तकनीक के सहारे फैलता आतंकवाद

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आतंकवाद आज जो रूप धारण कर रहा है इससे वो सि‍र्फ भारत के लि‍ए ही नहीं सारे वि‍श्व के लि‍ए एक ज्‍वलंत समस्‍या बन गया। दरअसल नई-नई तकनीकों से बढ़ते साधनों ने जीवन को जि‍तना आसान बनाया है उतना ही आतंक फैलाना भी सरल हो गया है। सूचना तकनीक के ‍नित नवीन रूपों से जि‍तनी सुवि‍धा मि‍ली है उतनी ही असुरक्षा भी पैदा हो गई है।

आतंकवाद और तकनीक आज एक दूजे के पक्के साथी बन गए हैं। जैसे-जैसे मुंबई बम हमलों के षडयंत्र की परतें खुल रही है यह बात सामने आ रही है कि‍ मोबाइल और इंटरनेट तकनीक ने आतं‍कवादियों का कि‍स तरह से सहयोग कि‍या। दुनिया में बढते आतंकी नेटवर्क और उससे मुकाबला कर रही सुरक्षा एजेंसियों के बीच मानो होड़ लगी रहती है कि कौन पहले तकनीक का इस्तेमाल करता है।

जाली पहचान बनी परेशानी: मुंबई हमलों की जाँच के दौरान पता चला कि‍ बांग्‍लादेश के एक व्‍यक्ति‍ ने आतंकवादि‍यों को सि‍म कार्ड और जाली आईडी कार्ड पश्चि‍मी देशों जैसे मॉरि‍शस, यूके, यूएस, ऑस्‍ट्रेलि‍या के जरि‍ए मुहैया कराए। हमले में मारे गए एक आतंकी के पास मॉरि‍शस का आइडेंटि‍टी कार्ड बरामद हुआ था। आतंकवादी जि‍स बोट से मुंबई में घुसे थे उसमें एक सैटेलाइट फोन पाया गया जहाँ से जलालाबाद में कि‍ए गए कॉल्‍स का वि‍वरण डि‍टेल था। ये कॉल्‍स आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा के प्रमुख जाकि‍रउर्रहमान को कि‍ए गए थे।

आतंकि‍यों की सुरक्षि‍त वापसी के रास्‍ते को उनके साथि‍यों ने जीपीएस डि‍वाइस में स्‍टोर करके रखा था। बोट में ग्‍लोबल पॉजि‍शनिंग सि‍स्‍टम मैप भी मि‍ला है। जि‍सके जरि‍ए कॉल्‍स और बोट द्वारा कराची से कोलाबा (मुंबई) तक यात्रा की जानकारी मि‍ली है। साथ ही सेटेलाइट फोन के रि‍कॉर्ड से यह पता लगाया गया कि‍ बोट में कॉल कहाँ-कहाँ से आए थे।

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आतंकवादि‍यों ने 3 सि‍म कार्ड बांग्‍लादेश की सीमा से खरीदे थे और एक सि‍म अमेरि‍का के न्‍यूजर्सी से भी खरीदी गई। इंटरनेट फोन सक्रि‍य करने के लि‍ए इटली से पैसा आता था। इटली के ब्रेशि‍या शहर से पकड़े गए दो लोग इस काम के लि‍ए आतंकि‍यों को इंटरनेट के जरिए फंड भेजते थे। इतना ही नहीं आतंकि‍यों ने फर्जी आईएमईआई नंबर वाले मोबाइल फोन्‍स का भी उपयोग कि‍या था।

सोचने की गति से बाहर आती खबरें:

मुंबई के होटल ताज पर आतंकी हमला शुरु होने के बाद ट्वि‍टर पर हर 5 सेकेंड में 70 ट्वीट्स पोस्‍ट कि‍ए जा रहे थे या भेजे जा रहे थे। मुंबई हमलों की ब्रेकिंग न्‍यूज भी ट्वि‍टर, फ्लि‍कर और एसएमएस के जरि‍ए बाहर आई। मुंबई के एक ब्‍लॉगर ग्रुप ने अपने मेट्रोब्‍लॉग का उपयोग हमलों के दौरान संदेश के आदान-प्रदान के लि‍ए कि‍या। इसी तरह हमले में फँसे होटल के लोगो को भी होटल स्टाफ एसएमएस और मोबाइल के जरिए सतर्क कर रहा था।

आतंकी हमले की खबर की पुष्टि होने के 1 मि‍नट बाद ही मुंबई हमलों के बारे में विकीपिडिया पर एक वि‍शेष पेज सेट कर दि‍या गया था। जिन जगहों पर हमले हुए थे उनके बारे में ताजा जानकारी इंटरनेट पर लगातार उपलब्ध हो रही थी, गूगल मैप पर हमले वाली इमारतों की लोकेशंस को दि‍खाया जा रहा था।

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आतंकवादि‍यों ने हमलों की साजि‍श में ब्‍लैक बेरी जैसे उच्च तकनीक वाले फोन का इस्‍तेमाल कि‍या था जि‍सके जरि‍ए वो समाचारों के लि‍ए ब्रि‍टेन की एक वेबसाइट से जुड़े रहते थे। ताज होटल में टीवी केबल से संपर्क टूटने के बाद आतंकि‍यों ने इंटरनेट का इस्‍तेमाल बाहर की जानकारी प्राप्त करने के लि‍ए कि‍या था।

आतंकि‍यो से 5 ब्‍लैकबेरी फोन बरामद हुए जि‍ससे पता चलता है कि‍ आतंकी इंग्‍लैंड के भी संपर्क में थे। उन्‍होंने न सि‍र्फ अंग्रेजी बल्‍कि‍ उत्तरी इंग्‍लैंड में ज्‍यादा पहचानी जाने वाली उर्दू और अरबी वेबसाइटों के जरि‍ए भी जानकारी एकत्र की थी। आतंकि‍यों के पास मेगाफोन्‍स भी थे जि‍ससे वो एक दूसरे को चेतावनी देते रहते थे।

मुसीबत बनते इंटरनेट कॉल्स:

मुंबई आतंकी हमलों के बाद इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) ने संचार मंत्रालय से सभी इंटरनेट टेलीफोनी सेवाएँ (वीओआईपी) तब तक बंद करने को कहा है, जब तक कि संदिग्ध कॉलों को ट्रैस (स्रोत की पहचान) व ट्रैक (सटीक स्थिति) पता करने की व्यवस्था मुकम्मल न हो जाए। आईबी का मानना है कि इस समय देश में इंटरनेट टेलीफोन कॉल (घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय) को ट्रैक करने की सुविधा नहीं है। लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से इसका जल्द से जल्द हल खोजा जाना चाहिए।

संचार मंत्रालय को भेजे एक पत्र में आईबी ने कहा कि कॉलर लाइन पहचान (सीएलआई) घटकों के अभाव में विदेशों से आने वाले कॉलों की पहचान नामुमकिन है। पाबंदियो के बावजूद भारत में कई सेवा प्रदाताओं ने घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय कॉलों के लिए वीओआईपी सोल्यूशन उपलब्ध कराए हैं। ऐसे कॉल के मामलों में वास्तविक कॉलर की पहचान असंभव होती है।

विदेशों से आई कॉल के लिए सीएलआई को बाध्यकारी बनाना संभव नहीं है इसलि‍ए आईबी ने इस समस्या का तकनीकी हल खोजे जाने तक विभाग से नेट टेलीफोनी सेवाएँ बंद करने को कहा है।

साथ ही गृह मंत्रालय ने बिना आईएमईआई पहचान नंबर वाले चीनी मोबाइल फोनों के आयात पर प्रतिबंध लगाने की भी बात कही है। इस तरह के हैंडसेटों का एक बड़ा हिस्सा चीन से आता है। जिन फोनों में अंतरराष्ट्रीय मोबाइल इक्विपमेंट पहचान आईएमईआई संख्या नहीं होती उन्हें सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा माना जाता है। 26 नवंबर 2008 को मुम्बई में आंतकी हमले के बाद इनके इस्तेमाल को लेकर चिंता व्यक्त जा रही है। देश में तकरीबन 250 लाख ग्राहक चीन में बने मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

मंबई हमले के दौरान जबरदस्‍त चर्चा में आई सोशल नेटवर्किंग साइट ट्वि‍टर भले ही आज सबसे लोकप्रि‍य और शक्‍ति‍शाली सामाजिक माध्यम हो लेकि‍न कुछ सरकारी एजेंसि‍यों को आज भी इनके गलत इस्‍तेमाल होने का डर है। खासतौर से आतंकवादी इन साइट्स को आपस में संप्रेषण और सूचना का माध्‍यम बनाते हैं। हाल ही में अमरि‍की रक्षा विभाग ने चेतावनी दी थी आतंकवादी संगठन निशुल्क इंटरनेट सेवाओं जैसे ट्वि‍टर को बातचीत का जरि‍या बना सकते हैं जि‍से ट्रैस और ट्रैक करना मुश्कि‍ल होता है।

हालाँकि यह बात भी पूर्णत: सही है कि‍ सूचना तकनीक के कारण ही आतंकि‍यों के नेटवर्क का पता लगाने में मदद मि‍ली लेकि‍न इस तकनीक का ज्‍यादा लाभ आतंकवादियों ने उठाया है इसमें दो राय नहीं है।

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