बाबरी विवाद के कागजात पेश होंगे

गुरुवार, 2 जुलाई 2009 (22:58 IST)
उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने भरोसा दिलाया है कि उनकी सरकार बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित सभी जरूरी कागजात अदालत को मुहैया कराएगी। पिछले दिनों अदालत के लगातार कहने पर भी राज्य सरकार बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित सात अहम पुराने दस्तावेज अदालत में पेश नहीं कर सकी थी।

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ऐसा माना जा रहा था कि ये दस्तावेज गायब हो गए हैं, पर कब और कैसे, इसे लेकर किसी के पास कोई जवाब नहीं था। अदालत ने इसे लेकर सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई थी। अब मुख्यमंत्री मायावती ने कहा है कि राज्य सरकार इस मामले से संबंधित सभी जरूर कागजात अदालत में पेश करने को तैयार है।

बयान का स्वागत : बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने मायावती के इस आश्वासन का स्वागत किया है। अयोध्या की बाबरी मस्जिद पर पिछले छह दशक से इस बात को लेकर विवाद चल रहा है कि वह जगह हिंदुओं के आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि है या बाबरी मस्जिद।

बाबरी मस्जिद के नाम से मशहूर इस जगह पर निर्मित इमारत को छह दिसंबर 1992 को कट्टरपंथी हिंदूवादियों ने गिरा दिया था। इसकी जाँच के लिए सरकार ने लिब्रहान आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने मंगलवार को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी है।

इस विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर चल रहे मामले की सुनवाई अंतिम चरण में है और अगली सुनवाई सात जुलाई को होगी। बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद दिसंबर 1949 से चल रहा है, जब कथित तौर पर हिंदुओं ने उसके अंदर श्रीराम की मूर्तियाँ रख दी थीं।

अदालत ने राज्य सरकार से इस विवादित जमीन का मालिकाना हक तय करने में महत्वपूर्ण सात पुराने और अहम दस्तावेज दाखिल करने को कहा है। हालाँकि राज्य प्रशासन का कहना है कि ये दस्तावेज सरकारी रिकॉर्ड से 2002 से ही गायब हैं। अदालत के आदेश के बाद भी राज्य सरकार उन दस्तावेजों को आज तक अदालत के सामने पेश नहीं कर पाई है।

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नोटिस का डर : अभी हाल ही में अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव अतुल गुप्त और प्रमुख गृहसचिव कुँवर फतेहबहादुर को नोटिस भेजकर चेतावनी दी थी कि अगर जल्द ही दस्तावेज पेश नहीं किए गए तो उनके खिलाफ अदालत की अवमानना के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

इन दस्तावेजों में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ओर से राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंदवल्लभ पंत को भेजा गया टेलीग्राम भी शामिल है।

इस टेलीग्राम में नेहरू ने कहा है कि अयोध्या के घटनाक्रम से मैं परेशान हूँ। मुझे उम्मीद है इस मामले में आप व्यक्तिगत रूप से दिलचस्पी लेंगे। वहाँ गलत उदाहरण पेश किए जा रहे हैं, जिसके परिणाम बुरे होंगे।

अन्य छह दस्तावेजों में राज्य सरकार और जिला प्रशासन के बीच हुआ पत्राचार शामिल है। ये दस्तावेज कुछ किताबों में प्रकाशित भी हुए हैं।

इन पत्रों से पता चलता है कि तत्कालीन जिलाधिकारी केके नैयर ने विवादित परिसर से मूर्तियाँ हटाने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि इससे खून-खराबा होगा।

ऐसा माना जाता है कि केके नैयर और उनकी पत्नी शकुंतला नैयर बाबरी मस्जिद पर कब्जा करने के लिए हिंदुओं की मदद कर रहे थे। बाद में यह दंपति हिंदू जनसंघ में शामिल होकर संसद में पहुँचा था।

विवाद की शुरुआत: हालाँकि अदालत इस बात पर जोर दे रही है कि राज्य सरकार इन दस्तावेजों को खोजकर पेश करे, जिससे 60 साल पुराने इस विवाद के शुरुआत का पता चल सके।

वहीं राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को डर है कि अगर वे इन दस्तावेजों को खोज नहीं पाए तो अदालत उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकती है।

विवादित स्थल कड़े सुरक्षा घेरे में है। वहाँ किसी भी तरह की एकतरफा कार्रवाई देश में कानून-व्यवस्था की गंभीर समस्या पैदा कर सकती है।