2007 का सेहत

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''जाको राखे साँइया मार सके न कोई... '' वाली कहावत तो आपने भी सुनी होगी, ल‍ेकिन जब यह कहावत चरितार्थ होकर हमारे आस-पास दिखने लगती है तो हम दाँतों तले अँगुली दबा लेते हैं। ऐसी ही कुछ घटनाएँ या कहें चमत्‍कार चिकित्‍सा जगत में घटित हुए हैं जो हमें इसे मानने को बाध्‍य करते हैं। 2007 में कुछ ऐसी ही चिकित्‍सा की जादूगारी से आप भी रू-ब-रू होइए-

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लक्ष्‍मी का ऑपरेशन- बिहार के अररिया जिले की लक्ष्‍मी का ऑपरेशन भारत के चिकित्‍सा जगत में एक चमत्‍कार माना गया। दो साल की बच्‍ची जो जन्‍म से ही विकृत पैदा हुई थी।

उसके शरीर के निचले हिस्‍से से बिना धड़ के एक और शरीर जुड़ा था। उसके माँ-बाप उम्‍मीद हार चुके थे। लेकिन बंगलौर के स्‍पर्श अस्‍पताल के डॉक्‍टर शरण पाटिल ने इस असंभव को संभव कर दिखाया। अब लक्ष्‍मी पूरी तरह स्‍वस्‍थ है और बिना सिकी सहारे के चल सकती है।

मनीष राजपुरोहित - 18 साल के मनीष राजपुरोहित को भारत का सबसे भाग्‍यवान युवा करार दिया गया है। वजह है उसका मौत के मुँह से बाहर निकल आना। यह घटना थी, आंध्रप्रदेश की जहाँ मनीष की बस एक लॉरी से टकरा गई थी और एक धातु की छड़ उसके सिर के आर-पार हो गई। लेकिन उस बहादुर ने असीम पीड़ा को सहते हुए हिम्‍मत बनाए रखी। मनीष को बंगलौर ले जाया गया, जहाँ उसका इलाज किया गया और अब वह पूर्णत: स्‍वस्‍थ है। मनीष का इलाज भी शरण पाटिल ने ही किया था।

12 साल का वैज्ञानिक- आकृत नाम का 12 साल का यह वैज्ञानिक, जिसने अपनी बुद्धिमत्‍ता से सबको चकित कर दिया है। वह बड़ी ही गंभीरता से कैंसर के इलाज पर शोध करता है। सात साल की उम्र में उसने एक ऐसी बच्‍ची का इलाज किया था, जिसकी ऊँगलियाँ आग से पूरी तरह झुलस गई थीं।

उसकी योग्‍यता से प्रभावित होकर ही उसे अमरीका के वैज्ञानिकों ने आमंत्रित किया। जहाँ उसके आईक्‍यू का परीक्षण किया गया। वहाँ के वैज्ञानिक उससे काफी प्रभावित हुए और उन्‍होंने उम्‍मीद जताई कि आकृत कैंसर पर अपने शोध में एक दिन कामयाब होगा।