हुए भी यदि यात्रा जारी रही तो इसमें इरादों की, नेकनीयत की बड़ी भूमिका थी। 
 
सन 2000 से 2002 के बीच डॉट कॉम जितनी तेजी से खुले, उतने ही धड़ाधड़ बंद भी हो गए। शायद इसलिए कि जब वो खुले तो इसलिए कि सब खोल रहे हैं। कोई कारू का ख़जाना है जिसके पीछे सब भागे जा रहे हैं। जो निवेशक पैसा लगा रहे थे उनका भी एक बड़ा अजीब दबाव था कि पैसा तेजी से खर्च करो। अजीब होड़ थी। इसीलिए खजाना मिला नहीं और पैसा ख़त्म हो गया। खेल खत्म, पैसा हजम। पर वेबदुनिया के लिए ये खेल इसलिए ख़त्म नहीं हुआ क्योंकि अव्वल तो ये खजाने की खोज में शुरू हुआ कोई उपक्रम था ही नहीं। उसके काफी पहले शुरू हुआ एक तकनीकी नवोन्मेष था जो बस अपनी राह तलाशते हुए आगे बढ़ रहा था।
 
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दूसरा यह कि वेबदुनिया के साथियों ने कभी हिम्मत नहीं हारी। और ये बिल्कुल भोगा हुआ सच है कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। कोशिश की और आय के नए साधन जुटते चले गए। पहला काम मिला था सत्यम की वेबसाइट को तमिल और हिन्दी में बनाने का। फिर एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के भारत ज्ञान कोश का हिंदी अनुवाद। माइक्रोसॉफ्ट के साथ भाषाई  सहयोग ने आय के नए स्रोत खोले और काफिला चलता रहा। तमाम उतार-चढ़ावों के बीच भी लक्ष्य पर निगाह बनी रही। 
 
एक उम्मीद थी कि वो सुबह जरूर आएगी। पौ फटने का इंतज़ार अब भी है। पर क्षितिज पर टिकी निगाहें अब ज़्यादा आशावान हो गई हैं। हर कोई डिजिटल क्रांति और उसमें भारतीय भाषाओं की भूमिका की बात कर रहा है। जो कुछ हो रहा है उससे एक गर्व मिश्रित सुकून उमड़ता है कि 'अरे, यही तो हम सोचते थे, यही तो हम कहते थे'। यही सोचकर तो वेबदुनिया की नींव रखी गई थी। अब वो ही सब हो रहा है। चाहे फोनेटिक की बोर्ड हो, वाक से पाठ हो, भाषाओं में खोज हो सभी को लेकर वेबदुनिया ने सोचा और काम किया। सोच और दिशा सही थी। कुछ कर पाए कुछ नहीं कर पाए और अब भी बहुत कुछ है जो किया जाना है। 
 
एक ताज़ा आँकड़े के मुताबिक भारत में मोबाइल और कंप्यूटर से इंटरनेट पर आने वाले उपयोगकर्ताओं की संख्या 24 करोड़ को पार कर गई है। और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। इंटरनेट का शुरुआती उपयोग अधिकतर अंग्रेज़ी जानने वालों ने किया। अब जो वृद्धि आएगी वो भाषाई उपयोगकर्ताओं से आएगी। इन सबको कैसे बेहतर और पठनीय सामग्री मिले, ये चुनौती है। चुनौती है उपयोग बढ़ाने के आसान उपाय अपनाने की बजाय धीमे विकास की कठिन लेकिन सही राह पर बनी रहने की। निश्चित ही आप सब की शुभकामनाओं से इस चुनौती का सामना सफलतापूर्वक कर पाएँगे। 
भाषाओं को आगे बढ़ाने में सोशल मीडिया भी अहम भूमिका निभा रहा है। जिस चाव से उस पर देवनागरी में लिखा और पढ़ा जा रहा है वो उत्साह बढ़ाने वाला है। कमी केवल विश्वसनीयता की है। ये समय के साथ परिपक्वता आने पर दूर होगी। वेबदुनिया अपनी विश्वसनीय पत्रकारिता के साथ भूमिका निभाएगा।
 
आज सात भाषाई पोर्टल, 35 से अधिक भाषाओं में स्थानीयकरण सेवाओं और विश्व की बड़ी कंपनियों को दी जा रही तकनीकी सेवाओं के माध्यम से वेबदुनिया - भाषा, स्थानीयकरण और तकनीक तीनों ही क्षेत्रों में मजबूती और विश्वास के साथ आगे बढ़ रही है। 15 साल के इस अहम पड़ाव पर आप सबको बहुत बधाई और शुभकामना...... ।

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