शिवताण्डवस्तुति: शिव तांडव स्तुति हिंदी में अर्थ सहित | shiv tandav stuti Stotra in Hindi
गुरुवार, 10 अगस्त 2023 (16:35 IST)
Shiv tandav stuti Stotra
Shiv tandav stuti sanskrit And Hindi: आपने रावण रचित शिवजी का शिव ताण्डव स्त्रोत तो पढ़ा होगा। अब पढ़िये शिव तांडव स्तुति। शिव तांडव स्तुति को पढ़ने से शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यहां प्रस्तुत है प्रमाणित और चमत्कारिक रूप से फल प्रदान करने वाला शिव तांडव स्तुति का पाठ संस्कृत में हिन्दी अर्थ सहित। इसे सोमवार, प्रदोष या चतुर्दशी के दिन अवश्य पढ़ें या श्रावण माह में इसका नित्य पाठ करें।
देवा दिक्पतय: प्रयात परत: खं मुञ्चताम्भोमुच:
पातालं व्रज मेदिनि प्रविशत क्षोणीतलं भूधरा:।
ब्रह्मन्नुन्नय दुरमात्मभुवनं नाथस्य नो नृत्यत:
शम्भो संकटमेतदित्यवतु व: प्रोत्सारणा नन्दिन:।।1।।
दोर्दण्डद्वयलीलयाचलगिरिभ्राम्यत्तदुच्चै रव-
ध्वानोद्भीतजगद्भ्रमत्पदभरालोलत्फणाग्रयोरगम्।
[नन्दी ने भगवान शंकर का ताण्डव-नृत्य निर्विघ्न चलने के लिए कहा-] 'हे देवताओ! तथा दिक्पतियो! यहां से कहीं और दूर हट जाओ। जल बरसाने वाले बादलो! आकाश को छोड़ दो! पृथ्वि! तू पाताल में चली जा। पर्वतो! पृथ्वी के निचले भाग में प्रवेश कर जाओ। ब्रह्मन्! तुम अपने लोक को कहीं दूर और ऊपर उठा ले जाओ; क्योंकि मेरे स्वामी भगवान शंकर के नृत्य करने के समय में तुम सब संकट रूप हो। इस प्रकार लोगों को दूर जाने के लिए की गई नन्दी की घोषणा आप सबकी रक्षा करे।।1।।
ताण्डव नृत्य करते समय जब भगवान् अपनी दोनों भुजाओं को लीलापूर्वक घुमाने लगे तो उन भुजाओं के घुमाने से अचल पर्वत भी घूमने लगे। उनके घूमने से जो ध्वनि होती थी, वह बड़ी ही ऊंची आवाज में होती थी। उससे संसार भयभीत हो जाता था और पाद-विक्षेप करते थे तो उसके भार से शेषनाग का अग्रय-ऊपरी फण भी आंदोलित-चंचल हो जाता था। इस प्रकार भृंग के समान कृष्ण एवं पीले जटा समूहों से गंगाजी की अनवरत चलती हुई लहरों से चंचल चन्द्रमा वाले महेश्वर का ताण्डव नृत्य हम सभी के लिए कल्याणकारी हो।।2।।
संध्याकालिक ताण्डव नृत्य में डम्बर-चहल-पहल होने के व्यसनी भगवान् शंकर जब अपने दोनों भुजादण्डों को पृथ्वी के चारों ओर घुमाते तथा प्रचण्ड रूप में नाचते हुए चक्कर काटने लगे तो सहसा उनके वेगपूर्वक उछलने के कारण स्थान-स्थान पर पर्वतों के उड़ने से हुई आवाज के डर से इन्द्र ने भी एक बार फिर अपने वज्र को चलाने की दृष्टि से वज्र की ओर देखा। तत्कालीन ताण्डव नृत्य से होने वाले भुजदण्डों की झंझावात आप लोगों की रक्षा करे।।3।।
जब श्रीगणेशजी के अंग पूर्ण हो गए, तब क्रौंच के भेत्ता तरुण मयूर के वाही कार्तिकेय का मन प्रसन्नता से आन्दोलित हो उठा और उनका वाहन मयूर केका ध्वनि के साथ नाचने लगा, तब भगवती पार्वती अपने दोनों करतलों के बजाने के कारण हुई चंचल वलयों की झनकार से उसकी प्रशंसा करने लगीं। उचित समय देखकर भगवान् शंकर भी प्रेक्षक के रूप में पुलकित-मन हो, उसे आदर देने लगे। ऐसे भगवान् शिव का ताण्डव तुम्हें आनन्दित करे।।4।।