आज भी प्रासंगिक वंदे मातरम्‌

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ऑस्कर विजेता एआर रहमान जैसे फनकार किसी परिचय के मोहताज नहीं और 1997 में आई उनकी एल्बम 'वन्दे मातरम' आज भी सबसे अधिक बिकने वाली गैर फिल्मी एल्बम्स में शुमार की जाती है। गीत 'माँ तुझे सलाम' सुनने पर भी आपके मन में देश प्रेम की लहर न उठती हो तो शायद खुद को भारतीय मानना ही नहीं चाहिए। यह रहमान की दिल को छू लेने वाली आवाज और शब्दों के जादूगर महबूब कोतवाल के शब्दों का तिलस्म है। 'खींची हैं लकीरें इस जमीन पर न खींचो देखो बीच में दो दिलों के ये दीवारें' गीत दोनों देशों में अमन का पैगाम तो देता ही है, साथ ही यह गाना भारत और पाकिस्तान के महान फनकारों को साथ लाने का पहला प्रयास है।

रहमान और नुसरत फतेह अली खान का यह गाना सच में 'गुरुज ऑफ पीस' कहलाने का हकदार है। बंकिमचन्द्र चटर्जी के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम' संतूर और अन्य वाद्य यंत्रों की मदद से बहुत ही खूबसूरती से पेश किया गया है। गीत 'तौबा तौबा कैसा दौर है' जहाँ आज के दौर के प्रति आक्रोश और परिवर्तन लाने का संदेश देता है, वहीं गीत 'ओनली यू' देशप्रेम को बेहतरीन तरह से उजागर करता है। भारतीय रीलिज में सात गाने और अंतरराष्ट्रीय रीलिज में दो और गाने 'मुसाफिर' और गुलज़ार द्वारा लिखित 'मासूम' से सुसज्जित यह एल्बम रहमान की प्रतिभा का प्रमाण है।

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