स्वात के नाइयों को फिर मिला काम

सोमवार, 8 जून 2009 (15:51 IST)
जीशान जफर (रंगमला, मालाकंड अपर से)

BBC
पाकिस्तान के सूबा सरहद के जिला स्वात से पलायन करने वाले लाखों लोग विभिन्न राहत शिविरों में बिना रोजगार जिंदगी गुजारने पर मजबूर हैं। लेकिन कुछ ऐसे खुशनसीब हैं जो अपने शहर में तो बेरोजगार हो गए थे, लेकिन शिविरों में उनकों अपना रोजगार मिल गया है।

ये लोग पेशे से नाई हैं जिन्होंने तालिबान की धमकियों के बाद स्वात में लोगों की दाढ़ियाँ बनाना बंद कर दिया था। नतीज ये हुआ कि उनका रोजगार छिन गया।

मालाकंड अपर के इलाके रंगमला में विस्थापितों के लिए बनाए गए राहत शिविर में आम लोगों के साथ कुछ नाइयों ने भी पनाह ले रखी है। इन्हें घर से दूरी का दर्द है, लेकिन इस बात की खुशी हैं कि यहाँ उन्हें अपना काम आजादी के साथ करने का अवसर मिला है।

शिविर में पनाह लेने वाले एक नाई शौकत अली का कहना है कि उन्होंने पिछले इतवार को अपना काम शुरू किया और आठ महीने के बाद तीन लोगों की दाढ़ी बनाई।

गैर इस्लामी : उन्होंने बताया कि स्वात के मिंगोरा शहर में सौ से अधिक नाई की दुकानें थीं जिन्हें तालिबान की ओर से चेतावनी मिली थी कि किसी की दाढ़ी बनाना गैर-इस्लामी है और अगर आने वाले ग्राहकों की दाढ़ी बनाई तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

इसके बाद डर से नाइयों ने अपनी दुकानें बंद कर दी थीं और उनका काम सिर्फ बाल काटने तक सीमित रह गया था इसलिए रोजगार कम हो गया था। उन्होंने कहा कि उन्हें आठ महीने बाद शेव करने पर खुशी हो रही है क्योंकि इस मुश्किल समय में कुछ न कुछ आमदनी हो रही है

एक दूसरे नाई फरमान अली शिविर से बाहर खुले आसमान में भी काम करके खुश हैंफरमान कहते हैं, 'स्वात में तालिबान की दाढ़ी बनाने पर पाबंदी से पहले मैं 15 से 20 दाढ़ी रोजाना बनाता था, लेकिन अचानक पाबंदी के बाद मेरा काम काफी प्रभावित हुआ। कैंप में रोजाना सिर्फ दाढ़ी बनाने से 50 से 100 रुपए कमा लेता हूँ।'

उन्होंने बताया कि स्वात में तमाम हेयर ड्रेसर पलायन कर चुके हैं और वो विभिन्न कैंपों में आजादी के साथ काम कर रहे हैंफरमान कहते हैं कि शिविर में काफी दिनों के बाद बेरोकटोक काम मिलने से खुशी है, लेकिन उन्हें उस दिन का इंतजार है जब वो वापस जाकर अपने शहर में बिना खौफ से अपना काम कर सकेंगे।

शिविर में एक साल बाद नाई से अपनी दाढ़ी बनवा रहे अकबर शाह ने बताया, 'तालिबान के डर से कोई नाई दाढ़ी नहीं बना रहा था जबकि घर पर दाढ़ी बनाने में मुश्किल होती थी। नाई से दाढ़ी बनवा कर अच्छा लग रहा है।'

गौरतलब है कि तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने, संगीत सुनने और साथ दाढ़ी बनवाने पर पाबंदी लगा रखी थी।

टीकाकारों की राय में हाल के दिनों में होने वाला फौजी ऑपरेशन उस समय तक कामयाब नहीं होगा, जब तक लोग अपने इलाकों में वापस जाकर पूरी तरह से आजादी और बिना डर के अपना रोजगार शुरू कर सकें।