वक्त कितनी जल्दी पंख लगाकर फुर्र से उड़ता चला जाता है, पता ही नहीं चलता। अब 2014 के साल को ही देखिए, वह भी खत्म होने की दहलीज पर आ खड़ा हुआ है। पूरे साल की खेल उपलब्धियों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि इस साल हुए दो बड़े खेल आयोजनों के जरिए भारतीय खिलाड़ियों ने विदेशी जमीं पर बड़ी शान के साथ तिरंगा लहराया है और अपनी ताकत का अहसास पूरी दुनिया को करवाया है।
2014 में भारतीय खिलाड़ियों के दमदार प्रदर्शन से यह तो उम्मीद जाग ही गई है कि आने वाले वक्त में ये खिलाड़ी दुनिया के दिग्गज खिलाड़ियों को न केवल चुनौती देंगे बल्कि उन पर फतह भी हासिल करेंगे। भारतीय पुरुष खिलाड़ियों के साथ-साथ महिलाओं खिलाड़ियों ने भी पूरी दुनिया को यह दिखा दिया है कि उनकी बाजुओं में लोहा भरा हुआ है।
साइना नेहवाल, तीन बच्चों की मां एमसी मैरीकॉम, विवाहिता सानिया मिर्जा ने अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से भारत का सिर दुनिया के खेल मंच पर ऊंचा किया है। इन तीनों महिला खिलाड़ियों को पूरे भारत की तरफ से कड़कदार सैल्यूट। 2014 में ग्लास्गो में हुए राष्ट्रमंडल खेल और इंचियोन में हुए एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने अपने गले पदक से सजाए। जहां राष्ट्रमंडल खेलों में 15 स्वर्ण, 30 रजत और 19 कांस्य पदक जीते तो एशियाई खेलों में 11 स्वर्ण, 10 रजत समेत भारत कुल 57 पदक जीतने में कामयाब रहा।
साइना नेहवाल : 'भारत की शटल गर्ल' साइना नेहवाल ने 2014 में 3 अंतरराष्ट्रीय खिताब चाइना ओपन, इंडियन ओपन ग्रैंड प्रिक्स गोल्ड और ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर सीरीज जीतने में कामयाबी हासिल की। उबेर कप को बैडमिंटन का प्रतिष्ठित टूर्नामेंट माना जाता है और इसमें भारतीय टीम कांस्य पदक जीतने में कामयाब रही। साइना भी इस टीम का हिस्सा थी।
साइना नेहवाल ने पूरे देश में बैडमिंटन के खेल को लोकप्रिय बनाने में महती भूमिका निभाई है। वे अब युवा प्रतिभाओं के लिए एक रोल मॉडल बन चुकी हैं। साइना ने अपनी अंतरराष्ट्रीय कामयाबियों से विश्व बैडमिंटन की रैंकिंग में भी चौथी पायदान हासिल की। हालांकि यह भूलना बेमानी ही होगा कि 2 दिसंबर 2010 और 20 जुलाई 2013 को साइना दुनिया की नंबर दो खिलाड़ी बनने का रुतबा भी हासिल कर चुकी हैं।
2015 का साल भारत की इस 'शटल गर्ल' के लिए और अधिक कामयाबी भरा रहेगा, ऐसा पूरा भरोसा किया जाना इसलिए भी चाहिए कि उन्हें कोर्ट पर यह महारत हासिल हो चुकी है कि चीनी और इंडोनेशियन महिलाओं को किस तरह हराया जाता है।
पीवी सिंधु : साइना नेहवाल जहां भारतीय महिला बैडमिंटन की चुनौती बनकर पूरी दुनिया पर छा गई हैं, उसी तरह पीवी सिंधु ने भी लगातार कामयाबियां हासिल करके नई आशा की किरण जगा दी है। 19 बरस की सिंधु देश की ऐसी पहली खिलाड़ी बन गई हैं जिन्होंने विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में लगातार 2 पदक हासिल किए हैं।
2013 और 2014 की विश्व बैडमिंटन प्रतियोगिता में सिंधु ने कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। यही नहीं, इस साल इंचियोन एशियाई खेलों की टीम स्पर्धा में जब भारत ने कांस्य पदक जीता, तब भी सिंधु भारतीय टीम का हिस्सा थीं। हैदराबाद की इस स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी ने 2014 के साथ का अंत भी खिताबी जीत के साथ किया। वे मकाऊ ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप में लगातार दूसरी मर्तबा चैंपियन बनीं।
एमसी मैरीकॉम : साइना और सिंधु के बाद यदि किसी तीसरी महिला खिलाड़ी का खयाल जेहन में आता है तो यकीनन वह खिलाड़ी एमसी मैरीकॉम ही हैं जिन्होंने उम्र को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। भारत में महिलाएं बाल-बच्चेदार होने के बाद खेल जीवन से संन्यास ले लेती हैं लेकिन मैरीकॉम उनमें शुमार नहीं हुईं।
भारतीय महिला बॉक्सिंग की 'आइकन' बन चुकी मैरीकॉम ने 3 बच्चों की मां बनने के बाद भी मुक्केबाजी के रिंग में जो पंच बरसाए, वह दीगर महिलाओं के लिए एक मिसाल बन चुके हैं। 5 बार की विश्व चैंपियन मैरीकॉम ने छठी विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में भी पदक जीतने का गौरव हासिल किया।
चार बरस पहले ग्वांगझू एशियाड में जब मैरीकॉम ने कांस्य पदक पदक जीता था, तब लगा था कि वे अगले एशियाड में नहीं उतरेंगी, लेकिन 2014 के इंचियोन एशियाड में उन्होंने स्वर्ण पदक जीतकर पूरे एशियाई जगत में यह साबित कर दिखाया कि उनकी बाजुओं में अभी भी फौलाद भरा हुआ है।
मैरीकॉम की इसी अटूट खेलभावना ने बॉलीवुड को भी आकर्षित कर डाला और उनके जीवन पर फिल्म 'मैरीकॉम' बनी जिसमें मैरीकॉम का किरदार प्रियंका चोपड़ा ने बखूबी निभाया।
सानिया मिर्जा : पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक की बीवी बनने के बाद भी सानिया मिर्जा ने टेनिस का दामन नहीं छोड़ा और वे अभी भी कामयाबियों की नई मंजिलें तय करती जा रही हैं। 2014 का साल भी सानिया के लिए बेहद खास रहा।
इस साल उन्होंने अपने टेनिस करियर का तीसरा ग्रैंड स्लैम खिताब (मिश्रित युगल) जीता। 2009 में ऑस्ट्रेलियन ओपन और 2012 में फ्रेंच ओपन के बाद 2014 में सानिया ने अमेरिकी ओपन में ब्रूनो सोयर्स के साथ मिश्रित युगल खिताब जीतने में सफलता पाई। यही नहीं, सानिया डब्ल्यूटीए टूर फाइनल्स जीतने वाली देश की पहली टेनिस खिलाड़ी भी हैं। यह कामयाबी उन्होंने कारा ब्लैक को साथ लेकर हासिल की।
भारत की यह टेनिस सनसनी अंतरराष्ट्रीय टेनिस स्पर्धाओं की खातिर पहले इंचियोन एशियाई खेलों में हिस्सा नहीं ले रही थीं लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनकी दिल्ली में मुलाकात हुई, तब जाकर देश की खातिर उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। एशियाड में सानिया ने साकेत मायेनी के साथ मिश्रित युगल में जोड़ी बनाई और अपना गला सोने के पदक से सजाया। महिला युगल में भी सानिया मिर्जा के खाते में कांस्य पदक आया।
2015 की शुरुआत होने के पहले मीडिया में ये भी खबरें आईं कि उनकी पति शोएब मलिक के साथ अनबन चल रही है लेकिन इसकी आधिकारिक रूप से पुष्टि दोनों की तरफ से किसी ने भी नहीं कीं, अलबत्ता खबरें तो यहां तक मिल रहीं हैं कि सानिया के परिवार में नया मेहमान जल्दी ही आने वाला है।
सरिता देवी : 2014 में जहां एक ओर एशियाई खेलों में भारतीय कामयाबी की नई इबारत लिखी गई, वहीं एक खराब प्रसंग ने नए विवाद को जन्म दे दिया। यह विवाद था एल. सरिता देवी का। सरिता को जब लाइटवेट भार वर्ग के सेमीफाइनल मुकाबले में मेजबान कोरियाई मुक्केबाज के खिलाफ परास्त घोषित किया गया, तो वे रिंग में ही रो पड़ीं और पदक वितरण समारोह में उन्होंने कांस्य पदक लौटा दिया।
एशियाई खेलों के इतिहास में भारत का यह पहला प्रसंग था, जब किसी खिलाड़ी ने पदक वितरण समारोह में पदक लेने से इंकार किया हो। उन्होंने यह पदक उसी खिलाड़ी को वापस कर दिया जिससे वह हारी थीं।
हालांकि खुद सरिता ने भी बाद में अपने व्यवहार के लिए माफी मांग ली थी। सरिता पर ज्यादा सख्त कार्रवाई न हो, इसके लिए सचिन तेंदुलकर तक केंद्रीय खेलमंत्री से मिले। सरिता का विवाद लंबा चला। पहले यह कहा जा रहा था कि सरिता पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया जाएगा, लेकिन साल के आखिरी में फैसला हो गया कि सरिता केवल 1 साल तक मुक्केबाजी रिंग में नहीं उतर पाएंगी।
सीमा अंतिल : भारतीय एथलेटिक्स जगत में कृष्णा पुनिया के बाद कोई नाम उभरा है, तो वह नाम सीमा अंतिल का है। हरियाणा की इस एथलीट ने डोपिंग के कड़वे सच का सामना करने के बाद खुद को उभारा। यह एक संयोग ही है कि सोनीपत में जन्म लेने वाली सीमा अंतिल का विवाह भी पुनिया परिवार में ही हुआ। उन्होंने अंकुश पुनिया से विवाह किया, जो उनके कोच थे।
आज से 14 बरस पहले भारतीय एथलेटिक्स में सीमा ने तब नाम कमाया था, जब वे 17 बरस की उम्र में विश्व जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने में सफल रही थीं। राष्ट्रीय कीर्तिमानधारी 6 फीट ऊंची सीमा ने 2006 राष्ट्रमंडल खेलों में चक्काफेंक प्रतियोगिता में भारत के लिए चांदी का तमगा जीता। 2010 के दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने कांस्य पदक जीता।
सीमा की कामयाबी यहीं पर नहीं थमी, अलबत्ता 2014 में इंचियोन एशियाड में उन्होंने सोने के पदक को अपने गले में पहना। सीमा चक्का फेंक के अलावा भारत की 4 गुना 400 मीटर रेस में भी उतरीं और उन्होंने मंदीप कौर, पूवम्मा माचेटीरा, टिंटू लुका और प्रियंका पंवार के साथ देश को सोना दिलवाया।
दीपिका पल्लीकल : भारत की महिला स्क्वॉश खिलाड़ियों में नंबर एक पर दीपिका पल्लीकल का नाम शुमार होता है। 2014 का साल दीपिका के लिए नई खुशियों की सौगात लेकर आया। उन्होंने ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में जोशना चिनप्पा के साथ जोड़ी बनाई और भारत को स्वर्ण पदक दिलवाया। यह पहला प्रसंग था जबकि राष्ट्रमंडल खेलों की महिला युगल में भारत ने कोई पदक जीता हो। यही नहीं, राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में स्क्वॉश में भारत को यह पहला पदक था।
पद्मश्री से सम्मानित दीपिका पल्लीकल ने इंचियोन एशियाई खेलों में जानदार प्रदर्शन किया और एकल मुकाबलों के सेमीफाइनल में पहुंचकर कांस्य पदक अपने गले में पहना। इस तरह एशियाई खेलों की स्क्वॉश प्रतियोगिता में भी दीपिका पदक जीतने वाली देश की पहली खिलाड़ी बन गई। दीपिका के शानदार प्रदर्शन का ही नतीजा रहा कि वे आज से 4 साल पहले दुनिया की टॉप 10 खिलाड़ियों में जगह बनाने में कामयाब हुई थीं।
वीनेश फोगाट : कुश्ती में सिर्फ भारतीय पुरुष पहलवान ही कामयाबी हासिल नहीं कर रहे हैं, बल्कि महिला पहलवाओं ने भी देश का नाम ऊंचा किया है। भारतीय महिलाओं ने अपनी कुश्ती कला का शानदार प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रमंडल खेलों में 2 स्वर्ण, 3 रजत और 1 कांस्य पदक जीता। एशियाई खेलों में भी भारतीय पहलवान खाली हाथ नहीं लौटीं और उन्होंने भी 2 कांस्य पदक जीते।
ग्लास्गो राष्ट्रमंडल में वीनेश फोगाट का जलवा दिखाई दिया, जब उन्होंने 48 किलोग्राम फ्रीस्टाइल भार वर्ग में अपना गला सोने के पदक से सजाया। वीनेश ने एशियाई खेलों में भी कांस्य पदक जीतने में सफलता हासिल की।
वीनेश के पदचिह्नों पर चलकर गीतिका जाखड़ ने भी राष्ट्रमंडल खेलों में 63 किलोग्राम वर्ग में रजत और एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता। वीनेश और गीतिका के अलावा भारत की तीसरी पहलवान बबीता कुमारी भी ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की झोली में सोने का पदक डालने में कामयाब हुईं।
दीपा कर्माकर : जिम्नास्टिक में भी अब भारत अपनी दखल रखने लगा है और इसमें दीपिका कर्माकर का नाम शीर्ष पर है। दीपिका देश की ऐसी पहली जिम्नास्ट बन गई हैं, जिन्होंने ग्लास्गो राष्ट्रमंडल में भारत के लिए जिम्नास्टिक का दूसरा पदक जीता। इससे पहले 2010 में आशीष ने भारत के लिए पदक जीता था। महिलाओं की वोल्ट स्पर्धा 20 साल की दीपा ने 14.366 अंक अर्जित करके कांसे का पदक जीता। वे देश की पहली महिला जिम्नास्ट बन गई हैं, जिन्होंने राष्ट्रमंडल में कोई पदक जीता हो।
महिला कबड्डी में दिखाया दम : भारतीय महिलाओं ने पुरुषों कबड्डी टीम की शानदार कामयाबी से प्रेरणा लेकर लगातार दूसरी बार एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। 2010 के एशियाई खेलों में भी सोने का पदक जीता था और इसे 2014 के एशियाई खेलों में भी बररार रखा। सनद रहे कि 1990 से कबड्डी को एशियाई खेलों में शरीक किया गया था और तभी से सोने के पदक पर भारत की पुरुष टीम का अधिकार है।
पंकज आडवाणी : पंकज आडवाणी के लिए 2014 का साल काफी शानदार रहा और उन्होंने इस साल चार और विश्व खिताब करके इस साल को खेल और अपने लिए यादगार बना दिया। उन्होंने दो साल स्नूकर खेलने के बाद लगातार विश्व खिताब जीते।
आडवाणी के चार विश्व खिताब के अलावा यह साल चीन के किशोर यान बिंगताओ की कामयाबी के लिए भी याद किया जाएगा। 14 साल के बिंगताओ ने पिछले महीने बेंगलुरु में आईबीएसएफ विश्व स्नूकर चैम्पियनशिप के क्वार्टर फाइनल में आडवाणी को हराया और बाद में सबसे युवा स्नूकर चैम्पियन भी बने। फाइनल में उसने पाकिस्तान के मोहम्मद सज्जाद को मात दी।
पंकज आडवाणी ने इस साल बिलियर्डस और स्नूकर में अलग अलग प्रारूपों में सहजता के साथ खेलने के अलावा दोनों खेलों के दीर्घ और लघु प्रारूपों में भी अपनी महारत साबित की। वह बिलियर्डस और स्नूकर के दीर्घ और लघु प्रारूप में विश्व खिताब जीतने वाले वह पहले खिलाड़ी बने। यही नहीं, वे अपने करियर का तीसरा ग्रैंड डबल पूरा करने वाले एकमात्र खिलाड़ी हैं।
कीदांबी श्रीकांत : बैडमिंटन में साइना नेहवाल और पीवी सिंधु के बाद 21 साल के कीदांबी श्रीकांत ने भी कोर्ट पर अपनी ताकत का अहसास करवाया। इस साल कीदांबी श्रीकांत ने चीन ओपन सुपर सीरीज में लिन डेन को केवल 46 मिनट में 21-19, 21-17 से हराकर सनसनी फैला दी थी। यहां याद रखने वाली बात यह है कि लिन डेन पांच बार के विश्व बैडमिंटन चैम्पियन रहे हैं। उन्होंने चीन के लिए दो ओलंपिक स्वर्ण पदक भी जीते हैं।
विश्वनाथन आनंद : पांच बार के विश्व चैम्पियन विश्वनाथन आनंद का खेल अब उतार पर है। यह साल उनके लिए कामयाबी भरा नहीं रहा और वे लगातार दूसरी बार विश्व शतरंज चैम्पियनशिप में नार्वे के मैग्नस कार्लसन से हार गए। कार्लसन ने 12 बाजियों के मुकाबले को 11वीं बाजी में ही निपटा डाला। कार्लसन के 6.5 और आनंद के 4.5 अंक रहे।
किसी जमाने में आनंद ने रूस के दो दिग्गज शतरंज महारथी गैरी कास्परोव और ब्लादिमिर क्रैमनिक को हराया था और पूरी दुनिया ने भारत के इस शातिर का लोहा माना था लेकिन जैसे जैसे वक्त गुजरा, आनंद की धार कम होती चली गई। इसमें कोई शक नहीं कि विश्वनाथन आनंद ही देश के ऐसे पहले शतरंज खिलाड़ी हैं जिन्होंने पूरी दुनिया में अपनी दिमागी कसरत से कई धुरंधरों को मात दी है।