साल 2016 : सोना-चांदी में गिरावट से निवेशक हैरान

मुंबई। वर्ष 2016 सोने में मजबूती के साथ शुरु हुआ। वर्ष के दौरान यह निवेशकों की पहली पसंद बना रहा लेकिन साल समाप्त होते-होते इसकी चमक अचानक गायब होने लगी और वैश्विक घटनाक्रमों को देखते हुए इसमें अगले साल का परिदृश्य भी धूमिल नजर आने लगा।
दुनिया में आर्थिक अनिश्चतता बढ़ने के साथ सबकी नजरें सोने के निवेश पर लगी रहीं। पूरे साल वैश्विक आर्थिक वृद्धि को लेकर अनिश्चितता बनी रही ऐसे में दूसरी सभी निवेश परिसंपत्तियों पर सोना भारी रहा। पिछले तीन साल कीमती धातुओं में निवेश करने वालों के लिए काफी चुनौतीभरे रहे लेकिन इस साल इसमें अच्छी शुरुआत रही। वर्ष के दौरान यह आकषर्क बना रहा लेकिन साल समाप्त होते-होते इसकी चमक गायब होने लगी, जिसने सभी को हैरान कर दिया।
 
हालांकि साल के दौरान सोने के निवेशकों के लिए तसल्ली इस बात की रही कि साल दर साल आधार पर प्रतिफल कुल मिलाकर सकारात्मक रहा। वर्ष के आखिरी दिनों में सोना पिछले साल के मुकाबले 10 प्रतिशत और चांदी करीब 18 प्रतिशत ऊंची रही। हालांकि नीचे गिरने से पहले इस साल सोना और चांदी में वार्षिक रिटर्न क्रमश: 26 प्रतिशत और 45 प्रतिशत रहा।
 
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत, अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि करने से सोने की चमक फीकी पड़ने लगी। देश में कालेधन के खिलाफ सरकार की कड़ी कारवाई से इस पर और बुरा प्रभाव पड़ा। सरकार द्वारा अचानक 500 और 1,000 रुपए के नोट बंद करने से नकदी की किल्लत पैदा हो गई, कीमती धातुओं की मांग घट गई और नई ऊंचाइयां छूने वाला वाला सोना आखिरी दो महीनों में 40 प्रतिशत लुढ़क गया। 
 
पिछले साल 2015 के अंत में मुंबई में स्टैंडर्ड सोना (99.5 प्रतिशत शुद्धता) का भाव 24.980 रुपए था। सोने में वर्ष 2016 की शुरुआत 25,000 रुपए प्रति दस ग्राम के आसपास हुई। वैश्विक अनिश्चितता और निवेशकों का आकर्षण बढ़ने के साथ अगस्त 2016 में यह 31,570 रुपए की ऊंचाई पर पहुंचा, लेकिन बाद में नोटबंदी सहित विभिन्न कारणों से गिरता हुआ 27 दिसंबर 2016 को 27,585 रुपए रह गया। 
 
इसी प्रकार चांदी (999 शुद्धता) का भाव पिछले साल के आखिर में जहां 33,565 रुपए पर था नए वर्ष में 33,630 रुपए प्रति किलो के साथ शुरुआत करने के बाद यह 48,730 रुपए प्रति किलो की ऊंचाई तक गया और वर्षांत 39,575 रुपए किलो रह गया। वास्तव में वर्ष की समाप्ति तक दोनों कीमती धातुओं ने अपनी चमक खो दी।
 
वैश्विक स्तर पर भी सोने की शुरुआत उछाल के साथ हुई। वैश्विक बाजार में सोना 1,060.20 डॉलर प्रति औंस से बढ़ता हुआ अगस्त तक 29 प्रतिशत बढ़कर 1,372.60 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया। मध्य नवंबर में यह 1,123 डॉलर तक गिरने के बाद 27 दिसंबर 2016 को 1,151 डॉलर पर दस महीने के निम्न स्तर पर रहा।
 
चांदी का भाव भी विश्व बाजार में 50 प्रतिशत उछलकर 20.70 डॉलर प्रति औंस तक चढ़ने के बाद नवंबर शुरू में 15.70 डॉलर तक गिरा और उसके बाद दिसंबर में 16.14 डॉलर प्रति औंस पर चल रहा था। हालांकि स्थानीय बाजार में दाम कुछ ऊंचे रहने की बड़ी वजह डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरावट रही। मध्य नवंबर में डॉलर के मुकाबले रुपया 68.86 रुपए प्रति डॉलर के निचले स्तर तक पहुंच गया। निवेशकों और कारोबारियों के लिए यह बड़ी परेशानी रही। 
 
वर्ष के दौरान ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होने (ब्रेग्जिट) के फैसले से निवेशकों का विश्वास कीमती धातुओं के बाजार में बढ़ गया। चीन के बाजार में उतार-चढ़ाव ने भी निवेशकों को सोना, चांदी की तरफ आकर्षित किया। वैश्विक वृद्धि को लेकर बढ़ती चिंताएं, कच्चे तेल के गिरते दाम और भू-राजनीतिक जोखिमों ने कुल मिलाकर कीमती धातुओं में निवेश का काफी बेहतर परिवेश बना दिया था। 
 
कीमती धातुओं का यह आकर्षण वर्ष के आखिरी महीनों में समाप्त होने लगा जब वैश्विक बाजारों में उपभोक्ता जिंसों में गिरावट आने लगी। अमेरिकी फेडरल रिजर्व मौद्रिक नीति को मजबूत करेगा इस धारणा से इसमें गिरावट आने लगी और साल समाप्त होते-होते अमेरिका में ब्याज दरों में वृद्धि कर दी गई। इससे डॉलर मजबूत होने लगा और यह भी कहा जा रहा है कि अगले साल फेडरल रिजर्व दरों में और मजबूती करेगा।
 
तेल निर्यातक देशों के बीच वर्ष के आखिरी महीनों में कच्चे तेल उत्पादन में कटौती का समझौता होना भी सोने के निवेशकों के लिए नुकसानदायक रहा। इसके बाद नोटबंदी का फैसला सर्राफा बाजार पर दोतरफा मार के समान रहा। सरकार ने कालेधन को निकाल बाहर करने के लिए घर में सोना रखे जाने की सीमा तय कर दी। सर्राफा कारोबारियों को नोटबंदी के बाद काफी परेशानी झेलनी पड़ी। आयकर विभाग के छापों से कई दिनों तक उन्होंने अपने प्रतिष्ठान बंद रखे।
 
इससे पहले फरवरी में बजट पेश होने के बाद भी सर्राफा कारोबारियों ने एक महीने से अधिक दिनों तक अपने प्रतिष्ठान बंद रखे। बजट में स्वर्णाभूषणों के विनिर्माण पर एक प्रतिशत उत्पाद शुल्क लगाए जाने का वह विरोध कर रहे थे, हालांकि बाद में सरकार के आश्वासन के बाद हड़ताल समाप्त हो गई। (भाषा) 

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