किसी भी फसल के उत्पादन के लिए खेत की तैयारी सबसे पहली तकनीकी आवश्यकता है। खेत की तैयारी अपने आप में एक विशिष्ट कार्य है। यह अलग-अलग किस्म की मिट्टी में उसकी भौतिक अवस्था के अनुसार अलग-अलग तरह से की जानी चाहिए। रेतीली, बलुही मिट्टी में यह काम आसानहोता है, परंतु मध्यम और गहरी मिट्टी में इसमें अधिक समय और अधिक श्रम लगता है।
मालवा की काली मिट्टी की तासीर बिलकुल अलग है। इसकी तासीर को समझे बिना अगर गलत समय या गलत भौतिक दशा में इसमें कोई भी कृषि कार्य किया गया तो उसकी दशा बहुत बिगड़ जाती है, जिसे फिर से ठीक करना बहुत मुश्किल हो जाता है। किसी भी स्थान विशेष के खेती संबंधी कार्यों का वहाँ की परंपरा और खेती के औजारों से घना रिश्ता रहा है। देशी हल, मिट्टी पलटने वाला हल, बाँस वाला बखर ये सब मालवा के खेत को तैयार करने वाले औजार रहे हैं।
रबी व खरीफ मौसम में अलग-अलग बोवनी यंत्रों का प्रयोग होता रहा है। अब बैल चलित यंत्रों का स्थान ट्रैक्टर चलित यंत्रों ने ले लिया है। गाँवों में बैलों की संख्या लगातार घटती जा रही है। इसके साथ ही छोटे किसानों की निर्भरता भी बढ़ती जा रही है। जुताई, बोवनी आदि के लिए उन्हें मुँह देखना पड़ता है ट्रैक्टर मालिकों का। वे भी सबसे पहले अपने खेत का काम करते हैं, उसके बाद बड़े रकबे वाले किसानों के खेतों को प्राथमिकता देते हैं। इसके बाद नंबर आता है छोटी जोत वाले किसानों का। खरीफ के मौसम में खेत की तैयारी और सही समय पर बोवनी करना बहुत जरूरी होता है। इसमें सुबह-शाम की देरी होने पर उसका सीधा दुष्प्रभाव उपज की कमी के रूप में देखा जा सकता है।
अब देखें ट्रैक्टर चलित कौन से जुताई यंत्र इन दिनों उपयोग में लाए जा रहे हैं। इनमें एक हैं कल्टीवेटर, दूसरा है डक फुट (बतख के पैर के समान) कल्टीवेटर और तीसरा है मोल्डबोर्ड हल (इसे पंखे वाला हल भी कहते हैं)। इसके अलावा कभी-कभी तवेदार हल या तवेदार बखर (डिस्क प्लाउ या डिस्क हैरो) भी देखने को मिल जाते हैं। इनमें सबसे अधिक तो कल्टीवेटर ही उपयोग में लाया जा रहा है।
इससे खेत जोतते समय मिट्टी जोत में होना जरूरी है। इसे एक बार खेत के आड़ी और दूसरी बार खड़ी दिशा में चलाया जाता है, जिससे खेत की सारी मिट्टी की जुताई हो सके। इसमें पर्याप्त दबाव रखा जाना चाहिए। साथ ही दबाव के लिए रखा गया वजन दोनों तरफ समान हो अन्यथा एक तरफ जुताई गहरी और दूसरे सिरे पर उथली होगी। इसका असर सोयाबीन के अंकुरण पर पड़ता है।
पांस वाले बखर की जगह डक फुट कल्टीवेटर बढ़िया काम करता है। इससे मिट्टी की हल्की परत कटती जाती है। जाल वाले खरपतवार भी इससे नियंत्रित रहते हैं। इन सब के बाद पठार या पाटा चलाकर खेत को समतल और ढेले रहित करना भी जरूरी होता है। ढेलेदार खेत में बोवनी होने पर भी अंकुरण सही नहीं होता है क्योंकि बीज और मिट्टी के कणों का सीधा संपर्क नहीं हो पाता। उनके बीच वायु रंध्र (एअर गेप्स) रह सकते हैं।
बोवनी के लिए खेत तैयार करने को इसीलिए सीड बेड (बीज शैया) प्रीपरेशन कहा जाता है :
मिट्टी का एक ऐसा बिस्तर, जिस पर किसी भी फसल के बीज अपना सुखद शैशव प्रारंभ कर नए, स्वस्थ पौधों के रूप में विकसित हो सकें।