ग्लोबलाइजेशन के दौर में हिन्दी सिनेमा भी ग्लोबल हो चला है। विदेशी लोकेशन, विदेशी कलाकार, विदेशी पैसा और कई मायनों में विदेशी भाषा भी... लेकिन अब विदेशी तकनीशियन भी हिन्दी फिल्मों में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। चाहे थ्रीडी फिल्में हों या फिर रजनीकांत की साइंस फिक्शन रोबोट या फिर शाहरुख खान की रॉ वन हो, जो भी फिल्म तकनीक प्रधान होती है, उसमें विदेशी तकनीशियनों का काम करना ज्यादा आश्चर्य की वजह नहीं होनी चाहिए, लेकिन आश्चर्य तब होता है, जब आरक्षण, लक बाय चांस या जिंदगी ना मिलेगी दोबारा जैसी फिल्मों में भी विदेशी तकनीशियन काम करते हों।
मेकअप आर्टिस्ट से लेकर साउंड रिकॉर्डिस्ट, सिनेमेटोग्राफर, डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी हो या फिर म्यूजिक कंपोजर... आजकल बॉलीवुड में हर जगह विदेशी तकनीशियन धड़ल्ले से काम कर रहे हैं।
फिल्म राणा में रजनीकांत तिहरी भूमिका कर रहे हैं औऱ इस फिल्म में विजुअल इफेक्ट्स के लिए टाइटेनिक के तकनीशियन चार्ल्स डर्बी की सेवाएँ ली जा रही हैं। कैमरा वर्क हो या फिर म्यूजिक इफेक्ट, पर्दे के पीछे काम करने वालों में ज्यादातर विदेशी होते हैं। बताया जा रहा है कि इस फिल्म में कुछ बहुत नायाब विजुअल इफेक्ट्स दिखाई देने वाले हैं, शायद भारतीय फिल्मों में पहली बार इस तरह के दृश्य पर्दे पर नजर आएँगे।
शाहरुख ने अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म रॉ वन के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। वीएफएक्स (विजुअल इफेक्ट्स) के लिए तो जेफ लाइसर की सेवाएँ ली ही हैं, पार्श्व संगीत की जिम्मेदारी द लॉयन किंग और द डार्क नाइट फिल्म संगीत देने वाले हेंस जिमर को सौंपी है।
हम इसे आउटसोर्सिंग भी कह सकते हैं। बॉलीवुड में माना जा रहा है कि विदेशी तकनीशियन कम लागत में कुछ नया करके देते हैं। खासतौर पर डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी के मामले में तो...अब रॉक ऑन में लंदन के फोटोग्राफर जेसन वेस्ट ने फिल्म देल्ही बैली को भी शूट किया और डॉन 2 की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं। कम लागत और अच्छे काम की पुष्टि करते हुए लव सेक्स औऱ धोखा के डायरेक्टर दिबाकर बैनर्जी कहते हैं कि "जब मैंने फिल्म को डिजीटल फॉर्मेट और कम बजट में फिल्माने के बारे में योजना बनाई तब मैंने निकोल एंड्रीट्सकिस को ये जिम्मेदारी सौंपी। निकोल लंदन फिल्म स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं और वहाँ उन्होंने खुद ही नाममात्र के क्रू और बजट में फिल्म और म्यूजिक वीडियो में कमाल कर दिखाया है।"
अब जबकि दीपा साही फिल्म तेरे मेरे फेरे से अपना निर्देशकीय सफर शुरू कर रही हैं तो उन्होंने भी डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी की जिम्मेदारी बुल्गारियन फोटोग्राफर क्रिस्टोफ बकलोव को सौंपी। वे भी वही कारण बताती हैं, जो दिबाकर बैनर्जी बताते हैं कि "वे बिना ट्रकों और ज्यादा उपकरणों के पहाड़ों पर हर पल बदलती रोशनी को खूबसूरती से पर्दे पर उतार सके।" उल्लेखनीय है कि क्रिस्टोफ, सिनेमेटोग्राफर राली राल्चेव के साथ दीपा के पति केतन मेहता के फिल्म रंग रसिया का काम भी कर चुके हैं।
इसी तरह डायरेक्टर प्रकाश झा ने अपनी फिल्म गंगाजल में न्यूयॉर्क के कंपोजर वेने शार्प को काम दिया था औऱ उसके बाद उन्होंने अपहरण, राजनीति और यहाँ तक कि आरक्षण में भी उन्हीं का पार्श्वसंगीत लिया है। शार्प ने संजय यौहान की लाहौर और तनूजा चंद्रा की फिल्म होप एंड ए लिटिल शुगर में भी बैकग्राउंड म्यूजिक दिया है। संगीत के क्षेत्र में एक और कंपोजर अजरबैजान के व्लादिमीर परसान ने भी फिल्म साडा अड्डा से इंट्री मारी है।
माय नेम इज खान में मेकअप आर्टिस्ट रॉबिन स्लेटर को करन जौहर अग्निपथ की रिमेक में दोहरा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि भारत में अच्छे तकनीशियनों का अभाव है, लेकिन कुछ क्षेत्रों जैसे थ्रीडी फिल्मों के लिए स्टीरियोग्राफर... अभी तक हमारे देश में इनका अभाव है। तो कहीं तकनीशियनों का अभाव है तो कहीं ये सोच कि विदेशी तकनीशियन कम उपकरणों के बावजूद अपना काम अच्छे से कर लेते हैं, वजह जो भी हो, इन दिनों बॉलीवुड में विदेशी तकनीशियन बड़े पैमाने पर हायर किए जा रहे हैं।