कतार के आखिरी: फौज के खिलाफ खड़ी मणिपुर की विधवाएं

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014 (13:01 IST)
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शादी के कुछ ही साल बाद पति की अचानक मौत, कंधों पर बच्चों की जिम्मेदारी और माथे पर अलगाववादी की पत्नी होने का कलंक। मणिपुर में ऐसी सैकड़ों विधवाएं हैं। 25 से 35 साल की उम्र की वो महिलाएं जिनका आरोप है कि सेना और पुलिस ने उनके बेकसूर पति को अलगाववादी बताकर फर्जी एनकाउंटर में मार दिया।

एडिना 28 साल की थीं जब उनके पति की मौत हो गई। उन्होंने लव मैरिज की थी। तब शादी को महज छह साल हुए थे। बड़ा बेटा अविनाश और छोटी बेटी एंजलीना स्कूल जाते थे। एडिना के पति इंफाल में ऑटो चलाते थे। एडिना बताती हैं कि उन्हें टीवी पर आ रही खबरों से पता चला कि उनके पति की मौत हो गई है।

उनके मुताबिक उनके पति को सुरक्षा बलों ने गोली मारी थी। छह साल बीत गए हैं पर दर्द अब भी ताजा है। मुझसे बात करते-करते एडिना रो पड़ती हैं।

उन्होंने कहा, 'मैं उनके बारे में और नहीं सोचना चाहती। बहुत दर्द होता है। उनकी मौत के सदमे की वजह से मुझे लकवा मार गया था। मुझे ठीक होने में एक साल लग गया, अब मैं अपने बच्चों के लिए हिम्मती होना चाहती हूं।'

अलगाववादी का कलंक : एडिना कहती हैं कि उनके पति एक जिम्मेदार बेटा, पति और पिता थे, उनका किसी अलगाववादी गुट से कोई संबंध नहीं था। लेकिन पति की मौत का दर्द एक तरफ और जिंदगी जीने की चुनौतियां अलग। एडिना पर अपने दो बच्चों को बड़ा करने की जिम्मेदारी है।

वो बताती हैं कि उनके पति पर अलगाववादी होने की तोहमत लगने की वजह से उन्हें विधवा पेंशन जैसी सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिला। अब अपने मां-बाप और भाई की मदद से एक छोटी सी दुकान में पान, नमकीन, बिस्कुट और जूस जैसी चीजें बेचती हैं।

मोहब्बत की नींव पर बसाया उनका आशियाना जो उजड़ा है तो अकेलेपन के बादल छंटने का नाम ही नहीं लेते।

एडिना मुझसे कहती हैं, 'मैं दोबारा शादी करना चाहती हूं पर मैं विधवा हूं तो मेरा अच्छे कपड़ा पहनना भी लोगों को बुरा लगता है, दोबारा शादी तो दूर की बात है। महिलाओं के समान अधिकार सब किताबी बातें हैं।

आफस्पा का विरोध : मणिपुर में 25 से ज्यादा अलगाववादी गुट सक्रिय हैं। इनसे निबटने के लिए तैनात सुरक्षा बलों को विशेष अधिकार दिए गए हैं और प्रदेश में कई दशकों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी आफस्पा लागू है।
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इसके तहत सुरक्षा बलों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि इस कानून की आड़ में कई मासूम फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए हैं।

मणिपुर से कांग्रेस के सांसद डॉक्टर मेन्या मानते हैं कि इस कानून का दुरुपयोग हुआ है और कई आयोग इसे मणिपुर से हटाने की सिफारिश कर चुके हैं, डॉक्टर मान्या की निजी राय में इस कानून को अब तक हटा दिया जाना चाहिए था।

डॉक्टर मेन्या के मुताबिक इस वक्त जरूरत है मणिपुर में सुशासन की ताकि कानून व्यवस्था सुधरे और सेना की मदद की जरूरत कम हो।

ये और बात है कि लंबे समय से मणिपुर में और केंद्र में कांग्रेस की सरकार है, पर न हालात ऐसे हो पाए हैं कि सेना की तैनाती हटाई जाए और न ही सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाने पर सहमति बन पाई है।

आफस्पा का समर्थन करने वालों का तर्क है कि सेना प्रभावी तरीके से अपना काम कर सके इसके लिए जरूरी है कि उन पर नागरिक कानूनों की बंदिश न हो क्योंकि सेना वैसे ही इलाकों में तैनात की जाती है जहां युद्ध जैसी स्थिति हो।

न्याय की उम्मीद : इस सबके बीच मणिपुर की विधवाओं का संघर्ष जारी है। एडिना और उसके जैसी कई युवा विधवाएं और कुछ ऐसी महिलाएं एकजुट हुई हैं जिन्होंने अपने पतियों और बेटों को कथित फर्जी मुठभेड़ों में खोया है।

एक दूसरे के साथ हिम्मत जुटाकर और मानवाधिकार संगठनों की मदद से अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मणिपुर में मुठभेड़ के 1500 से ज्यादा मामलों की जांच की मांग की है।

इन्हीं में से एक नितान कहती हैं कि संगठन बनने से जिंदगी को न सिर्फ एक नई दिशा और उम्मीद मिली है बल्कि अंदर से टूटा आत्मविश्वास भी जुड़ने लगा है। पर न्याय की उम्मीद करने वाली ये महिलाएं राजनेताओं से बिल्कुल नाउम्मीद हैं।

नितान कहती हैं कि वोट देने जाएंगी मगर बदलाव की उम्मीद के बिना, 'पहले तो सब नेता कहते हैं कि मणिपुर से आफस्पा कानून हटा देंगे लेकिन जीतने के बाद कोई नहीं कहता, इसलिए बिल्कुल मन नहीं करता वोट देने का।'

एडिना भी नितान से सहमत हैं। कहती हैं कि राजनीति से ज्यादा उन्हें न्यायालय पर ही भरोसा है।

इनके संगठन की एक बैठक में जब मैं और सदस्यों से मिली तो कइयों ने कहा कि वे अभी तक तय नहीं कर पाई हैं कि वोट डाले भी या नहीं, फिर कुछ ने कहा कि अब न्याय के लिए आवाज उठाने की हिम्मत की है तो वोट भी जाया नहीं होने देंगी।

इनमें से कई महिलाएं अपनी नाराजगी और हताशा घर बैठकर नहीं, बल्कि इस बार नोटा का बटन दबाकर जाहिर करने की सोच रही हैं।

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