बॉलीवुड में जिन आगामी फिल्मों को लेकर भारी उत्सुकता है, उनमें यशराज बैनर की अगले साल दीपावली पर रिलीज होने वाली अनाम फिल्म प्रमुख है। यूँ तो यशराज के बैनर तले बनने वाली सभी फिल्मों पर इंडस्ट्री की निगाह रहती है लेकिन यह फिल्म इस मायने में खास है कि इसे स्वयं यश चोपड़ा निर्देशित करने जा रहे हैं।
निर्देशक के रूप में बेहद लंबी और सफल पारी खेलने वाले यश चोपड़ा की एक तरह से यह "वापसी" ही कही जा रही है क्योंकि पूरे सात साल बाद वे "लाइट्स, कैमरा, एक्शन" कहने जा रहे हैं। "वीर जारा" (2004) के बाद उन्होंने कोई फिल्म निर्देशित नहीं की है। इसके बजाए उन्होंने अपने बैनर तले कई प्रतिभावान युवा निर्देशकों को फिल्म बनाने का मौका दिया है।
यश चोपड़ा की पहचान रोमांटिक फिल्मों के बेमिसाल निर्देशक के रूप में रही है। हालाँकि उन्होंने "धर्मपुत्र", "दीवार", "त्रिशूल", "मशाल" आदि भी निर्देशित की हैं लेकिन "यश चोपड़ा ब्रांड" के रूप में "दाग", "कभी-कभी", "सिलसिला", "चाँदनी", "लम्हे", "डर", "दिल तो पागल है" और "वीर जारा" को ही पहचाना जाता है। कोई आश्चर्य नहीं कि उनकी वापसी वाली फिल्म भी रोमांटिक फिल्म ही होगी। अस्सी के होने को आए यशजी के लिए यह चुनौती ही होगी कि वे प्यार की ऐसी भाषा अपनी फिल्म के जरिए बोलें जो आज के युवा दर्शकों को अपनी-सी लगे।
स्वयं यशजी स्वीकार करते हैं कि यह काम चुनौतीपूर्ण होगा। वे आश्वस्त करते हैं कि उनकी फिल्म की आत्मा पकी उम्र की होगी लेकिन उसका दिल युवा होगा। इस फिल्म को लेकर उत्सुकता इसलिए भी है कि इसमें पहली बार शाहरुख खान और कैटरीना कैफ की जोड़ी नजर आएगी, साथ ही अनुष्का शर्मा भी होंगी। यही नहीं, गीतकार के रूप में गुलजार और संगीतकार के रूप में एआर रहमान भी पहली बार यश चोपड़ा के साथ जुड़ रहे हैं। इस प्रकार अपनी वापसी की घोषणा कर यश चोपड़ा ने एक साथ कई धमाके कर डाले हैं।
यशजी अकेले निर्देशक नहीं हैं जो वापसी की राह पर हैं। बीते दिनों एक और निर्देशक ने मैदान में लौटने का ऐलान कर इंडस्ट्री में खलबली मचा दी। ये हैं युगांतकारी ब्लॉकबस्टर "शोले" बनाने वाले रमेश सिप्पी। सत्तर के दशक में रमेश सिप्पी ने अपनी पहचान प्रतिभासंपन्ना युवा निर्देशक के रूप में बनाई थी, जो तकनीकी पक्ष में पश्चिम की फिल्मों को टक्कर देने को तत्पर थे। उनकी पहली फिल्म "अंदाज" ठीक-ठाक चली थी लेकिन दूसरी फिल्म "सीता और गीता" सुपरहिट रही और आज भी कॉमेडी फिल्मों में अग्रणी मानी जाती है। फिर तीसरी फिल्म "शोले" से तो उन्होंने इतिहास ही रच डाला। इसने कामयाबी के सारे रेकॉर्ड तोड़ डाले और देश की सबसे कामयाब व सबसे यादगार फिल्मों की सूची में हमेशा के लिए दर्ज हो गई।
इस शिखर को छूने के बाद रमेश के करियर का ग्राफ नीचे की ओर ही खिसकता गया। "शान" फ्लॉप हुई, "सागर" को केवल खूबसूरत फिल्मांकन व संगीत के लिए सराहना मिली। इसके बाद आईं "जमीन", "भ्रष्टाचार", "अकेला" जैसी फिल्में देखकर यकीन करना मुश्किल था कि इन्हें उसी रमेश सिप्पी ने बनाया है जो "शोले" के रूप में सिनेमा की पाठ्य पुस्तक रच चुके हैं। उन्होंने टीवी पर "बुनियाद" से सफलता पाई लेकिन "गाथा" के साथ यहाँ भी फ्लॉप रहे। "जमाना दीवाना" (1995) के बाद उन्होंने कोई फिल्म निर्देशित नहीं की।
सोलह साल बाद वापसी करने के बारे में रमेश सिप्पी का कहना है कि इतने बरस बाद ही मुझे ऐसी स्क्रिप्ट हाथ लगी, जिसे पढ़कर मुझमें फिर निर्देशन करने की इच्छा जागी। फिलहाल वे केवल इतना बताते हैं कि इस फिल्म में रोमांस भी होगा और एक्शन भी। साथ ही वे कहते हैं कि भले ही वे 64 के हों लेकिन उनकी फिल्म में ताजगी होगी।
एक और निर्देशक ने वापस आने की बात कही है। ये हैं "त्रिदेव", "विश्वात्मा", "मोहरा" और "गुप्त" बनाने वाले राजीव राय। इनमें "त्रिदेव" और "मोहरा" ने तो "ओए ओए" और "तू चीज बड़ी है मस्त मस्त" से तहलका ही मचा दिया था। संगीतमय थ्रिलर फिल्मों के निर्देशक के रूप में राजीव ने अपनी पहचान बनाई लेकिन अंडरवर्ल्ड के बॉलीवुड पर कसते शिकंजे ने उनके करियर पर ब्रेक लगा दिया। 1997 में उन पर हमला हुआ, जिसमें वे बाल-बाल बचे। इसके बाद वे देश छोड़कर अज्ञातवास में चले गए। चार साल बाद लौटे और "प्यार इश्क और मोहब्बत" (2001) तथा "असंभव" (2004) बनाईं लेकिन ये दोनों ही पिट गईं। इसके बाद वे फिर विदेश चले गए थे। पिछले दिनों उनकी वापसी की चर्चा छिड़ी तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे मुंबई लौटकर फिर निर्देशन की कमान संभालने की तैयारी में हैं। हालाँकि अभी फिल्म की कहानी, कलाकार आदि कुछ भी तय नहीं है।
कुछ माह पूर्व एक और निर्देशक की वापसी की बात सुनने में आई थी। यदि हम इनका नाम बताएँ चंद्र बरोट तो शायद आप इन्हें न पहचान पाएँ। दरअसल इनकी ख्याति अपने नाम से नहीं, उस एकमात्र फिल्म से है जिसे इन्होंने निर्देशित किया था। यह थी 1978 में आई अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्म "डॉन", जिसके रीमेक और सीक्वल को फरहान अख्तर ने इन दिनों एक उद्योग बना लिया है। "डॉन" के बाद बरोट ने एक-दो फिल्में शुरू की थीं लेकिन वे कभी पूरी नहीं हुईं। अब पूरे 33 साल बाद उन्होंने एक नहीं, दो फिल्मों से वापसी की बात कही है। इनमें एक तो "नील को पकड़ना..." नामक कॉमेडी होगी और दूसरी एक अनाम थ्रिलर होगी।
"चश्मे बद्दूर", "कथा", "स्पर्श" आदि बनाने वाली सई परांजपे ने भी कुछ समय पूर्व "खून तो होना ही था" से वापसी का ऐलान किया था लेकिन मामला फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया लगता है। "कयामत से कयामत तक", "जो जीता वही सिकंदर", "अकेले हम अकेले तुम" तथा "जोश" बनाने के बाद कुनूर जा बसे मंसूर खान ने इंडस्ट्री से किनारा कर दिया था। 2008 में "जाने तू या जाने ना" के सह-निर्माता के रूप में वे फिर इंडस्ट्री से जुड़े और हाल ही में कुछ पारिवारिक कार्यक्रमों में भी देखे गए हैं। चर्चा है कि उनके चचेरे भाई आमिर उन्हें फिर निर्देशन करने के लिए मनाने के भरसक प्रयास कर रहे हैं।