डॉ. भीमराव अंबेडकर जी ने इस दुनिया में अपनी छवि किसी जाति या समाज में रहकर नहीं बल्कि समाज के लिए काम करके बनाई है। बचपन से ही उनका जीवन संघर्षरत रहा। पहला छूआ-छूत की वजह से उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा, दूसरा परिवार में आर्थिक तंगी से भी जूझना पड़ा। लेकिन उनका शिक्षा के प्रति जज्बा और लगन किसी भी परिस्थिति में कम नहीं हुआ।
तो आइए जानते हैं उनके जीवन के प्रेरक किस्से-
1. बात 1943 की जब बाबा अंबेडकर को एक वाइसराय काउंसिल में शामिल किया गया और श्रम मंत्री की उपाधि दी। इसके बाद पीडब्ल्यूडी का विभाग भी उन्हीं के पास था। यह वह विभाग था जिसे हर कोई अपने पास रखना चाहता था। तभी एक ठेकेदार अपने बेटे को बाबा भीमराव अंबेडकर के बेटे यशवंत राव के पास भेजते हैं। यशवंत राव को ठेकेदार का बेटा पूरी बात समझाता है और कमीशन देने की बात करता है। यशवंत यह सुनकर खुश हो जाते हैं और यह बात बाबा साहेब को बताते हैं। यह बात सुनते ही बाबा भीमराव स्तब्ध हो जाते हैं और अपने बेटे यशवंत राव को उसी वक्त मुंबई भेज देते हैं।
2. बाबा भीमराव अंबेडकर जी पढ़ाई में अव्वल थे। उनकी पढ़ाई में रूचि देखकर परिजनों की मदद से फॉरेन में पढ़ाई करने का मौका मिला। पढ़ाई के बाद जब वह लौटे तो देश में अलग ही सक्रियता के साथ आए। बाद में उन्हें भारत के संविधान की रचना कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। उनका शुरू से ही मन था कि संविधान संस्कृत में भी बनना चाहिए। लेकिन इसके पक्ष में वोटिंग नहीं मिली। हालांकि बाबा भीमराव अंबेडकर संस्कृत के बहुत बड़ें ज्ञाता थे। लेकिन किसी ने उन्हें कभी संस्कृत में वार्तालाप करते नहीं सुना था। सभी जन को आश्चर्य इसलिए हुआ क्योंकि वह पिछड़ी जाती से थे।
3. बाबा भीमराव अंबेडकर अछूत थे। बचपन इस छूत-अछूत के भाव को बाबा ने बहुत सहन किया। स्कूल में वह क्लास में नहीं बैठते थे बल्कि क्लास से बाहर बैठकर पढ़ाई करते थे। इतना ही नहीं स्कूल में वह पानी भी नहीं पी सकते थे। जब तक गार्ड नहीं आ जाता, क्योंकि उन्हें नल छूने की अनुमति नहीं थी।