कालांतर में जब अक्षय तृतीया का पर्व आया तो वैश्य ने गंगा स्नान कर, अपने पितरों का तर्पण किया। स्नान के बाद घर जाकर विधि-विधानपूर्वक देवी-देवताओं का पूजन कर, ब्राह्मणों को अन्न, सत्तू, चावल, दही, चना, गोले के लड्डू, पंखा, जल से भरे घड़े, जौ, गेहूं, गुड़, सोना, ईख, खांड तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएं श्रद्धा-भाव से दान की।