पुराणानुसार श्री रूद्र परमात्मा देवाधिदेव महादेव अनादिकल्पेश्वर महादेव के बारे में माता पार्वती को बताते हैं। वे कहते हैं यह लिंग कल्प से भी पहले प्रकट हुआ है। उस समय अग्नि, सूर्य, पृथ्वी, दिशा, आकाश, वायु, जल,चंद्रग्रह, देवता, असुर, गन्धर्व,पिशाच आदि भी नहीं थे। इसी लिंग से देव, पितृ, ऋषि आदि के वंश उत्पन्न हुए हैं। इस लिंग से ही सारा चर-अचर संसार उत्पन्न हुआ है और इसी में लीन हो जाता है।
पौराणिक आधार:
पौराणिक उल्लेख के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु में यह विवाद हो गया कि उनमें बड़ा कौन है। तभी यह आकाशवाणी हुई कि महाकाल वन में कल्पेश्वर नामक लिंग है, उसका आदि या अंत जो जान लेगा वह बड़ा है। यह सुनकर दोनों देव अपनी पूर्ण शक्ति के साथ महाकाल वन पहुंचे और लिंग का आदि तथा अंत खोजने लगे। ब्रह्मा ऊपर की ओर तथा विष्णु नीचे की ओर गए। अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें उस लिंग का आदि तथा अंत नहीं दिखा इसलिए यह लिंग अनादिकल्पेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।